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किसान आंदोलन खुलासा: झंडा फहराने का सच सामने, क्यों नहीं उठाया कोई कदम
26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन किसान ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के लिए खुफिया विभाग की असफलता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इस दिन को लेकर जनवरी के पहले हफ्ते में विशेष खुफिया निदेशक ब्यूरो की अध्यक्षता में हुई उच्च-स्तरीय समन्वय बैठक में खालिस्तान को लेकर जानकारी दी गई थी।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन किसान ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के लिए खुफिया विभाग की असफलता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इस दिन को लेकर जनवरी के पहले हफ्ते में विशेष खुफिया निदेशक ब्यूरो की अध्यक्षता में हुई उच्च-स्तरीय समन्वय बैठक में खालिस्तान को लेकर जानकारी दी गई थी। बैठक में लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस(SFJ) के मंसूबों के बारे में जानकारी दी गई थी।
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पंजाब में खालिस्तान बनाया जाए
जनवरी के पहले हफ्ते में हुई बैठक में दिल्ली पुलिस के 8, आईबी के 12, रॉ के वरिष्ठ अधिकारी, एसपीजी और हरियाणा पुलिस के शीर्ष अधिकारी शामिल थे। ऐसे में 2007 में गठित अलगाववादी संगठन एसएफजे, एक यूएस-आधारित समूह है जो सिखों के लिए एक अलग देश की मांग करता है।
साथ ही इस संगठन की मांग है कि पंजाब में खालिस्तान बनाया जाए। एसएफजे ने कुछ दिन पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने को लेकर ईनाम राशि को यूएस डॉलर 2,50,000 तक बढ़ाने की घोषणा की थी।
जिसके चलते 1 फरवरी को संसद भवन में झंडा फहराने पर यूएस डॉलर 3,50,000 तक देने का एलान किया था। लेकिन दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च के दौरान हुई हिंसा के बाद कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों संगठनों ने 1 फरवरी को संसद तक अपने प्रस्तावित मार्च को स्थगित कर दिया है।
फोटो-सोशल मीडिया
दिल्ली पुलिस से स्पष्टीकरण मांगा
सूत्रों से सामने आई जानकारी में दावा किया है कि बैठक में, 20 जनवरी से 27 जनवरी तक लाल किले को बंद करने पर भी चर्चा हुई थी और दिल्ली पुलिस से स्पष्टीकरण मांगा गया था। जबकि एक आधिकारिक संचार में कहा गया था, 'लाल किले की प्रतिष्ठित स्थिति के कारण, यहां पर खालिस्तानी झंडा फहराने की एसएफजे की पूर्व योजना के बारे में सावधानी बरतना समझदारी होगी।'
हालाकिं कट्टरपंथी सिखों और एसएफजे के 'किसी भी दुस्साहस' को विफल करने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को दिल्ली में ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व की इमारतों को सुरक्षित करने के लिए कहा गया था। इस बैठक में एसएफजे और कट्टरपंथी सिख समूहों की योजना और रणनीति को लेकर लंबी चर्चा हुई थी।
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जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'बैठक में अधिकारियों ने यह भी कहा था कि कट्टरपंथी सिख हर साल गणतंत्र दिवस को 'काला दिवस' के रूप में मनाते हैं और इस साल इन संगठनों के कई नेता दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन स्थल पर मौजूद हैं।
फोटो-सोशल मीडिया
इनपुट शेयर किया गया
आगे बताते हुए एसएफजे इसी का फायदा उठाते हुए पैसों का लालच दे रहा है। दिल्ली की सीमा पर बैठे आंदोलनकारी किसानों को कट्टरपंथी सिखों द्वारा वित्तीय सहायता दी जा रही है।'
इस सबके बीच दिलचस्प बात तो ये है कि 26 जनवरी को दोपहर 12 बजे के आसपास एक और इनपुट शेयर किया गया था। इस इनपुट में कहा गया था कि ट्रैक्टरों के साथ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रधानमंत्री आवास, गृह मंत्री आवास, राजपथ, इंडिया गेट और लाल किले की ओर बढ़ने की संभावना है।
और ये संदेश उन सभी अधिकारियों को भेजा गया था जो दिल्ली में कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए मौका-ए- जगह पर मौजूद थे। लेकिन इस इनपुट का कोई फर्क ही नहीं पड़ा।
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