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Republic Day 2023: विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा। याद हैं न ये मशहूर गीत, जानें क्या है इसका इतिहास
Republic Day 2023: क्या आपको पता है कि इस गीत की रचना किस व्यक्ति ने और किन परिस्थितियों के बीच की थी? किसने इसे "झंडा गीत" नाम से स्वीकृति दी थी?
Republic Day 2023: विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा" देश प्रेम से ओत प्रोत यह गीत हम सब बचपन से ही सुनते और पढ़ते चले आ रहें हैं। क्या आपको पता है कि इस गीत की रचना किस व्यक्ति ने और किन परिस्थितियों के बीच की थी? किसने इसे "झंडा गीत" नाम से स्वीकृति दी थी? असल में इस गीत की रचना करने वाले श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' कानपुर में नरवल के रहने वाले थे। उनका जन्म 16 सितंबर 1893 को वैश्य परिवार में हुआ था। गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। उनमें देशभक्ति का अटूट जज्बा था, जिसे वह प्रायः अपनी ओजस्वी राष्ट्रीय कविताओं में व्यक्त करते थे। कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923 में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। वह 'सचिव' नाम का एक अखबार भी निकालते थे। जब यह लगभग तय हो गया था कि अब आजादी मिलने ही वाली है, उस वक्त कांग्रेस ने देश के झण्डे का चयन कर लिया था। लेकिन एक अलग "झण्डा गीत" की जरूरत महसूस की जा रही थी।
महसूस हुआ कि भारत माता' उन से वह गीत लिखा रही हों
गणेश शंकर 'विद्यार्थी', पार्षद जी के काव्य-कौशल के कायल थे। विद्यार्थी जी ने पार्षद जी से झण्डा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षद जी कई दिनों तक कोशिश करते रहे, पर वह संतोषजनक झण्डा गीत नहीं लिख पाए। जब विद्यार्थीजी ने पार्षद जी से साफ-साफ कह दिया कि उन्हें हर हाल में कल सुबह तक "झण्डा गीत" चाहिए, तो वह रात में कागज-कलम लेकर जम गये। आधी रात तक उन्होंने झण्डे पर एक नया गीत तो लिख डाला। लेकिन वह खुद उन्हें जमा नहीं। निराश हो कर रात दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे, अचानक उनके भीतर नये भाव उमड़ने लगे। वह बिस्तर से उठ कर नया गीत लिखने बैठ गये। पार्षद जी को लगा जैसे उनकी कलम अपने आप चल रही हो और 'भारत माता' उन से वह गीत लिखा रही हो। यह गीत था-"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।" गीत लिख कर उन्हें बहुत सन्तोष मिला।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी इसे देश के "झण्डा गीत" की स्वीकृति
सुबह होते ही पार्षद जी ने यह गीत 'विद्यार्थी' जी को भेज दिया, जो उन्हें बहुत पसन्द आया। जब यह गीत महात्मा गांधी के पास गया, तो उन्होंने गीत को छोटा करने की सलाह दी। आखिर में, 1938 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के "झण्डा गीत" की स्वीकृति दे दी। यह ऐतिहासिक अधिवेशन हरिपुरा में हुआ था। नेताजी ने झण्डारोहण किया और वहाँ मौजूद करीब पाँच हजार लोगों ने श्यामलाल गुप्त पार्षद द्वारा रचे झण्डा गीत को एक सुर में गाया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर गाया गया था गीत
श्याम लाल गुप्ता (पार्षद) ने पहली बार 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' गीत की पंक्तियां 1924 में जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर कानपुर के फूलबाग मैदान में पंडित जवाहर लाल नेहरु के सामने गाईं थीं। जब यह गीत पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सुना तो उन्हें गले से लगा लिया था। तब उन्होंने कहा था कि यह गीत अमर रहेगा। आजादी के बाद इस गीत को लाल किले से भी गाया गया था
श्यामलाल गुप्ता के नाम से डाक टिकट
कानपुर के रहने वाले श्याम लाल गुप्ता ने आजादी की लड़ाई में फतेहपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी व प्रताप नारायण मिश्र के साथ मिलकर वे भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए थे। वो 19 साल तक फतेहपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 19 अगस्त सन 1972 को उन्हें अभिनंदन व ताम्रपत्र दिया गया। इसके साथ ही 26 जनवरी, 1973 को उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 4 अगस्त 1997 को पार्षद जी के नाम डाक टिकट जारी किया गया।