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भारत-म्यांमार-थाइलैंड के बीच सड़क संपर्क अब भी अधर में
भारत और इसके दक्षिणपूर्व एशियाई पड़ोसी देश म्यांमार और थाइलैंड के बीच वर्ष 2002 में राजमार्ग से निर्बाध सड़क संपर्क (कनेक्टिविटी) की योजना बनाई गई थी, लेकिन दुर्भाग्य से यह त्रिकोणीय राजमार्ग रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15वें भारत-एशियाई सम्मेलन के लिए मनीला पहुंचने तक भी पूरा होने के आस-पास भी नहीं पहुंच पाया है।
नई दिल्ली : भारत और इसके दक्षिणपूर्व एशियाई पड़ोसी देश म्यांमार और थाइलैंड के बीच वर्ष 2002 में राजमार्ग से निर्बाध सड़क संपर्क (कनेक्टिविटी) की योजना बनाई गई थी, लेकिन दुर्भाग्य से यह त्रिकोणीय राजमार्ग रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15वें भारत-एशियाई सम्मेलन के लिए मनीला पहुंचने तक भी पूरा होने के आस-पास भी नहीं पहुंच पाया है।
यह राजमार्ग पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार और इसके बाद थाइलैंड को जोड़ेगा, जिससे भारत इन एशियाई देशों के साथ सड़क मार्ग के जरिए सीधे सामानों, लोगों और संस्कृति का आदान-प्रदान कर पाएगा।
सितंबर 2012 में तीनों देशों की ओर से संयुक्त कार्य बल की बैठक के अनुसार, भारत, म्यांमार और थाइलैंड को जोड़ने वाला 1700 किलोमीटर लंबा यह त्रिकोणीय राजमार्ग वर्ष 2016 तक पूरा होने की उम्मीद थी। बाद में, इसे पूरा करने का लक्ष्य लगातार आगे किया जाता रहा और अब इसे पूरा करने का लक्ष्य बढ़ाकर 2020 कर दिया गया है।
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मोदी ने नवंबर, 2015 में क्वालालंपुर में 13वें एशियाई-भारत सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान आश्वस्त करते हुए कहा था कि त्रिकोणीय राजमार्ग परियोजना में अच्छी प्रगति हो रही है और यह 2018 तक पूरा हो जाएगा। भाजपा सरकार पूर्ववर्ती सरकार के पूर्व की ओर देखो (लुक ईस्ट) नीति के बदले पूर्व की ओर कार्य करो (एक्ट ईस्ट) की नीति लाई थी और इसे ज्यादा मजबूत और निष्पादन उन्मुख बनाने का दावा किया था।
इस परियोजना में देरी ऐसे समय हो रहा है जब चीन अपने पड़ोसियों के साथ गलियारों का विस्तार कर रहा है और साथ ही वेयरहाउस, फैक्ट्री शेड्स और ऑफिस ब्लॉक का निर्माण कर रहा है।
यह वर्ष एशियाई-भारत संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों पक्ष वार्ता साझेदारी की रजत जयंती मना रहा है। मोदी सरकार भी एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों का उत्सव बनाने हेतु जनवरी में सभी 10 एशियाई देशों के प्रमुखों को गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित किया है।
यह परियोजना भारत में मणिपुर से म्यांमार के मंडालय होते हुए थाइलैंड को जोड़ेगी। वास्तव में इस परियोजना की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में रखी गई थी। इसे अवसर और दोस्ती के राजमार्ग के रूप में देखा गया जो न केवल सेवा और वस्तुओं का आदान-प्रदान करेगा, बल्कि लोगों और विचारों का आदान-प्रदान भी करेगा।
वर्ष 2002 में इस परियोजना को लांच करते समय म्यांमार के राजदूत रह चुके राजीव भाटिया ने आईएएनएस को बताया, "इस परियोजना के लिए समय सीमा बढ़ाया जा रहा है। भारत सरकार जो कर सकती है वह कर रही है। मुख्य मुद्दा एशियाई देशों के बीच संपर्क बढ़ाना है।"
विकासशील देशों के लिए रिसर्च और सूचना प्रणाली (आरआईएस) में एशिया-भारत केंद्र के संयोजक प्रबीर डे ने कहा, "सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने 272.8 लाख डॉलर में म्यांमार के तमु-कालेवा-कालेम्यो सेक्शन में 160 किलोमीटर लंबे सड़क को अपग्रेड किया है। वहीं म्यांमार में 120 किलोमीटर लंबे कालेवा और यार्गी के बीच नए सड़क मार्ग पर काम चल रहा है।"
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डे ने कहा कि म्यांमार में सैन्य तानाशाह ने इस परियोजना में कोई खास रुचि नहीं दिखाई थी लेकिन स्टेट काउंसिलर आंग सान सू की इस परियोजना के बारे में काफी सकारात्मक हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना में व्यक्तिगत रुचि दिखाई है।
तीनों देश मोटर वाहन समझौते पर भी वार्ता कर रहे हैं ताकि इस राजमार्ग पर वाहनों की आवाजाही निर्बाध तरीके से हो पाए।
कांग्रेस नेता और विदेश मामलों पर संसदीय स्थायी समिति के चेयरमैन शशि थरूर ने इस मुद्दे पर आईएएनएस से कहा, "दोनों पूर्व की ओर देखो (लुक ईस्ट) और पूर्व की ओर काम करो (एक्ट ईस्ट) का मुख्य उद्देश्य दक्षिणपूर्वी एशियाई पड़ोसियों के बीच संपर्क और आर्थिक वृद्धि बढ़ाना है। दुर्भाग्य से सड़क बनाना और रेल लाइन बिछाना भाषण देने से ज्यादा कठिन है। परियोजनाओं को लंबा खींचना हमारी कमजोरी है और इस मामले में चीन के साथ हमारी तुलना बिल्कुल भी नहीं है।"
--आईएएनएस