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भारत और पाक के तल्खी के बीच दोनों मुल्कों के लोगों को जोड़ता यह समझौता
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: भारत-पाकिस्तान के तल्ख रिश्ते हमेशा मीडिया की सुर्खियां बने रहते हैं। यह तल्खी 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के जन्म के साथ ही शुरू हो गई थी। तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल व तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बीच भी विभाजन के समय मतभेद हो गया था। अब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के बावजूद आए दिन गोलीबारी सुर्खियों में रहती है। ऐसे में कई बार ऐसा लगता है कि अब जंग छिड़ ही जाएगी। कई बार पड़ोसी मुल्क से राजनायिक संबंध भी खत्म करने की बात उठती है। वैसे दोनों देशों के बीच कई युद्ध के बावजूद एक चीज ऐसी है जो दोनों मुल्कों के लोगों के दिलों को जोड़ती है और वह समझौता एक्सप्रेस। भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी के बावजूद दोनों देशों के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस दोनों देशों के लोगों में रिश्तों की गर्माहट को कायम रखती है।
हजारों सालों के इतिहास में भारत ने कई हमलों व साजिशों का सामना किया है। इनमें ईस्ट इंडिया कंपनी का हमला आखिरी हमला था। भारतीय महाद्वीप अंग्रेजों के साम्राज्य का सबसे बड़ा उपनिवेशिक देश था। करीब 71 साल पहले अंग्रेज हिन्दुस्तान तो छोड़ गए, लेकिन जाते-जाते देश का विभाजन कर गए। ऐसे में उनके द्वारा बिछाई गई रेल लाइनों को बंद करना पड़ा जो सरहदी क्षेत्रों से होकर गुजरती थीं। इन लाइनों को फ्रंटीयर रेलवे के नाम से भी जाना जाता है। इसी फ्रंटीयर रेल लाइन से होकर गुजरती है भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस। सप्ताह में एक दिन चलने वाली इसी ट्रेन से पाकिस्तान के लोग भारत में और भारत के लोग पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। इसी गाड़ी से पाकिस्तानी हिन्दू भी अपने पुरखों के तर्पण के लिए भारत आते हैं। दोनों देशों के कारोबारियों के लिए भी यह एक सस्ता और सुलभ साधन है।
कैसे शुरू हुआ समझौता का सफर
1947 में रेड क्लिफ लाइन यानी भारत-पाक के बीच विभाजन रेखा खिंचने के बाद भारत के पाकिस्तान को जाने वाले सभी रेल और सडक़ मार्ग बंद कर दिए गए। चाहे वह पंजाब में अमृतसर-लाहौर रेल लाइन हो या फिरोजपुर- लाहौर या फिर राजस्थान में मुनाबाव-खोखरा रेल खंड हो। 1971 में भारत-पाक के बीच हुई जंग के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ।
इसके तहत दोनों देशों के बीच रेल संपर्क बहाल करने पर समझौता हुआ। हालांकि इन दोनों देशों के बीच रेलमार्ग पहले से ही था जो अमृतसर से छेहरटाए अटारी वाघा होते हुए लाहौर तक जाता था। इस कारण इस समझौते को अमली जामा पहनाने में समय नहीं लगा और दोनों देशों के बीच विभाजन के समय से बंद पड़ी रेल 22 जुलाई 1976 को एक बार फिर से पटरी पर दौड़ पड़ी। यही नहीं दोनों देशों के रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए शिमला समझौते के करीब 30 साल बाद 18 फरवरी 2006 को दोनों मुल्कों के हुक्मरानों ने राजस्थान में मुनाबाव-खोरापार के बीच थार एक्सप्रेस भी चलाई। हालांकि 1965 की जंग में इस रूट की सीमावर्ती रेल पटरियां उखाड़ दी गई थीं।
