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प्रमोद, अटल के बाद फर्नांडीज की भी चिरविदाई

जार्ज फर्नांडीज लंबी बीमारी के बाद नहीं रहे। पार्किंन्सन और अल्जाइमर ने उन्हें जीते जी मार ही दिया था। कभी विद्रोही नेता के रूप में ख्याति प्राप्त रहा यह जननायक अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुमनामी की चादर में लिपट कर राजनीतिक परिदृश्य से गायब ही हो गया।

Anoop Ojha
Published on: 29 Jan 2019 4:54 PM IST
प्रमोद, अटल के बाद फर्नांडीज की भी चिरविदाई
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रामकृष्ण वाजपेयी

जार्ज फर्नांडीज लंबी बीमारी के बाद नहीं रहे। पार्किंन्सन और अल्जाइमर ने उन्हें जीते जी मार ही दिया था। कभी विद्रोही नेता के रूप में ख्याति प्राप्त रहा यह जननायक अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुमनामी की चादर में लिपट कर राजनीतिक परिदृश्य से गायब ही हो गया। याद मुझे याद आ रही है अटल बिहारी वाजपेयी की, हालांकि आज न तो अटलजी हैं न प्रमोद महाजन और तीसरी कड़ी जो इन दोनों से जुड़कर त्रिवेणी बनाती थी आज वह भी टूट गई। लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है, यह अटलजी ही थे जिन्होंने जार्ज फर्नांडीज को पहचाना था। या ये जार्ज की खासियत थी कि उन्होंने अटलजी में अपने मित्र की छवि देखी थी।

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यह बात उस समय की है जब राजनीतिक रूप से अस्पृश्य मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के लिए मित्र दलों की तलाश कर रही थी चूंकि 1990 के दशक के बाद राम मंदिर आंदोलन को लेकर भाजपा पर सांप्रदायिकता भड़काने का आरोप कुछ ऐसा चस्पा हुआ था जो कि छुड़ाए नहीं छूट रहा था।'

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ऐसे समय में यह जॉर्ज फर्नांडीज जैसे नेता का ही साहस था जिसने भाजपा की ओर दोस्ती का कदम बढ़ा दिया था। यह जॉर्ज फर्नांडीज ही थे, जिन्होंने सबसे पहले भाजपा से हाथ मिलाया था। हालांकि शिवसेना और अकाली दल इससे पहले भाजपा के साथ आ चुके थे। जार्ज के आने के साथ भाजपा और समता पार्टी का गठबंधन सामने आ गया। इसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की शुरुआत भी कहा जा सकता है। 1996 में वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने मगर उनकी सरकार 13 दिन में ही गिर गई। इस चुनाव में समता पार्टी को आठ सीटें मिलीं लेकिन भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। बाद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अस्तित्व का संयोजक जार्ज फर्नांडीज को बनाया गया।

कहा जाता है कि वाजपेयी के दो अहम सिपहसालार थे या भरोसेमंद शख्स थे ये थे जार्ज फर्नांडीज और प्रमोद महाजन। अटलजी ने तो प्रमोद महाजन को तो कई अवसरों पर अपना लक्ष्मण तक बताया था, मगर जॉर्ज की भूमिका भी उनके संकट मोचक से कम नहीं थी। 1999 में जब एनडीए की सरकार बनी तो उस वक़्त जयललिता और ममता बनर्जी ने इस सरकार को समर्थन दिया था लेकिन कैसे इसका जवाब थी जॉर्ज और प्रमोद महाजन की जोड़ी।

जार्ज दोस्तों के दोस्त थे। मतलब ये कि प्रमोद और जार्ज की ट्यूनिंग भी मैच करती थी। जो उन्हें वैचारिक स्तर पर एक दूसरे के करीब लाती थी। उस समय की एक चर्चित घटना याद पड़ती है जब संसद में बहस के दौरान जॉर्ज भाषण दे रहे थे, उन्हें लोकसभा में उनकी पार्टी की सीटों के अनुपात में समय मिला था जो कि जाहिर है बहुत कम था। और उनका समय खत्म हो गया। अब जार्ज को भाषण अधूरा छोड़कर हटना मजबूरी थी। ऐसे में प्रमोद महाजन ने खड़े होकर स्पीकर से कहा था, कि जॉर्ज जितनी देर बोलना चाहें उन्हें बोलने दें और भाजपा के हिस्से का समय उन्हें दे दिया जाए।

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जार्ज समाजवादी थे और समाजवादी रहे उन पर आरोप लगा करता था कि फर्नांडीज का वैचारिक रूपांतरण हो गया था। लोग कहते थे वह संघी हो गए हैं। लेकिन मुझे इसमें भी उनका विद्रोही स्वरूप ही दिखता है। क्योंकि कांग्रेस को वह अपनी पहली शत्रु मानते थे।



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Anoop Ojha

Anoop Ojha

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