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सपा टूटी तो बदल जाएगी यूपी की सियासी तस्वीर, बिछ रही है बिसात

सपा ने सिटिंग सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान रोका हुआ है। क्योंकि आधे से ज्यादा सीटों पर विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ जनता और कार्यकर्ताओं में भारी रोष है। सपा के भीतरी जानकार ही खुलकर यह सब उगल रहे हैं कि यूपी में पुलिस और सरकारी तंत्र की लूट इसलिए बढ़ी है क्योंकि सपा के पारिवारिक कलह से शासन तंत्र को खुली लूट करने का मौका मिला गया है।

zafar
Published on: 27 Aug 2016 3:13 PM GMT
सपा टूटी तो बदल जाएगी यूपी की सियासी तस्वीर, बिछ रही है बिसात
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नई दिल्ली ब्यूरो

समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के कुनबे में वर्चस्व की लड़ाई से आगामी 5 महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में सपा और प्रमुख विरोधी

पार्टियों के आंतरिक समीकरणों में भारी उलट फेर होने के आसार बढ़ गए हैं। सपा में पिछले एक साल से चल रहे इस शीत युद्ध का सबसे बुरा असर पार्टी की चुनावी रणनीति पर पड़ा है।

बगावत का खतरा

यूपी की सियासत के जानकारों को पुख्ता यकीन है कि सपा में विधानसभा चुनावों के ऐलान के पहले भारी टूट हो सकती है। सपा के ऐसे विधायक

जिन्हें टिकट से वंचित किया जाएगा, पार्टी को सबसे ज्यादा चुनौती देंगे। वजह यह है कि जीत का दमखम रखने वाले सपा के लोगों को बाकी पार्टियां टिकट की पेशकश करेंगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो बागी विधायक अपने क्षेत्र में सपा के अधिकृत उम्मीदवार को हराने के लिए वोट करेंगे। यूपी की सियासत की नब्ज को कई दशक टटोल चुके मुलायम सिंह को बखूबी पता है कि सपा के साथ बाकी जातियों और उनसे जुड़ी पार्टियों की गोलबंदी नहीं हुई तो सपा का वोट बैंक गिरने पर उसकी सीटें एक चैथाई भी नहीं बचेंगी।

samajvadi party division-new political scenario

मुख्यमंत्री का डर

दूसरी ओर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम की इस गठबंधन रणनीति का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। सपा के सूत्रों का कहना है कि अखिलेश को डर है कि अगर पश्चिमी यूपी से चौधरी अजित सिंह और पूर्वांचल से कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी जैसे लोगों का सपा के साथ गठबंधन चुनाव बाद बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। आफत तब पैदा होगी जब सपा के साथ गठबंधन में शामिल पार्टियां इस बात पर अड़ जाएंगी कि उनके समर्थन की पहली शर्त यह होगी कि मुख्यमंत्री उनकी मर्जी का होगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सलाहकारों को डर है कि ऐसे हालात में होगा यह कि शिवपाल यादव को चुनाव बाद के हालात में मुख्यमंत्री बनाने की नौबत पैदा हो जाएगी। सलाहकारों को लगता है कि इससे अखिलेश यादव का सियासी कैरियर चैपट हो सकता है।

असमंजस में नेतृत्व

सपा के भीतरी सूत्र स्वीकार कर कर रहे हैं कि पार्टी के जन्म लेने से लेकर अब तक पहली बार दल में इतनी ज्यादा दिशाहीनता और निराशा का आलम है। सपा ने सिटिंग सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान रोका हुआ है। इसकी बड़ी वजह यह है कि आधे से ज्यादा सीटों पर विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ जनता में ही नहीं ही कार्यकर्ताओं में भी भारी रोष है। कई दर्जन विधायकों पर जमीनों पर कब्जे करवाने और अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप है। सपा राज में पुलिस महकमा पहली बार इतना ज्यादा बदनाम हुआ है कि लोगों का पुलिस व्यवस्था पर पूरा भरोसा उठ चुका है। सपा के भीतरी जानकार ही खुलकर यह सब उगल रहे हैं कि यूपी में पुलिस व सरकारी तंत्र की लूट इसलिए बढ़ी है क्योंकि सपा के पारिवारिक कलह से शासन तंत्र को खुली लूट करने का मौका मिला गया है।

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बदल जाएगी सियासी तस्वीर

सपा में अमर सिंह को शामिल कराने और उन्हें राज्यसभा भेजने का पूरा फैसला मुलायम ने शिवपाल सिंह यादव के दबाव में किया जबकि अखिलेश और आजम खां समेत पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने अमर सिंह को राज्यसभा में भेजने का खुलकर विरोध किया था। इसी तर्ज पर अखिलेश पूर्वी यूपी के माफिया डॉन और कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी को सपा से दूर रखने की जी तोड़ कोशिशों में जुटे हैं। माना जा रहा है कि सपा में बिखराव से मुस्लिम मतदाता बसपा और कांग्रेस और शेष गैर यादव पिछड़ी व अति पिछड़ी जातियों के नेता व कार्यकर्ता अपना सियासी कैरियर तलाशने के लिए मजबूरन भाजपा या बाकी दलों का दामन थाम लेंगे। इससे पिछले ढाई दशक से मंडल-कमंडल राजनीति से कई ध्रुवों में बंटे जातियों के समीकरण नया ठौर तलाशेंगे तो देश के सबसे बड़े राज्य की तस्वीर ही बदल जाएगी।

सभी फोटो साभार: इंडियन एक्सप्रेस

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