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नोटबंदी ब्लंडर-प्लंडर हो सकती है, लेकिन कांग्रेस को 'काला दिवस' मनाने का हक नहीं

Rishi
Published on: 8 Nov 2017 3:58 PM IST
नोटबंदी ब्लंडर-प्लंडर हो सकती है, लेकिन कांग्रेस को काला दिवस मनाने का हक नहीं
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ठीक है कि नोटबंदी ब्लंडर से लेकर प्लंडर तक हो सकती है। लेकिन कांग्रेस को 'काला दिवस' मनाने का कोई हक़ नहीं। यूं काला दिवस मनाकर उसकी कालिमा छंट नहीं जायेगी।

कांग्रेस पार्टी इस देश में संस्थागत भ्रष्टाचार की जननी है। और जब तक सूरज चाँद रहेगा, उसका ये तमगा भी कायम रहेगा। और इसलिए कल जब पूर्व प्रधानमंत्री 'नोटबंदी' पर अपना विरोध दर्ज करा रहे थे। तब उनकी मासूमियत पर तरस आ रहा था कि वे देश के सबसे पावरफुल पद पर रहकर भी रिमोट से संचालित हो रहे थे। आज जब कि उन्हें किसी पद का माया मोह नहीं होना चाहिए तब भी वे उसी पैटर्न पर जी रहे हैं।

उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी और पेशेगत विद्वता संदेह से परे हो सकती है। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि जब टू जी स्पेक्ट्रम, कोल आंवटन, कॉमनवेल्थ घोटाले उनकी नाक के नीचे, उनकी आँखों के सामने घटते रहे। उनके पास पॉवर थी, उनके पास अवसर था, स्टैंड लेने का। अपनी ईमानदारी और अपने जमीर को साबित करने का। लेकिन वे एक निर्ल्लज खामोशी ओढ़े रहे।

इसलिए आज उनके तमाम उपदेश, प्रवचन और ज्ञान बेमानी हैं। अगर उन्हें बोलना ही है तो इस बात पर बोलें कि जब उनके पास बोलने के मौके थे तब वे क्यों नहीं बोले ?

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ये तो थे मनमोहन बाबा, लेकिन अब देखिए ना मेरी तमाम पैरवी भी राहुल गांधी जी के काम नहीं आ रही है। किस्मत उनकी खोटी है तो खराब मेरी भी कम नहीं। अब देखिये न ‘नोटबंदी’ नामक हाहाकार की पुण्यतिथि पर उन्होंने एक ट्वीट किया। इस ट्वीट में एक तस्वीर थी और एक शायरी।

तस्वीर के मुताबिक नोटबंदी की लाइन में लगे एक बुजुर्गवार, जो फटेहाल भी दिख रहे हैं और रो भी रहे हैं। ऊपर से इस तस्वीर के साथ उनकी टीम की वेल रिसर्चड लाइनें कि...

“एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है

तुमने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना”

ऐसी मारक लाइनें कि मेरी आँखें भी दरिया होने वाली थीं। तभी मैंने एक अखबार की वेबसाइट पर इससे जुड़ी खबर देखी। जिसके मुताबिक जिन बुजुर्गवार की तस्वीर राहुल गांधी के ट्वीट में नोटबंदी के नुकसान के तौर पर दिखाई गई थी। वह तस्वीर 1991 में सेना से रिटायर हो चुके अस्सी वर्षीय नंदलाल जी की है। जो नोटबंदी का समर्थन कर रहे हैं। मोदी सरकार की नीतियों के समर्थक हैं। और मानते हैं कि इससे शुरुआत में कुछ दिक्कतें जरूर हुईं थीं। लेकिन यह सरकार द्वारा जनता के हित में उठाया गया कदम था।

अपनी तस्वीर के बारे में वे कहते हैं नोटबंदी के दौरान जब वे बैंक से पैसे निकालने गए थे। तब उन्हें भीड़ में से किसी का धक्का लगा और उनके पैर के ऊपर किसी महिला का पैर रख गया। इस वजह से वे रोने लगे। बाकी उन्हें नोटबंदी से कोई समस्या नहीं है।





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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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