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Same Sex Marriage: 'मैं कोर्ट का इंचार्ज, मैं ही फैसला लूंगा', CJI और केंद्र में तीखी बहस, आज फिर मामले में सुनवाई
SC on Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई। केंद्र की आपत्तियों पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वो पहले मामले को समझने के लिए याचिकाकर्ताओं को सुनना चाहेंगे।
SC on Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार (18 अप्रैल) से समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मामले में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई शुरू कर दी। आज मामले की सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट का माहौल गर्म नजर आया। केंद्र ने इन याचिकाओं की सुनवाई के लिए स्वीकार्यता पर ही सवाल खड़े किए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा, 'याचिकाओं पर सुनवाई शुरू होने से पहले स्वीकार्यता पर उनके ऐतराज को सुना जाना चाहिए। ये मामला पूरी तरह से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
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केंद्र सरकार की ओर से ये भी आपत्ति जताई गई कि इस मामले में अदालतें दखल दे सकती हैं या ये सिर्फ संसद का एकाधिकार है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि, वो पहले मामले को समझने के लिए याचिकाकर्ताओं को सुनना चाहेंगे। याचिकाकर्ता को सुनने के बाद ही वो सरकार को सुनना चाहेंगे।
सीजेआई और सॉलिसिटर जनरल में तीखी बहस
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर आपत्ति जताई। एसजी ने कहा, उनकी दलील सिर्फ इतनी है कि इस मुद्दे को कौन-सा संवैधानिक फोरम सुन सकता है। वो भी इस केस की मेरिट पर नहीं, बल्कि अपनी प्रारंभिक आपत्तियों को बताना चाहते हैं। जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा, पहले याचिकाकर्ता को सुन लेते हैं। तब तुषार मेहता ने कहा, 'पहले याचिकाकर्ता को सरकार की प्रारंभिक आपत्तियों पर जवाब देना चाहिए। जिसके बाद सीजेआई ने साफ-साफ कहा, 'वो इस कोर्ट के इंचार्ज हैं, तो वो ही ये फैसला लेंगे। पहले याचिकाकर्ता को सुना जाएगा। अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया कैसे चलेगी, ये बताने की अनुमति वो किसी को नहीं देंगे।'
'हम देखेंगे सुनवाई में शामिल हों या नहीं'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'अगर ऐसा है तो सरकार भी देखेगी कि वो इस मामले की सुनवाई में शामिल होगी या नहीं। उनके इतना कहते है साथी जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) ने कहा कि, क्या आप ये कह रहे हैं कि सरकार सुनवाई में शामिल नहीं होगी? यह बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। अच्छा नहीं लगता कि सरकार ये कहे कि वो देखेंगे कि सुनवाई में शामिल होंगे या नहीं।
समलैंगिक रिश्तों में रह सकते हैं तो रिश्तों में भी..
फिर जब सुनवाई शुरू हुई तो याचिकाकर्ताओं की ओर सीनियर वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने बहस की शुरुआत की। रोहतगी ने कहा, 'याचिकाकर्ता में भी सामान्य लोगों की तरह अधिकार रखते हैं। एक समय में कानून की धारा- 377 के तहत समलैंगिक संबंध (Homosexual Relationship) अपराध होते थे। मगर, अब ऐसा नहीं है। लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि आईपीसी से 377 हटा दी गई है। अब आप अलग अपना जीवन जिएं। उन्होंने कहा, अगर हम बाकी लोगों के बराबर हैं, तो अधिकार भी बराबर होने चाहिए। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि अगर समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले लोग साथ रह सकते हैं तो उनकी शादी को भी मान्यता मिले।'
SG ने कहा- पार्लियामेंट के जरिए ही होना चाहिए
इस पर तुषार मेहता ने कहा कि, 'कई कानून हैं, जिनका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इस तरह के मामले पार्लियामेंट के जरिए ही होना चाहिए। संसदीय समितियों में आमतौर पर किसी भी मामले की गंभीरता से हर पक्ष पर चर्चा होती है और उसमें सभी दलों के सांसद होते हैं।'
अलग होने की स्थिति में कौन गुजारा भत्ता देगा?
इसके बाद, बहस में शामिल हुए जमियल उलेमा ए हिंद (Jameel Ulema e Hind) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल। उन्होंने भी समलैंगिक विवाह का विरोध किया। उन्होंने कहा, वो प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास रखते हैं। उन्हें लगता है कि लोगों को जैसा चाहे, वैसे रिश्ते रखने का अधिकार है। मान लिया जाए कि समलैंगिक शादी को मान्यता दे दी जाती है और उस जोड़े ने बच्चा गोद लिया हुआ हो, तो क्या होगा? अलग होने की स्थिति में कौन उसका पिता होगा और कौन मां? कौन गुजारा भत्ता देगा? इस मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।