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Mohan Bhagwat Birthday: वेटनरी डॉक्टर से संघ प्रमुख तक का सफर, मोहन भागवत के कई बयानों से आया सियासी भूचाल
Mohan Bhagwat Birthday: मोहन भागवत की जिंदगी का सफरनामा काफी दिलचस्प है और उन्होंने पशु चिकित्सक से सरसंघचालक तक की यात्रा तय की है।
Mohan Bhagwat Birthday: देश में भाजपा की मजबूती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। मोहन भागवत ने 2009 से सरसंघचालक के रूप में संघ की कमान संभाल रखी है और आज वे अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। 2009 में उन्होंने 59 साल की उम्र में ही इस बड़े संगठन की कमान संभाली थी और उसके बाद से देश के विभिन्न हिस्सों में संघ का व्यापक विस्तार हुआ है। मोहन भागवत की जिंदगी का सफरनामा काफी दिलचस्प है और उन्होंने पशु चिकित्सक से सरसंघचालक तक की यात्रा तय की है। संघ प्रमुख बनने के बाद वे समय-समय पर ऐसे बयान देते रहे हैं जिनकी सियासी गलियारों में खूब चर्चा होती रही है। उनके कई बयानों को लेकर विवाद भी पैदा हो चुके हैं।
संघ से मोहन भागवत की तीन पीढ़ियों का जुड़ाव
संघ प्रमुख मोहन भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ था। उनके परिवार का संघ से काफी पुराना नाता रहा है। भागवत का परिवार तीन पीढ़ियां से संघ से जुड़ी रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी और मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत डॉ हेडगेवार के सहपाठी हुआ करते थे। 1925 में संघ की स्थापना के बाद ही नारायण भागवत ने संघ को मजबूत बनाने में के लिए काम करना शुरू कर दिया था।
नारायण भागवत के बाद मोहन भागवत के पिता मधुकरराव भागवत ने भी संघ को मजबूत बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने संघ प्रचारक के रूप में भी काम किया था। मोहन भागवत के दादा और पिता दोनों वकील थे और और संघ के लिए उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। मोहन भागवत पर भी अपने दादा और पिता का काफी असर दिखा और वे शुरुआत से ही संघ में सक्रिय हो गए थे।
महाराष्ट्र सरकार में वेटनरी ऑफिसर के रूप में किया काम
मोहन भागवत ने अपनी स्कूली शिक्षा चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने चन्द्रपुर के जनता कॉलेज से बीएससी की शिक्षा हासिल की। फिर पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मोहन भागवत ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद महाराष्ट्र में कुछ समय तक सरकारी नौकरी भी की है।
पशु चिकित्सा और पशुपालन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहन भागवत ने महाराष्ट्र सरकार के पशुपालन विभाग में बतौर वेटनरी ऑफिसर काम किया। नौकरी की शुरुआत में उनकी पोस्टिंग चंद्रपुर में ही हुई थी जहां उनका जन्म हुआ था।
संघ प्रचारक के रूप में शुरू किया काम
1974 में मोहन भागवत पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अकोला पहुंचे मगर कुछ समय बाद 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आपातकाल का विरोध करने पर भागवत के माता-पिता को जेल में डाल दिया गया। ऐसे माहौल में मोहन भागवत अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। पढ़ाई छोड़कर उन्होंने संघ प्रचारक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए मोहन भागवत कुछ समय तक अज्ञातवास में भी रहे।
2009 में बने सरसंघचालक
संघ में काम शुरू करने के बाद मोहन भागवत लगातार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते रहे। 1991 में वे संघ के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने। उन्होंने 1999 तक इस पद पर काम किया। 1999 में उन्हें पूरे देश के संघ प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया। इस बीच तत्कालीन संघ प्रमुख राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया और तत्कालीन सरकार्यवाह एच.वी.शेषाद्री ने स्वास्थ्य कारणों से 2000 में अपना पद छोड़ दिया। इसके बाद केएस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख बनाया गया और मोहन भागवत ने संघ के सरकार्यवाह की जिम्मेदारी संभाली।
2009 में सुदर्शन के पद को छोड़ने के बाद मोहन भागवत को आरएसएस के सरसंघचालक की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। वे 59 वर्ष की उम्र में सरसंघचालक बने थे। गुरु गोलवलकर के बाद इतनी कम उम्र में सरसंघचालक बनने वाले वे दूसरे व्यक्ति हैं।
भागवत के कई बयानों पर पैदा हुआ विवाद
मोहन भागवत के बारे में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि उन्हें कई भाषाओं की जानकारी है। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। वे अच्छे गायक हैं और बांसुरी वादन में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल है। उन्होंने कई गीत भी लिखे हैं।
मोहन भागवत के बयानों को लेकर देश में कई बार सियासी भूचाल खड़ा हो चुका है। वे कई बार भाजपा को नसीहत देने वाले बयान दे चुके हैं जिसकी मीडिया में खूब चर्चा रही है। इसके साथ ही हिंदू राष्ट्र को लेकर दिए गए उनके बयान पर भी खासा विवाद पैदा हुआ था। एक बार उन्होंने आरक्षण की समीक्षा को जरूरी बता कर बड़ा विवाद पैदा कर दिया था जिससे भाजपा को बिहार चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ा था। एक बार उन्होंने कहा था कि पंडितों ने जाति बनाकर समाज को बांट दिया। इसके अलावा भी भागवत समय-समय पर कई ऐसे बयान देते रहे हैं जिन्हें लेकर खूब विवाद पैदा हुआ।