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Rashtrapati Bhavan: अब इस भव्य राष्ट्रपति भवन में रहेंगी द्रौपदी मुर्मू, 17 साल में बनी 340 कमरों वाली इमारत
Rashtrapati Bhavan: देश की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अब भव्य राष्ट्रपति भवन में निवास करेंगी। 340 कक्षों वाला राष्ट्रपति भवन विश्व में किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के आवास से बड़ा और अपनी भव्यता के लिए सारी दुनिया में जाना जाता है।
Rashtrapati Bhavan: देश की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अब भव्य राष्ट्रपति भवन में निवास करेंगी। राष्ट्रपति भवन की भव्यता हर किसी का मन मोह लेती है। 340 कक्षों वाला राष्ट्रपति भवन विश्व में किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के आवास से बड़ा है और अपनी भव्यता के लिए सारी दुनिया में जाना जाता है। इस भवन में 700 मिलियन ईंटें और 3.5 मिलियन घन फीट पत्थर लगा है, जिसके साथ लोहे का न्यूनतम प्रयोग हुआ है। इसका भू क्षेत्रफल दो लाख वर्ग फीट है। राष्ट्रपति भवन के निर्माण में 17 साल का लंबा समय लगा था। राष्ट्रपति भवन की सबसे बड़ी पहचान सेंट्रल डोम है जो ऐतिहासिक सांची स्तूप की याद दिलाता है। 15 एकड़ में फैला राष्ट्रपति भवन का मुगल गार्डन हमेशा से लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है।
पहले वायसराय हाउस था नाम
दुनिया की भव्य इमारतों में गिना जाने वाला राष्ट्रपति भवन 1950 तक वायसराय हाउस के नाम से जाना जाता था। राष्ट्रपति भवन का वास्तुशिल्प दुनिया भर के लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस भवन में कई ऐसी खासियतें हैं जो देखने वालों को प्रभावित करती हैं। भारत की राजधानी को 1911 में कलकत्ता से स्थानांतरित कर दिल्ली लाने का निर्णय लिया गया। जार्ज पंचम ने 12 दिसंबर को इस फैसले का ऐलान किया।
इस योजना के तहत गवर्नर जनरल के आवास को प्रधान और अति विशेष दर्जा दिया गया। ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लैंडसियर लुटियंस को इस इमारत को बनाने की जिमेदारी सौंपी गयी। योजना बनाई गयी कि यह इमारत पूर्वी और पाश्चात्य शैली को मिलाकर बनाई जाए। लुटियंस की अभिकल्पना वृहत रूप से परंपरागत थी, जो कि भारतीय वास्तुकला से वर्णमेल व ब्यौरे इत्यादि में अत्यधिक प्रेरित थी। साथ ही वायसराय के आदेश के अनुसार भी थी।
आरभिक योजनानुसार वायसराय हाउस को रायसीना की पहाड़ी के ऊपर बनाकर दोनों सचिवालय नीचे बनने थे। बाद में सचिवालयों को 400 गज पीछे खिसकाकर पहाड़ी पर ही बनाना तय हुआ। लुटियंस की योजनानुसार यह भवन अकेला ऊंचाई पर स्थित होता, जिसे कि सचिवालयों के कारण अपनी मूलयोजना से पीछे सरकना पड़ा। साथ ही आगे दोनों सचिवालय खड़े हो गये, जिससे कि वह दृष्टि में कुछ दब गया।
अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा
भारत के प्रथम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी को यहां का मुख्य शयन कक्ष अति आडंबर पूर्ण लगा। यही कारण था कि उन्होंने अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा। उसके बाद तो यह परंपरा ही बन गयी और सभी राष्ट्रपतियों ने इन्हीं कक्षों में रहना बेहतर समझा।