इस ट्रेन के साथ चलते हैं घोड़े
हिन्दुस्तान के अटारी व पाकिस्तान के वाघा रेलवे स्टेशनों के बीच करीब तीन किलोमीटर की दूरी तय करने वाली समझौता एक्सप्रेस के चलने से पहले सुरक्षा एजेंसियां रेल पटरियों की गहनता से कई चरणों में जांच करती हैं। इसके बाद इस ट्रेन के भारत की सीमा में प्रवेश करते ही इसे बीएसएफ के जवान अपनी सुरक्षा में ले लेते हैं। इसके साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल के जवानों की घुड़सवार दस्ते की टुकड़ी अटारी रेलवे स्टेशन तक चलती है। इस दौरान जवान ट्रेन के हर कोच पर नजर रखते हैं। इस बीच जरा भी संदेह होने पर वे तुरंत एक्शन लेते हैं। कुछ इसी तरह की प्रक्रिया भारत से पाकिस्तान जाने वाली समझौता के साथ भी पूरी की जाती है।
हर तीन साल बाद होती है समीक्षा बैठक
आरंभिक दौर में अमृतसर- लाहौर के बीच 42 किलोमीटर का सफर तय करने वाली समझौता एक्सप्रेस बाद में सुरक्षा कारणों की वजह से मई 1994 से अटारी-लाहौर के बीच चलने लगी। शुरुआत में इस ट्रेन के लिए दोनों देशों के बीच तीन सालों का समझौता हुआ था। जुलाई 1991 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक और समझौता हुआ। इसी तरह हर तीन वर्ष पर इसकी समीक्षा बैठक की जाती है। इस गाड़ी के लिए छह माह भारत कोच उपलब्ध करवाता है तो छह माह पाकिस्तान। पहले समझौता एक्सप्रेस भारत-पाक के बीच 42 किमी का सफर तय करती थी, लेकिन अब यह मात्र 3 किलोमीटर की दूरी तय करती है। यह फैसला 14 अप्रैल 2000 को लिया गया। यह ट्रेन सबसे कम दूरी तय करने वाली दुनिया की इकलौती ट्रेन है।
यहां नहीं मिलते कुली
यह सुनने में थोड़ा अटपटा जरूरी लगेगा कि ट्रेन को चलाने के लिए इसमें बैठे यात्रियों की मंजूरी लेने की क्या जरुरत है, लेकिन यह सच है। अटारी रेलवे स्टेशन से देश की ही बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की सबसे वीवीआईपी ट्रेन समझौता एक्सप्रेस को चलाने से पहले कस्टम विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ इस गाड़ी में बैठे यात्रियों से भी मंजूरी ली जाती है। इसके बाद ही सिग्नल मिलता है और गार्ड ट्रेन ड्राइवर को हरी झंडी दिखाता है।
यही नहीं इस स्टेशन से टिकट खरीदने वालों का पास्टपोर्ट नंबर भी लिखा जाता है और उन्हें ट्रेन में बैठने की कंफर्म सीट मिलती है। यदि मुसाफिर चाहें कि उनका सामान उठान के लिए कुली मिल जाएं तो यह नामुमिकन है क्योंकि यहां कुलियों की मनाही है। इसलिए रेल यात्रियों को अपना सामान खुद उठाना पड़ता है। इसके लिए एयारपोर्ट की तरह यहां पर भारतीय रेलवे ने ट्रालियों का प्रबंध कर रखा है। यहां पर यात्रियों के लिए खानपान की सर्वोत्तम व्यवस्था है। वह भी ऐसी कि एक बार आप यहां का खाना खालें तो उम्र भर इसका स्वाद नहीं भूलेंगे और अंगुलियां चाटते रह जाएं। इस रेलवे स्टेशन पर बने एयरकंडिशंड वेटिंग रूम में एलईडी पर हमेशा देशभक्ति से संबंधित कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। यहां यात्रियों का प्लेटफार्म टिकट नहीं बल्कि वीजा चेक किया जाता है।
