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जम्मू-कश्मीर में लड़ने वाला रालोद हरियाणा के मैदान से गायब, आखिर क्या है जयंत चौधरी की सियासी मजबूरी
Haryana Elections 2024: राष्ट्रीय लोकदल ने जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं मगर हरियाणा के विधानसभा चुनाव से कन्नी काट ली है।
Haryana Elections 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की गतिविधियां काफी तेज हो गई है। भाजपा और कांग्रेस की ओर से एक-दूसरे को पटखनी देने की पूरी कोशिश की जा रही है। कांग्रेस ने इस बार भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में जाट मतदाताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है मगर जाट मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल चुनाव से पूरी तरह गायब है।
मजे की बात यह है कि राष्ट्रीय लोकदल ने जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं मगर हरियाणा के विधानसभा चुनाव से कन्नी काट ली है। बीजेपी हरियाणा में राष्ट्रीय लोकदल पर दबाव बनाने में कामयाब रही है। किसान आंदोलन से रालोद की दूरी को भी इसका बड़ा कारण माना जा रहा है।
भाजपा के लिए छोड़ा हरियाणा का मैदान
कुछ समय पूर्व रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था और उनके इस फैसले पर हैरानी जताई जा रही है और अब उससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि रालोद ने भाजपा के लिए हरियाणा का मैदान छोड़ दिया है। जम्मू-कश्मीर में रालोद 12 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है मगर सियासी नजरिए से अहम हरियाणा के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने एक भी प्रत्याशी नहीं उतारा है।
अब जयंत चौधरी की रणनीति को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह सवाल उठाया जा रहा है कि भाजपा से गठबंधन होने के कारण जयंत चौधरी ने हरियाणा के चुनाव से दूर रहने का फैसला लिया है या इस फैसले के पीछे उनकी कोई सियासी मजबूरी है। वैसे रालोद के समर्थकों को हरियाणा चुनाव से जयंत चौधरी की दूरी रास नहीं आ रही है।
गठबंधन धर्म निभाने का दावा
रालोद मुखिया जयंत चौधरी के इस फैसले पर सवाल उठने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने सफाई भी पेश की है। उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ रालोद का गठबंधन है और ऐसे में पार्टी को अकेले नहीं बल्कि भाजपा के साथ मिलकर हरियाणा के चुनाव मैदान में उतरना था।
भाजपा की ओर से हरियाणा का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया गया और इसीलिए बाद में हम भाजपा के इस फैसले के साथ खड़े हो गए क्योंकि हमें गठबंधन धर्म निभाना आता है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की 12 सीटों पर हमने चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उसके पीछे भाजपा की भी रणनीति रही है।
भाजपा की मदद करेगी पार्टी
जयंत चौधरी की सोच और मजबूरी के बारे में सवाल पूछे जाने पर रालोद के एक और राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र शर्मा का कहना है कि हमारे नेता जयंत चौधरी काफी सोच समझ के बाद कोई भी फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन में होने के कारण हमने चुनाव न लड़ने और चुनाव में उतरे भाजपा प्रत्याशियों की जीत पर फोकस करने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि इसी कारण हमने हरियाणा का विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया है और पूरी पार्टी जयंत चौधरी के साथ खड़ी है। पार्टी में जयंत चौधरी के इस कदम के खिलाफ कोई आक्रोश के स्वर नहीं है। इसी कारण हमने हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है।
भाजपा राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है और हम और हमारी पार्टी के कार्यकर्ता भाजपा प्रत्याशियों को जिताने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
किसानों की नाराजगी भी बड़ा कारण
सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा का एक अलग तरह का अनुशासन है और अब गठबंधन धर्म के तहत जयंत चौधरी को भी भाजपा का समर्थन करना होगा। चौधरी हरियाणा में किसी भी प्रकार की सौदेबाजी की स्थिति में नहीं थे और इसलिए उन्होंने चुनाव से दूर रहने में ही भलाई समझी। जानकारों के मुताबिक किसान आंदोलन के समय जयंत चौधरी ने पूरी सक्रियता के साथ आंदोलन का साथ नहीं दिया था और इसे लेकर हरियाणा के किसानों में काफी नाराजगी दिख रही है।
ऐसे में हरियाणा के विधानसभा चुनाव में रालोद पिछड़ती हुई नजर आ रही थी और इसी कारण पार्टी ने विधानसभा चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। इसके साथ ही जयंत चौधरी ने गठबंधन धर्म का पालन करने का फैसला किया।
जयंत चौधरी ने अभी तक इस मुद्दे पर खुलकर कोई बात नहीं की है मगर माना जा रहा है कि हरियाणा में संगठनात्मक ढांचा कमजोर होने की वजह से पार्टी को चुनाव लड़कर भी कोई सियासी फायदा होता नजर नहीं आ रहा था।