राष्ट्रपति भवन की खूबसूरती में मुगल गार्डन चार चांद लगा देता है। हर साल फरवरी महीने में इसे आम लोगों के लिए खोला जाता है। यहां के गुलाब व अन्य फूल लोगों का मन मोह लेते हैं। पूरे देश से लोग इस बाग की खूबसूरती देखने के लिए आते हैं।
भारतीय स्थापत्य कला की झलक
इमारत के ऊपर भारतीय स्थापत्य कला का एक अभिन्न अंग है छोटे गुंबदनुमा ढांचे। इमारत में ढेरों गोलाकार परत/कुण्ड रूपी घेरे हैं, जो कि भवन के ऊपर लगे हैं और जिनमें पानी के फौव्वारे भी लगे हैं। वे भारतीय स्थापत्य के अभिन्न अंग हैं। यहां परंपरागत भारतीय छज्जे भी हैं जो कि आठ फीट दीवार से बाहर की ओर निकले हुए हैं और नीचे पुष्पाकृति से सपन्न हैं।
ये भवन को सीधी धूप के खिड़कियों पर पड़ने से और मानसून में वर्षा के जल और फुहार को जाने से रोकते हैं। लुटियंस ने कई भारतीय शैलियों के नमूनों का इस्तेमाल उपयुक्त स्थानों पर किया है, जो कि काफी प्रभावशाली हैं। लाल बलुआ पत्थर से बनी जालियां भी भारतीय स्थापत्य कला से प्रेरित हैं।
सत्रह साल में पूरा हुआ निर्माण
भवन के संग चार पैन्डेन्ट रूप में घंटी बनी है जो कि भारतीय मंदिरों का एक अनिवार्य अंग हैं। प्रत्येक स्तंभ के प्रत्येक ऊपरी कोण पर एक घंटी बनी है। प्रासाद के सामने की ओर कोई खिड़की नहीं है। यह भवन मुख्यत: 1929 में पूर्ण हो गया था मगर इसका आधिकारिक उद्घाटन 1931 में हुआ।
यह एक रोचक तथ्य है कि यह भवन सत्रह साल में पूर्ण हुआ और सत्रह वर्ष ही ब्रिटिश राज्य में रह पाया। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन वायसराय वहां रहते रहे और अंतत: 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद से यहां भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति रहने लगे और इसका नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन हो गया।
राष्ट्रपति भवन का मुख्य गुंबद मूलत
मौर्य काल में बने सांची स्तूप से व्युत्पन्न है। इसका भूक्षेत्र फल 200000 वर्ग फीट (19000 वर्ग मीटर) है। इस भवन में 700 मिलियन ईंटें और 3.5 मिलियन घन फीट (85000 घन मीटर) पत्थर लगा है, जिसके साथ लोहे का न्यूनतम प्रयोग हुआ है। यह विश्व के किसी भी राष्ट्रपति आवास से कहीं बड़ा है।
दरबार हॉल भी है बेहद खास
राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल भी सबके आकर्षण का केंद्र है। ऐसा हाल में 33 मीटर की ऊंचाई पर लटका दो टन का झाड़फानूस सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। अंग्रेजों के शासनकाल में दरबार हाल को सिंहासन कक्ष के रूप में जाना जाता था। उस समय इस हाल में दो सिंहासन एक वायसराय और दूसरा उनकी पत्नी के लिए होता था मगर अब इसमें एक ही कुर्सी होती है जो राष्ट्रपति के लिए लगाई जाती है। इस हाॅल का इस्तेमाल अब सरकारी कार्यक्रमों और पुरस्कार वितरण के लिए किया जाता है।
मुगल गार्डन सबके लिए आकर्षण का केंद्र
राष्ट्रपति भवन का 15 एकड़ में फैला हुआ मुगल गार्डन भी सबके लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र रहा है। इस गार्डन में ब्रिटिश और इस्लामिक दोनों प्रकार की झलक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हर साल फरवरी महीने के दौरान इस गार्डन को आम लोगों के लिए खोला जाता है। इस गार्डन को देखने के लिए दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से लोग राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं।