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Ratan Tata Success Story: एक रतन में इतना बड़ा खजाना

Ratan Tata Success Story in Hindi: रतन टाटा के प्रति ये सम्मान, सद्भावना और प्रेम आखिर है क्यों? वो तो एक उद्यमी थे। एक बड़े घराने के मुखिया। हमारा उनसे कैसा नाता, कैसा लगाव ?

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 14 Oct 2024 8:34 PM IST
Ratan Tata Success Story in Hindi
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Ratan Tata Success Story in Hindi

Ratan Tata Success Story in Hindi: रतन टाटा। भारत के एक बहुत पुराने और बहुत बड़े उद्योग साम्राज्य के मुखिया। उनका जाना एक सामान्य सी घटना हो सकती थी । लेकिन हुई नहीं। रतन टाटा का जाना देश की तवारीख में सिर्फ एक वाकया ही नहीं है बल्कि कुछ ऐसा है जो बड़े गंभीर संदेश देता है।

रतन टाटा एक उद्योगपति थे, एक व्यवसायी। न तो वो नेता थे न ही कोई सेलिब्रिटी। सिर्फ एक उद्योगपति। लेकिन क्या कभी किसी उद्योगपति के निधन पर इस तरह का शोक, शॉक, उदासी और गमगीन प्रतिक्रिया देखी गई? शायद कभी नहीं।


भारत जैसे देश में, जहां बिजनेस, उद्यम या अपना काम करने को दोयम दर्जे वाला माना जाता है, जहां व्यवसाय को सम्मान की बजाय हेय दृष्टि से देखा जाता है वहां एक उद्योगपति के प्रति जनमानस में सम्मान और श्रद्धांजलि विस्मयकारी है।


ये सम्मान और श्रद्धा तो शायद उन तमाम दिग्गज राजनेताओं, समाजसेवकों और सेलिब्रिटीज के हिस्से में भी नहीं आई होगी जिनके बारे में अपार फॉलोइंग के दावे किए जाते हैं। जो खुद अपना ढोल पीटते हैं, अपना नाम खुद ही जपते हैं।

लेकिन रतन टाटा न तो नेता थे न सेलिब्रिटी। वो एक अच्छे इंसान थे। यही उनकी अज़ीम शख्सियत का बेमिसाल पहलू था। और देश की आंखों में नमी उसी अच्छे इंसान के लिए दिखी। ज़ेहन में याद उसी अच्छे इंसान के लिए हमेशा रहेगी। रतन टाटा की यही सच्ची दौलत है जिसे गिनतियों में गिना नहीं जा सकता।


रतन टाटा के प्रति ये सम्मान, सद्भावना और प्रेम आखिर है क्यों? वो तो एक उद्यमी थे। एक बड़े घराने के मुखिया। हमारा उनसे कैसा नाता, कैसा लगाव? ये प्रश्न स्वाभाविक हैं और जरूरी भी। जरूरी इसलिए क्योंकि ये हमारे मानस और समाज की अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। ये कुछ सच्चाइयों को भी दोहराते हैं।

सच्चाई यह है कि हमें एक अच्छे इंसान के जाने का दुख इसलिए है कि अब हमारे बीच, हमारे समाज में अच्छे इंसान दुर्लभ हैं। हमें जिनकी जरूरत है वो हैं नहीं या अभी तक मिले नहीं हैं। भले ही नेता, फिल्मस्टार, सेलेब्रिटीज़, एक्टर्स करोड़ों की फॉलोइंग रखते हों लेकिन उनके प्रति सच्चा सम्मान और श्रद्धा शायद ही किसी में पाई जाती हो। हमें टाइम पास के लिए सेलिब्रिटी पसंद हैं, राजनीतिक परिचर्चा के लिए नेता महान लगते हैं । लेकिन हमें अपने घर में उनके जैसा कोई नहीं चाहिए। हमें अपने लिए रतन टाटा जैसा चाहिए।

एक शांत, सौम्य, ईमानदार, भरोसेमंद व्यक्तित्व। जहां आज कोई भी कुछ भी बोल देता है वहीं वो एक ऐसे इंसान थे जिसने कभी न किसी की बुराई की न फालतू के बयान दिए। जब भी बोले गंभीर बातें कीं। जहां आज अपनी पब्लिसिटी एक रवायत बन चुकी है । वहीं रतन टाटा ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, कभी पीआर के फेर में नहीं पड़े। उनके काम ही उनके पीआर थे। जहां आज रईस होना ही काफी नहीं बल्कि रईसी का दम्भ भरना भी जरूरी हो चला है वहीं रतन टाटा ने इससे कोसों दूर कभी अपनी दौलत का रत्ती भर प्रदर्शन तक नहीं किया। वो रहते कहां थे ये भी चंद लोग ही जानते होंगे।


बात विज़न, वैल्यूज, कैरेक्टर की है। किसी के लिए क्या चीज मायने रखती है, किसे सही गलत की पहचान है और जीवन की क्या प्राथमिकतायें हैं। यही इंसान को इंसान से अलग करती हैं। दुर्भाग्य से यही सब अब हमारे बीच बहुत दुर्लभ हो गया है। यही हमारे शोक की एक वजह है।

उद्योगपति तो बहुत से हुए हैं। सभी कुछ न कुछ बेचते आये हैं। टाटा ने भी हमें अपने ढेरों प्रोडक्ट और सेवाएं बेचीं हैं। लेकिन इनसे परे भी बहुत कुछ दिया जो शायद बाकियों की प्राथमिकता में नहीं रहे। धर्मस्थल, धर्मशाला वगैरह से कहीं आगे बढ़ कर अस्पताल, रिसर्च सेंटर, उच्च शिक्षा संस्थान, फेलोशिप, स्कॉलरशिप, ट्रेनिंग सेंटर जैसी चीजें दीं जिनसे जिंदगी आसान हो सके। समान अवसर दिए। समानता दी।

ये कहा जा सकता है कि रईस व्यक्ति के लिए दान करना भला कौन सी बड़ी बात है। लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि देने के लिए बहुत बड़ा दिल होना चाहिए। पैसे वाले तो बहुतेरे हुए हैं लेकिन देने का दिल बहुत विरले ही होता है।

हम जहां भी रहते हों, काम करते हों जिंदगी बिताते हों - अपने इर्दगिर्द नजर डालने पर क्या पाते हैं? क्या कुछ भी ऐसा दिखता है जो हौसला बढ़ाये, हिम्मत जगाए,भरोसा कायम करे, आने वाले समय के लिए आश्वस्त करे? क्या हम खुद भी सिर्फ नाउम्मीदी, निराशा और अवसाद में ही डूबे हैं? इसी इंतज़ार में बैठे हैं कि कोई और आएगा, कोई मसीहा उतरेगा और सब कुछ दुरुस्त कर देगा। हमें कुछ नहीं करना है, सिवाय इंतज़ार के, सिवाय कमियां गिनाने के। टाटा और उनके सरीखों ने कभी मसीहा का इंतज़ार नहीं किया बल्कि खुद अपने हाथों आप के दिलोदिमाग पर भरोसा किया। कर्म करने की गीता की राह पर चले। कुछ नया सोचा, जोखिम उठाये, कर्म करते गए। रुके नहीं। उन्होंने देश के लिए ज़िंदगी जीने का फ़लसफ़ा सिखाया।

अपने ताज होटल को आतंकवादियों के हाथों कोलाबा वाले किनारे पर खड़े होकर नष्ट होते देखते रहे। इसमें इक्तीस कर्मचारी मारे गये थे। टाटा ने इन लोगों के परिजनों के पुनर्वास के काम के लिए एक अलग ट्रस्ट बनाया। आजीवन वेतन सहायता दी।


बच्चों की दुनिया में कहीं भी पढ़ाई का खर्चा उठाने की योजना शुरु की। सदमे से उबरने में मदद के लिए हर प्रभावित व्यक्ति के लिए काउंसलर नियुक्त किया। सारे कर्ज माफ़ कर दिये। होटल को आतंकी हमलों में मारे गये लोगों के नाम समर्पित कर दिया। रतन टाटा ने ग़ुस्सा नहीं जताया। किसी का नाम नहीं लिया। किसी देश पर कोई तोहमत नहीं मढ़ी। उनकी भाषा में संयम दिखा। वह ध्वंस के बाद निर्माण में जुट गये।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस पर शोध किया कि टाटा के कर्मचारी कर्मचारी जान बचा कर क्यों नहीं भागे। भीतर रह कर मेहमानों की मदद की। अपनी जान भी दी। इसके पीछे जो कारण समझ में आया वह था समूह के पीछे उनकी वफ़ादारी।


टाटा ने पहली बार समूची इंडियन कार इंडिका लॉंच की। यह प्रोजेक्ट असफल रहा। टाटा ने इस कंपनी को फ़ोर्ड को बेचने का फ़ैसला किया।फ़ोर्ड का यह कहना कि अगर वह इंडिका को ख़रीदती है तो भारतीय कंपनी पर उसका बड़ा उपकार होगा, यह बात टाटा को बहुत अखरी। उन्होंने बेचने का फ़ैसला रद कर दिया। बाद में 2008 में जब फ़ोर्ड कंपनी संकट में आई तो तो टाटा ने 2.3 अरब डॉलर में जगुआर और लैंड रोवर फ़ोर्ड से ख़रीद लिया। टाटा ने कंपनी को कामाडिटी बिक्री से ब्रांड बिक्री में तब्दील किया। अपने बिज़नेस और सामाजिक कार्यों के ज़रिये टाटा समूह हर भारतीयों के घरों में पहुँचा। और लोगों के मन में जगह बना ली। हर किसी के दिल में इज़्ज़त कमाई है।

रतन टाटा ने अपने काल में कंपनी का राजस्व चालीस गुना बढ़ाया। जबकि लाभ पचास गुना बढ़ा। लाभ का छाछठ फ़ीसदी पैसा देश के निर्माण में लगाया।


उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ पैसा कमाना नहीं सीखना है। हमें इनोवेशन, विनम्रता और शालीनता सीखनी चाहिए । रतन टाटा हमें जो सबसे बड़ी बात सिखाते हैं, वह है विनम्रता। एक ऐसा गुण जो बहुत कम लोगों में होता है। हर किसी की बात सुनना, उनकी राय का सम्मान करना और उनके काम की प्रशंसा करना, एक सच्चा लीडर हमेशा विनम्र और सहानुभूतिपूर्ण होता है।

हमें ये भी सीखना है कि सहानुभूति और करुणा पर आधारित उद्यम समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। ईमानदारी, इनोवेशन तथा लचीलेपन से ही व्यक्तिगत विकास और किसी भी काम की सफलता संभव है। रतन टाटा किसी के निशाने पर नहीं रहे। शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी के निधन पर सोशल मीडिया पर प्रतिकूल टिप्पणियां या चकल्लस जुमले नहीं दिखे। क्योंकि वे सबके लिए सुकून बने रहे। दुख यह है कि अच्छी चीजें, अच्छे इंसान, लगता है खत्म होते जा रहे हैं। जो बची विरासतें हैं वो मरुस्थल में नखलिस्तान की मानिंद हैं। ये हालात डरावने हैं क्योंकि एक दिन जब नखलिस्तान ही नहीं बचेंगे तब क्या होगा?

बात सिर्फ रतन टाटा पर खत्म नहीं होनी चाहिए। डेढ़ सौ करोड़ लोगों के हमारे विशाल परिदृश्य में नखलिस्तान बहुत कम ही दिखाई देते हैं। चुनौती खुद को नखलिस्तान बनाने की है क्योंकि वही हमें न सिर्फ सहेजेगा बल्कि आगे बढ़ाएगा। क्यों न शुरुआत अपने से, आने घर से, अपने इर्दगिर्द से करें। एक रतन में निहित अच्छाईयों के खजाने से अपने लिए कुछ मोती तो चुनें।

(लेखक पत्रकार हैं।)



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