×

'सवर्ण' आरक्षण का जश्न मना लिया हो तो, आरक्षण की पोथी भी बांच लीजिए

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्णों को आरक्षण का ऐलान कर अपना पहला ट्रंप कार्ड विरोधियों के सामने रख दिया है। विधानसभा चुनावों में मिली हार से सबक लेते हुए मोदी सरकार विरोधियों पर अब चौतरफा हमला करने का मन बना चुकी है। आज उसका पहला कार्ड समाने आया है ।

Anoop Ojha
Published on: 7 Jan 2019 6:12 PM IST
सवर्ण आरक्षण का जश्न मना लिया हो तो, आरक्षण की पोथी भी बांच लीजिए
X
आरक्षण का ब्रह्मास्त्र : सवर्णों को रिझाने की मोदी की कोशिश

आशीष शर्मा 'ऋषि'

लखनऊ : लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्णों को आरक्षण का ऐलान कर अपना पहला ट्रंप कार्ड विरोधियों के सामने रख दिया है। विधानसभा चुनावों में मिली हार से सबक लेते हुए मोदी सरकार विरोधियों पर अब चौतरफा हमला करने का मन बना चुकी है। आज उसका पहला कार्ड समाने आया है । साल 2019 की पहली कैबिनेट बैठक में सरकार ने पिछड़े सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने का ऐलान कर संविधान संशोधन की तैयारी कर ली है । विरोधी जबतक इसकी काट खोजेंगे मोदी कुक कुछ नया पका देंगे। फिलहाल मुद्दे पर आते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि आरक्षण के दायरे में कौन आएगा और कौन नहीं । इसके साथ ही हम बहुत कुछ बताने वाले हैं ।

यह भी पढ़ें......लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा फैसला, सवर्ण जातियों को मिलेगा 10% आरक्षण

पहले जान लीजिए आरक्षण के दायरे में सिर्फ ये सवर्ण आएंगे

जिनकी आठ लाख से कम आमदनी हो।

जिनकी कृषि भूमि 5 हेक्टेयर से कम हो।

जिनका घर 1000 स्क्वायर फीट से कम हो ।

जिनके पास निगम में आवासीय प्लॉट हो तो 109 यार्ड से कम हो।

जिनके पास निगम से बाहर प्लॉट हो तो 209 यार्ड से कम हो।

अब जानिए अपने देश में सवर्ण कहते किसे हैं

भारतीय शासन व्यवस्था के अनुसार वह व्यक्ति जो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ा न हो वो सवर्ण है।

यह भी पढ़ें.....महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मराठा आरक्षण की राजनीति

भारत में आरक्षण की व्यवस्था

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। शर्त ये है कि साबित किया जा सके कि वे औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं । इसे तय करने के लिए कोई भी राज्य अपने यहां पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करके अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति की जानकारी ले सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो आम तौर पर 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता। कोई भी प्रदेश 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दे सकता।

यह भी पढ़ें.....महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला, मराठों को मिलेगा 16 फीसदी आरक्षण

क्या है मौजूदा आरक्षण की व्यवस्था

एससी के लिए 15, एसटी के लिए 7.5 व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण है। यहां आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। इसीलिए अब तक जिन राज्यों में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रयास हुआ उसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है।

यह भी पढ़ें.....आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को भी मिले आरक्षण : अठावले

क्या नया है सवर्णों को आरक्षण देने का मुद्दा?

आपको बता दें बीजेपी ने अपनी पिछली सरकार में वर्ष 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया था । हालांकि इसका कोई लाभ नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार वर्ष 2004 का चुनाव इंडिया शाइनिंग के साथ हार गई । इसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस ने वर्ष 2006 में एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं । लेकिन इसका क्या हुआ किसी को नहीं पता।

यह भी पढ़ें.....पहले की तरह प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा दे सकती हैं सरकारें

फिर हुआ तो हुआ क्या

वर्ष 1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन पीएम पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय किया था । लेकिन वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया ।

यह भी पढ़ें.....SC का बड़ा फैसला- आधार नागरिक की पहचान, प्रमोशन में आरक्षण का रास्ता साफ

भारत में सबसे पहले कहां लागू हुआ था आरक्षण

कई ज्ञानदत्त मानते और कहते हैं कि देश को मिली आजादी के बाद आरक्षण शुरू हुआ और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने इसकी शुरुआत की । लेकिन ऐसा नहीं है । आपको बता दें, वर्ष 1902 में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने के लिए और प्रशासन में उन्हें हिस्सा देने के लिए आरक्षण का आरंभ किया । कोल्हापुर में पिछड़े वर्गों/समुदायों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए 1902 में अधिसूचना जारी हुई । दलित वर्गों को सबल बनाने के लिए ये पहला सरकारी आदेश है।

यह भी पढ़ें.....SC ने पदोन्नति में आरक्षण का फैसला राज्यों पर छोड़ा, 2006 की स्थिति बरकरार

अब जरा ध्यान दीजिएगा हम आपको टाइम ट्रेवल कराने वाले हैं

वर्ष 1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति हुई। महात्मा ज्योतिराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण या प्रतिनिधित्व की मांग की।

