×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

संभल और अजमेर का मामला : जानिए क्या है पूजा स्थल अधिनियम

Sambhal And Ajmer Sharif Case: पूजा स्थल अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए प्रावधान करने के लिए एक अधिनियम है।

Neel Mani Lal
Published on: 29 Nov 2024 4:09 PM IST
Sambhal And Ajmer Sharif Case ( Pic- Social- Media)
X

Sambhal And Ajmer Sharif Case ( Pic- Social- Media)

Sambhal And Ajmer Sharif Case: अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, संभल में शाही जामा मस्जिद, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद जैसे तमाम मामलों ने 1991 के एक कानून को सुर्खियों में ला दिया है, जिसे 15 अगस्त 1947 को मौजूद स्थिति को बनाए रखते हुए धार्मिक स्थलों पर ऐसे सभी विवादों को समाप्त करने के लिए तैयार किया गया था।

क्या है कानून?

- पूजा स्थल अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए प्रावधान करने के लिए एक अधिनियम है। कानून कहता है कि किसी भी पूजा स्थल की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को मौजूद थी वही मानी जायेगी।

- पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप के रूपांतरण के लिए कोई भी मुकदमा दायर करने या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने पर रोक लगाती है।

- कानून की धारा 4 के दूसरे खंड, धारा 4(2) में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण से संबंधित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही, जो किसी भी न्यायालय में लंबित है, समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।

- अधिनियम की धारा 3 किसी व्यक्ति या लोगों के समूह को किसी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूर्णतः या आंशिक रूप से किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में परिवर्तित करने से रोकती है।

- हालांकि, धारा 4 का एक और प्रावधान यह निर्धारित करता है कि कानून का निषेध किसी भी ऐसे पूजा स्थल के संबंध में लागू नहीं होगा जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या एक पुरातात्विक स्थल है, या प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के अंतर्गत आता है। इस प्रावधान का उपयोग और हवाला एक हिंदू एनजीओ द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में यह दावा करने के लिए किया जा रहा है कि 1991 का कानून ज्ञानवापी मामले में लागू नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट में मामला

धार्मिक स्थलों के स्वामित्व और विवादों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने यह कानून बनाया था। इस कानून का एकमात्र अपवाद दशकों पुराना रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद रहा जिसने विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था।

इस अधिनियम और इसके प्रावधानों को भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी और अश्विनी उपाध्याय ने चुनौती दी हुई है और कोर्ट ने उनकी याचिकाओं पर ध्यान देने के बाद केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किए हैं। मामला 2022 से कोर्ट में है और अभी तक केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।

- पहली याचिका लखनऊ स्थित विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह कानून असंवैधानिक है और मथुरा और काशी जैसे विवादित धार्मिक स्थलों को कानूनी रूप से पुनः प्राप्त करने के मार्ग में अवैध बाधाएं उत्पन्न करता है।

- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अयोध्या फैसले में भी इस कानून का उल्लेख करते हुए कहा था, "सार्वजनिक पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने में, संसद ने स्पष्ट शब्दों में आदेश दिया है कि इतिहास और उसकी गलतियों का उपयोग वर्तमान और भविष्य को दबाने के साधन के रूप में नहीं किया जाएगा।"

क्यों बनाया गया था कानून?

1991 का अधिनियम प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा उस समय लाया गया था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में उनकी गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया था। कांग्रेस ने तर्क दिया कि यह विधेयक भविष्य में सांप्रदायिक झड़पों को रोकने में मदद करेगा। विधेयक 1991 के मानसून सत्र में पेश किया गया था, और इस पर भाजपा की ओर से तीव्र विरोध हुआ। तीन दिनों तक बहस चली। अंततः, विधेयक को बिना किसी बड़े संशोधन के पारित कर दिया गया और अयोध्या तथा जम्मू-कश्मीर को इसके दायरे से बाहर रखा गया।2022 में गुना से भाजपा सांसद कृष्ण पाल सिंह यादव ने अधिनियम को निरस्त करने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया। हालाँकि, यह अभी तक चर्चा के लिए नहीं आया है।



\
Shalini Rai

Shalini Rai

Next Story