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अधिकार बहुत हैं महिलाओं के पास, बस जानकारी की है कमी

seema
Published on: 15 Dec 2017 12:49 PM IST
अधिकार बहुत हैं महिलाओं के पास, बस जानकारी की है कमी
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भारत में महिलाओं के लिए ऐसे ढेरों कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में इन अधिकारों का इस्तेमाल महिलाएं नहीं कर पाती हैं। जानते हैं कि महिलाओं को क्या-क्या अधिकार मिले हुए हैं।

पिता की संपत्ति का अधिकार

भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद बनाई हुई संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा। यहंा तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा।

पति की संपत्ति पर अधिकार

शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत नहीं होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अॢजत की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं।

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अगर पति-पत्नी साथ नहीं रहना चाहते तो तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है। अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है। मुआवजा राशि पति के वेतन और उसकी अॢजत संपत्ति के आधार पर तय की जाती है।

अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय

कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अॢजत की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है। अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता। महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चों को बेदखल भी कर सकती है।

घरेलू हिंसा से सुरक्षा

महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है। आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है। घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताडऩा। ये भी जान लीजिये कि केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आॢथक प्रताडऩा भी घरेलू हिंसा के बराबर है। ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है। किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताडऩा है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है। बिना शादी साथ रहने यानी 'लिव इन' संबंधों में भी यह लागू होता है।

पुलिस से जुड़े अधिकार

एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है। महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती। बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है।

मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक

अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद नि:शुल्क है। वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है। यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आॢथक स्थिति की महिला के लिए है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है।

ये भी हैं अधिकार

भारतीय संविधान के कई प्रावधान विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। इस बात की जानकारी महिलाओं को अवश्य होना चाहिए।

संविधान के अनुच्छेद 14 में कानूनी समानता

  • अनुच्छेद 15 (3) में जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना
  • अनुच्छेद 16 (1) में लोक सेवाओं में बिना भेदभाव के अवसर की समानता
  • अनुच्छेद 19 (1) में समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 21 में स्त्री एवं पुरुष दोनों को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना
  • अनुच्छेद 23-24 में शोषण के विरुद्ध समान अधिकार
  • अनुच्छेद 25-28 में धाॢमक स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
  • अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  • अनुच्छेद 39 (घ) में समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार
  • अनुच्छेद 41 में बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अन्य अभाव की दशाओं में सहायता पाने का अधिकार
  • अनुच्छेद 42 में प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था
  • अनुच्छेद 51 (क) (ड) में कहा गया है कि भारत के सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों
  • अनुच्छेद 33 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है
  • अनुच्छेद 332 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए
  • आरक्षण की व्यवस्था है।

गर्भावस्था में ही मादा भ्रूण को नष्ट करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण रोकने हेतु 'प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियमÓ 1994 में लागू किया गया।

दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में 'दहेज निषेध अधिनियमÓ बनाया गया। वर्ष 1986 में इसे संशोधित किया गया।

कामकाजी महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश की विशेष व्यवस्था, 1961 में प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित करके दी गयी। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है।

महिलाओं को पुरुषों के बराबर समान कार्य के लिए समान वेतन देने के लिए 'समान पारिश्रमिक अधिनियमÓ 1976 में पास किया गया।

1979 में पारित एक कानून के अनुसार महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय एवं स्नानगृहों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया है।

'ठेका श्रम अधिनियमÓ 1970 में प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं से एक दिन में मात्र 9 घंटे ही कार्य लिया जाए।

भारतीय दंड संहिता में व्यवस्था

धारा 294 : सार्वजनिक स्थान पर बुरी-बुरी गालियां देना और अश्लील गाने आदि गाना

धारा 313 : महिला की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात करवाना

धारा 314 : गर्भपात करने के उद्देश्य से किए गए कृत्य द्वारा महिला की मृत्यु

धारा 315 : शिशु जन्म को रोकना या जन्म के पश्चात उसे मार देना

धारा 316 : सजीव, नवजात बच्चे को मारना

धारा 318 : नवजात शिशु के जन्म को छुपाने के उद्देश्य से उसके मृत शरीर को गाडऩा या छिपाना

धारा 354 : महिला की लज्जाशीलता भंग करने के लिए उसके साथ बल प्रयोग

धारा 363 : महिला का अपहरण करना

धारा 364 : हत्या करने के उद्देश्य से महिला का अपहरण करना

धारा 366 : किसी महिला को विवाह करने के लिए विवश करना या उसे भ्रष्ट करने के लिए अपहरण करना

धारा 371 : महिला के साथ दास के समान व्यवहार

धारा 372 : वेश्यावृत्ति के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को बेचना या भाड़े पर देना

धारा 373 : वेश्यावृत्ति आदि के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को खरीदना

धारा 376 : किसी महिला से कोई अन्य पुरुष उसकी इच्छा एवं सहमति के बिना या भयभीत कर सहमति प्राप्त कर अथवा उसका पति बनकर या उसकी मानसिक स्थिति का लाभ उठाकर या 16 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ उसकी सहमति से दैहिक संबंध करना या 15 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसके पति द्वारा संभोग

सख्त सजा

कोई पुलिस अधिकारी, सिविल अधिकारी, प्रबंधन अधिकारी, अस्पताल के स्टाफ का कोई व्यक्ति गर्भवती महिला, 12 वर्ष से कम आयु की लड़की जो उनके अभिरक्षण में हो, अकेले या सामूहिक रूप से बलात्कार करता है, इसे विशिष्ट श्रेणी का अपराध माना जाकर विधान में इस धारा के अंतर्गत कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है।

ऐसे केस दफा 372 (2) के तहत कोर्ट में 'इन कैमराÓ यानी बंद कमरे में सुने जायेंगे।

धारा १०० : बलात्कार करने के आशय से किए गए हमले से बचाव के क्रम में हमलावर को मौत के घाट उतार देने का अधिकार किसी भी महिला को है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ए) के अनुसार बलात्कार के प्रकरण में कोर्ट के समक्ष पीडि़त महिला यदि यह कथन देती है कि संभोग के लिए उसने सहमति नहीं दी थी, तब कोर्ट यही मानेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी। इस तथ्य को नकारने का भार आरोपी पर होगा।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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