वर्ष 1891 में त्रावणकोर रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी और विदेशियों को भर्ती करने के विरुद्ध प्रदर्शन हुआ और नौकरियों में आरक्षण की मांग की गई।

वर्ष 1901 तक बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण लागू हो चुका था।

वर्ष 1908 में अंग्रेजों द्वारा कई निम्न जातियों के साथ ही समुदायों के लिए आरक्षण आरंभ हुआ।

वर्ष 1909 में ब्रिटेन ने आरक्षण का प्रावधान किया।

वर्ष 1919 में मोंटेंग्‍यू-चेम्सफोर्ड सुधारों को आरंभ किया गया।

वर्ष 1919 में ही अधिनियम 1919 में आरक्षण का प्रावधान हुआ।

वर्ष 1921में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 फीसदी, ब्राह्मणों के लिए 16 फीसदी, मुसलमानों के लिए 16 फीसदी, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 फीसदी और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फीसदी आरक्षण दिया गया।

यह भी पढ़ें.....उपेन्द्र कुशवाहा बोले- SC और HC में लोकतंत्र नहीं, निजी क्षेत्र में भी मांगा आरक्षण

वर्ष 1935 में कांग्रेस ने पूना पैक्ट को अंजाम दिया, इसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित हुए।

वर्ष 1935 में अधिनियम 1935 में आरक्षण का प्रावधान किया गया ।

वर्ष 1942 में दलित चिन्तक और समाजसेवी बीआर अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना कर सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की।

वर्ष 1946 में भारत में कैबिनेट मिशन ने अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया।

वर्ष 1947 में आजादी के बाद अम्बेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भारतीय संविधान ने सिर्फ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध कर दिया, इसके साथ ही सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी ।

यह भी पढ़ें.....पहले की तरह प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा दे सकती हैं सरकारें

आगे जो लिखा गया है उसे ध्यान से पढ़िए ‘10 वर्षों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए ( इसके बाद हर 10 वर्ष के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें फिर बढ़ा दिया जाता है)।

26/01/1950- भारत का संविधान लागू हुआ।

वर्ष 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन हुआ । इसके बाद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से सम्बंधित रिपोर्ट को स्वीकार किया गया । वहीं अन्य पिछड़ी जाति के लिए की गई सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।

वर्ष 1956 में काका कालेलकर की रिपोर्ट के बाद अनुसूचियों में संशोधन हुआ।

वर्ष 1976 में भी अनुसूचियों में संशोधन हुआ।

वर्ष 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग को स्थापित किया गया। आयोग के पास उपजाति, जो अन्य पिछड़े वर्ग कहलाती है, का कोई सटीक आंकड़ा था और ओबीसी की 52 फीसदी आबादी का मूल्यांकन करने के लिए वर्ष 1930 की जनगणना के आंकड़े का प्रयोग करते हुए । पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया गया।

वर्ष 1980 में आयोग ने रिपोर्ट पेश की और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए 22फीसदी से 49.5फीसदी बढ़ोतरी करने की सिफारिश की।

वर्ष 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें तात्कालिक पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू की गई।

वर्ष 1991 में तात्कालिक पीएम नरसिम्हा राव ने सवर्णों में गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण आरंभ किया।

वर्ष 1995 में संसद ने 77वें सांविधानिक संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए आरक्षण का समर्थन करते हुए अनुच्छेद 16(4)(ए) बनाया गया । इसके बाद 85वें संशोधन में अनुवर्ती वरिष्ठता को शामिल किया गया।

वर्ष 1998 में केंद्र सरकार ने विभिन्न सामाजिक समुदायों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए पहली बार राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण का आंकड़ा 32 फीसदी है।

यह भी पढ़ें.....वोट की सौदागरी कर रहे राहुल, आरक्षण-आतंक समझ नहीं आता : रविशंकर

12 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने पीए इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में 12 अगस्त 2005 को 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय सुनाते हुए घोषित किया कि राज्य पेशेवर कॉलेजों सहित सहायता प्राप्त कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक पर नहीं लाद सकता।

वर्ष 2005 में निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन हुआ। इसने अगस्त 2005 में हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पलट दिया।

वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच में एम. नागराज और अन्य बनाम यूनियन बैंक और अन्य के मामले में सांविधानिक वैधता की धारा 16(4) (ए), 16(4) (बी) और धारा 335 के प्रावधान को सही ठहराया।

वर्ष 2006 से केंद्र सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण आरंभ हुआ। इसके बाद कुल आरक्षण 49.5 फीसदी पहुंच गया ।

वर्ष 2007 में केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन दिया ।

वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2008 को सरकार पोषित संस्थानों में 27 फीसदी ओबीसी कोटा आरंभ करने के सरकारी फैसले का समर्थन किया । कोर्ट ने कहा मलाईदार परत को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए । क्या आरक्षण के निजी संस्थानों आरक्षण की गुंजाइश बनायी जा सकती है ।