सबके दिलों की है धडक़न है यह ट्रेन
दोनों मुल्कों के बीच सप्ताह में एक दिन मात्र तीन किलोमीटर की दूरी तय कर पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान जाने वाली यह समझौता एक्सप्रेस न केवल पाकिस्तानी बल्कि भारतीय नागरिकों के भी दिलों की धडक़न है। ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी रिश्तेदारी पाकिस्तान में है पाकिस्तानियों की हिन्दुस्तान में। पाकिस्तान के कई ऐसे लोग हैं जो जटिल रोगों को इलाज कराने भारत आते हैं क्योंकि अन्य मुल्कों से भारत में इलाज सस्ता है। फिल्म बजरंगी भाईजान की मुन्नी तो याद ही होगी जो अपनी मां के साथ ख्वाजा के दरबार में माथा टेकने पाकिस्तान से भारत इसी समझौता एक्सप्रेस से आई थी। इस ट्रेन से तमाम पाकिस्तानी हिन्दू व सिख भारत आते हैं जो यहां गंगा स्नान से लेकर अस्थि विसर्जन तक करते हैं। कई पाकिस्तानी हिन्दुओं की यह मुराद पूरी होती है तो कई की नहीं। यही हाल पाकिस्तानी मुसलमानों और वहां रह रहे सिखों का भी हैं।
अटारी स्टेशन पर पाकिस्तान का वीजा जरूरी
अटारी रेलवे स्टेशन अतरराष्ट्रीय रेल मार्ग से जुड़ा होने के कारण यहां की व्यवस्था भी देश के अन्य रेलवे स्टेशनों से अलग है। इस स्टेशन पर जाने के लिए आपके पास पाकिस्तानी वीजा जरूरी है। बिना वीजा के जाना गैरकानूनी व संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। संभवत: यह देश का इकलौता अंरराष्ट्रीय वातानूकुलित रेलवे स्टेशन है जहां जाने के लिए किसी और देश का नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का वीजा लगता है। यह स्टेशन 24 घंटे गुप्तचर व उच्चकोटि की सुरक्षा एजेंसियों से घिरा रहता है। बिना वीजा के किसी भी देश के नागरिक के अटारी रेलवे स्टेशन पर पकड़े जाने पर 14 फोरेन एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाता है जिसमें जमानत बड़ी मुश्किल से मिल पाती है।
रेल मुख्यालय को दी जाती है हर पल की जानकारी
अतंरराष्ट्रीय रेलवे स्टेशन अटारी की पल-पल की गतिविधियों की जानकारी दिल्ली स्थित रेल मुख्यालय को दी जाती है यानी एक तरह से इस स्टेशन पर रेल मुख्यालय बड़ौदा हाउस चौबीस घंटे नजर रखे रहता है। यदि किसी कारण से समझौता एक्सप्रेस कुछ क्षण के लिए लेट हो जाती है तो इसके कारणों को दोनों मुल्कों के रजिस्टर पर लिखा जाता है। उल्लेखनीय है कि इसी साल जनवरी घनी धुंध व कोहरे के कारण समझौता एक्सप्रेस के विलंब से चलने से खफा भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कड़ा नोटिस लेते हुए पाकिस्तान रेलवे व वहां सुरक्षा अधिकारियों को दोटूक लहजे में कहा था कि यदि यह ट्रेन लेट होती है तो उसे भारतीय सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा, बल्कि उसे पाक वापस भेज दिया जाएगा। समझौता एक्सप्रेस व उसके यात्रियों की सुरक्षा के लिए पंजाब पुलिस, आरपीएफ, जीआरपी, बीएसएफ सहित गुप्तचर शाखाओं व सुरक्षा एजेंसियां हर वक्त चौकन्ना रहती हैं। सुरक्षा कारणों से यहां फोटो खींचना व रेलवे स्टेशन के अंदर जाना मना है। यदि रेलवे स्टेशन के अंदर जाना है तो इसके लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय सहित अन्य सुरक्षा एजेंसियों व दर्जनों विभागों से मंजूरी लेनी होगी।