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झारखंड : उड़न परी रिंकू को चाहिए सरकार का साथ, मिलेगा क्या ?
झारखंड में एक छोटा सा गांव है मुटकू यहां की बिटिया रिंकू की तमन्ना है कि वो दूसरी पीटी ऊषा बने। आपको जानकर हैरत होगी कि 14 साल की रिंकू सौ से ज्यादा मेडल अपने नाम कर चुकी है। ये उपलब्धि उसे सीमित संसाधनों और गरीबी से जंग कर हासिल हुई है।
जमशेदपुर : झारखंड में एक छोटा सा गांव है मुटकू यहां की बिटिया रिंकू की तमन्ना है कि वो दूसरी पीटी ऊषा बने। आपको जानकर हैरत होगी कि 14 साल की रिंकू सौ से ज्यादा मेडल अपने नाम कर चुकी है। ये उपलब्धि उसे सीमित संसाधनों और गरीबी से जंग कर हासिल हुई है।
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हौसलों की उड़ान
कभी बासी तो कभी सिर्फ माड़-भात खाकर रिंकू ने जब गांव की पथरीली जमीन पर दौड़ना शुरू किया तो जिला, राज्य व राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदकों का ढेर लग दिया। सिर्फ इतना ही नहीं 31वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी तमगा हासिल किया।
जमशेदपुर से सिर्फ दस किमी दूर है मुटकू गांव। शहर से लगे गांव के बाद भी रिंकू को मैदान नहीं मिला है अभ्यास के लिए।
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पिता ने लगाए उम्मीदों को पंख
रिंकू दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी के अलावा बोकारो, रांची, धनबाद, देवघर, जमशेदपुर में अपने किसान पिता राजेश सिंह के प्रशिक्षण के बल पर विद्यालय, इंटर स्कूल, जिला, राज्य के साथ ही नेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कार जीतती आई है।
राजेश कहते हैं, मेरी होनहार बिटिया को कोई प्रोत्साहन या सुविधा नहीं मिल सकी है। जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने भी रिंकू की कोई सुध नहीं ली।
थोड़ा है थोड़े की जरुरत है
किसी भी प्रतियोगिता में शामिल होने से हफ्ते भर पहले राजेश रिंकू को रांची ले जाते हैं। वहां सिंथेटिक ट्रैक पर रिंकू दिनभर पसीना बहाती है और शाम को घर लौट आती है। राजेश कहते हैं कि पैसे की तंगी के कारण चाह कर भी वो बेटी को एक हफ्ते से अधिक रांची नहीं ले जा सकते हैं। लेकिन सिर्फ इतने से ही जब बेटी पुरस्कार जीत घर आती है तो सुकून मिलता है।