अब जरा और पीछे चलते हैं जानते हैं पुराणों में क्या लिखा है सवर्णों और जातियों के लिए

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः । वेद-पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।

स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को बताया गया है । जन्म से (प्रत्येक) मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज, वेद के पठान-पाठन से विप्र (विद्वान्) और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है।

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥ [भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 41

हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा (जन्म से नहीं) विभक्त किए गए हैं।

राजन! उन प्राचीन युगों में जो राक्षस समझे जाते थे, वे कलि (कलयुग) में ब्राह्मण माने जाते हैं, क्योंकि अब के ब्राह्मण प्राय: पाखंड करने में तत्पर रहते हैं। दूसरों को ठगना, झूठ बोलना और वैदिक धर्म-कर्मों से अलग रहना कलियुगी ब्राह्मणों का स्वाभाविक गुण बन गया है। (देवीभागवत पुराण)

द्विज शब्द 'द्वि' और 'ज' से बना है। द्वि का अर्थ होता है दो और ज (जायते) का अर्थ होता है जन्म होना अर्थात् जिसका दो बार जन्म हो उसे द्विज कहते हैं। द्विज शब्द का प्रयोग हर उस मानव के लिये किया जाता है जो एक बार पशु के रुपमें माता के गर्भ से जन्म लेते है और फिर बड़ा होने के वाद अच्छी संस्कार से मानव कल्याण हेतु कार्य करने का संकल्प लेता है। द्विज शब्द का प्रयोग किसी एक प्रजाती या केवल कोइ जाती विशेष के लिये नहि किया जाता हैं। मानव जब पैदा होता है तो वो केवल पशु समान होता है परन्तु जब वह संस्कारवान और ज्ञानी होता है तब ही उसका जन्म दुवारा अर्थात असली रुपमें होता है।

संस्कृत में, पंडित आम तौर पर किसी विशेष विषय में विशेष ज्ञान के साथ किसी भी बुद्धिमान, शिक्षित या सीखे व्यक्ति को संदर्भित करता है।यह शब्द पणड्ड से लिया गया है । जिसका अर्थ है इकट्ठा करना, और यह शब्द ज्ञान इकट्ठा करना के संदर्भ में उपयोग है। यह शब्द वैदिक और बाद के वैदिक ग्रंथों में पाया जाता है, लेकिन बिना किसी सामाजिक संदर्भ के।

ब्रिटिश औपनिवेशिक युग क्या कहता है

इस युग के साहित्य में शब्द आम तौर पर हिंदू कानून में विशिष्ट ब्राह्मणों को संदर्भित करता है। पुरोहित, भारतीय धार्मिक संदर्भ में, पारिवारिक चिकित्सक पुजारी, पुरोहित शब्द का अर्थ है जो आपके सामने पुराण रखता है। इस शब्द को पंडित शब्द के साथ समानार्थी रूप से भी प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है पुजारी। तीर्थ पुरोहित का मतलब पुरोहित है जो पवित्र नदियों के तट पर बैठते हैं और हजारों साल पहले एक हिंदू परिवार के पूर्वजों के रिकॉर्ड बनाए रखते है । एक ब्राह्मण पंडित होगा लेकिन एक पंडित या पुरोहित को ब्राह्मण के रूप में बुलाया जा सकता है या नहीं बुलाया जा सकता है। सभी पंडित ब्राह्मण नहीं हैं । एक ब्राह्मण होने के लिए लक्षण और आवश्यकताएं बहुत कठोर हैं।उदाहरण: क्वांटम भौतिकी में पीएचडी एक पंडित है लेकिन वह ब्राह्मण नहीं हो सकता है । जब तक कि वह ब्रह्म (इस सारे विश्व का परम सत्य) को खोजने के लिए अपने ज्ञान का उपयोग न करे।

यह भी पढ़ें.....संजीव बालियान ने कहा- सपा की चुनाव से पहले आरक्षण की बात सिर्फ मीठी गोली

शब्द द्विज किसी भी वेद, किसी उपनिषद में नहीं हैं, न ही किसी भी वेदांगा साहित्य जैसे कि व्यंजन, शिक्षा, निरुक्तता, चन्द, श्रुत-सूत्र या गृहय-सूत्र में पाया जाता है। यह शब्द 2 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से पहले के सभी धार्मिक और अनुष्ठान से संबंधित पाठ में नहीं है। संस्कृत में एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं शब्द का अर्थ उनके संदर्भ पर निर्भर करता है । वर्ण का मूल शब्द व्र है। इसका उपयोग गिनने, वर्गीकृत करने, वर्णन करने या चुनने के लिए होता है । यह शब्द ऋग्वेद में प्रकट होता है, जहां इसका मतलब है रंग, बाहरी रूप, आकृति या आकार । महाभारत में इस शब्द का मतलब है रंग।

उम्मीद है आपको आरक्षण कथा समझ आ गई होगी। लेकिन अभी पीएम मोदी या उनके किसी साथी मंत्री ने ये साफ़ नहीं किया है कि कोर्ट में जब इसे चुनौती दी जाएगी तो कैसे बचाव कर पाएगी उनकी सरकार।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

Next Story