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Kisan Mahapanchayat in Delhi: दिल्ली में जुटे लाखों किसान, फिर बड़े आंदोलन की तैयारी, कितनी तैयार है सरकार ?
Kisan Mahapanchayat in Delhi: अबकी बार किसान किसी कानून या अध्यादेश को वापस करवाने के लिए नहीं बल्कि सरकार द्वारा किए गए वादे को याद दिलाने के लिए जुटे हैं।
Kisan Mahapanchayat in Delhi: प्रचंड जनादेश वाले मोदी सरकार को तीन कृषि कानून वापस लेने पर मजबूर करने वाली संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) एक बार फिर बड़ा आंदोलन खड़ा करने की तैयारी में है। एसकेएम के बैनर तले तीन साल बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किसानों का हुजूम एकबार फिर उमड़ा है। अबकी बार किसान किसी कानून या अध्यादेश को वापस करवाने के लिए नहीं बल्कि सरकार द्वारा किए गए वादे को याद दिलाने के लिए जुटे हैं।
दिल्ली के रामलीला मैदान में एसकेएम ने आज यानी सोमवार को किसान महापंचायत बुलाई है, जिसमें देशभर के लाखों किसानों के पहुंचने की बात कही जा रही है। किसानों की महापंचायत 10 बजे से शुरू हो गई है जो दोपहर के साढ़े तीन बजे तक चलेगी। किसान नेता राकेश टिकैत के मुताबिक, देशभर के 32 किसान संगठनों ने इसमें हिस्सा लिया है।
किसानों का सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक समय तक डटे रहने वाले किसान संगठन संयुक्त मोर्चा ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने उत्पादन की कुल लागत पर 50 प्रतिशत एमएसपी लागू करने का लिखित आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं किया गया है।
अन्य मांगों में किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुकदमों को वापस लेने, कर्ज माफी, 5 हजार रूपये मासिक पेंशन और सिंचाई के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली शामिल है। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने जो हमसे वादे किए थे, उससे अब वो पीछे हट रही है। सरकार किसानों को दोबारा आंदोलन करने पर मजबूर कर रही है।
किसान महापंचायत को लेकर सुरक्षा-व्यवस्था टाइट
दिल्ली के रामलीला मैदान में किसानों के विशाल जमावड़े को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा-व्यवस्था के तगड़े प्रबंध कड़े गए हैं। 2 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को मौके पर तैनात किया गया है। दिल्ली पुलिस ने ये तैनाती इसलिए की है ताकि भीड़ में कोई असमाजिक तत्व घुसकर कुछ गलत काम न कर सके। किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान कुछ असमाजिक तत्वों ने लाल किला पर लगे तिरंगे को उतारकर निशान साहिब को फहरा दिया था। लिहाजा पुलिस इसबार ऐसे किसी उपद्रवियों को चांस देने के मूड में नहीं है।
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जब दिल्ली की सीमाओं को किसानों ने बनाया था ठिकाना..
27 सितंबर 2020 को मोदी सरकार द्वारा संसद से पारित कराए गए तीन कृषि बिलों पर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपना दस्तखत कर दिया था। इसके बाद इसने कानून की शक्ल ले ली। लेकिन सरकार के इस कदम ने आग में घी डालने का काम किया। इन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों का विरोध और तीखा हो गया। सरकार को लगा कि वह किसानों के विरोध को झेल लगी। इसलिए उसने विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी पार्टियों के विरोध को भी दरकिनार कर दिया।
किसान संगठनों ने 25 नवंबर 2020 को दिल्ली चलो का आह्वान किया। इस दौरान दिल्ली की सीमा पर किसानों का पुलिस से भारी झड़प हुआ, जमकर लाठ-डंडे चले और वॉटर कैनन तक का इस्तेमाल किया गया। किसान तीनों कानूनों के विरोध में राजधानी के सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठ गए और ये उनका अस्थायी ठिकाना बन गया। किसानों की तैयारी देखकर साफ पता चल गया कि सरकार ने इनके विरोध को बहुत कम करके आंका था।
तीनों बॉर्डर पर किसानों के जमावड़े के कारण दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे, दिल्ली-रोहतक रोड और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे पर यातायात पूरी तरह से ठप हो गया। पूरे एक साल बाद यानी दिसंबर 2021 में केंद्र सरकार द्वारा तीनों कानूनों को वापस लेने और किसान संगठनों से समझौते के बाद इन राजमार्गों पर यातायात फिर से बहाल हुआ। दिल्ली में एक साल से अधिक समय तक चले किसान आंदोलन की गूंज देश ही नहीं दुनियाभर में सुनाई दी थी। आज भी इसकी तस्वीर लोगों के जेहन में है।