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Sarna Dharam Code: क्या है 'सरना आदिवासी धर्म कोड', क्यों नहीं हुआ अभी तक लागु
Sarna Dharam Code: सरना धर्म कोड की सबसे मुखर मांग झारखंड में रह रहे आदिवासी समुदाय के लोग कर रहे हैं। मुर्मू राष्ट्रपति बनने से पहले इस राज्य की पहली आदिवासी राज्यपाल थीं।
Sarna Dharam Code: देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहली बार कोई आदिवासी समुदाय से आने वाला व्यक्ति आसीन हुआ है। द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति (Droupadi Murmu 15th pesident) बनी हैं, उनके इस कामयाबी को लेकर आदिवासी समुदाय में काफी उत्साह है। उन्हें लगता है कि मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके समाज का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान होगा। द्रौपदी मुर्मू के सामने ये चुनौती भी होगी कि वह अपने समुदाय के उम्मीदों पर खड़े उतरे।
राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी 'सरना धर्म कोड' के मुद्दे को सुलझाना, जो आदिवासी समाज के एक बड़े तबके लिए लंबे समय से संवेदनशील मुद्दा रहा है।
सरना धर्म कोड की सबसे मुखर मांग झारखंड में रह रहे आदिवासी समुदाय के लोग कर रहे हैं। मुर्मू राष्ट्रपति बनने से पहले इस राज्य की पहली आदिवासी राज्यपाल थीं। यही वजह है कि विपक्षी खेमे में रहने के बावजूद राज्य के सीएम हेमंत सोरेन को अंततः उन्हें समर्थन देने का ऐलान करना पड़ा, क्योंकि वह खुद भी एक आदिवासी हैं। ऐसे में मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद आदिवासियों ने सरना धर्म कोड की मांग तेज कर दी है।
झारखंड सरकार पास कर चुकी है बिल
2019 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के बाद पॉवर में आते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड बिल सर्वसम्मित से पास करवाकर केंद्र सरकार को भेजा था। लेकिन केंद्र सरकार अभी तक इस बिल को अटकाए रखी है। ऐसा तब है जब विधानसभा में विपक्षी बीजेपी ने भी इस बिल के समर्थन में मतदान किया था। उस समय केंद्र को यह प्रस्ताव भेजते हुए झारखंड सरकार ने कहा था कि 1931 के सेंसस में राज्य में आदिवासियों की आबादी 38.2 प्रतिशत थी, जो 2011 के सेंसस में घटकर 26.02 प्रतिशत रह गई है। आदिवासियों की घटती आबादी की एक वजह उनके लिए अलग धर्म कोड का न होना है। लिहाजा, केंद्र सरकार को सरना आदिवासी धर्म कोड बिल पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हेमंत सोरेन सरकार ने साल 2021 में जनगणना शुरू होने से पहले ये प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था।
क्या होता है सरना धर्म
देश की आदिवासी आबादी की एक बड़ी संख्या खुद को हिंदू नहीं मानती है। उनका कहना है कि वह कभी हिंदू नहीं थे और हैं, वह हिंदू धर्म से अलग हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जो कि खुद सरना समुदाय से आते हैं कह चुके हैं कि आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे, ना ही हैं। इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है। हमारा सबकुछ अलग है। हम प्रकृति की पूजा करते हैं। सरना समुदाय के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं। ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं। ये किसी ईश्वर या मूर्ति की पूजा नहीं करते हैं। स्वयं को सरना धर्म का अनुयायी बताने वाले लोग तीन तरह की पूजा करते हैं। पहला धर्मेंश यानी पिता, दूसरा सरना यानी माता और तीसरा प्रकृति यानी जंगल। सरना धर्म को मानने वाले लोग सरहुल त्योहार मनाते हैं। इसी दिन से इनका नया साल शुरू हो जाता है।
सरना धर्म कोड क्या है और झारखंड में ये बड़ा मुद्दा क्यों
जनगणना के रजिस्टर में धर्म का एक कॉलम होता है। इस धर्म में अलग-अलग धर्मों का अलग-अलग कोड होता है। मसलन हिंदू धर्म का 1, मुस्लिम का 2, ईसाई का 3 और सिख का 4 इत्यादी। ऐसे ही सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग हो रही है। यदि केंद्र सरकार सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग मान लेती हैं तो फिर अन्य धर्मों की तरह सरना धर्म का भी एक कॉलम होगा।
2011 के जनगणना के मुताबिक, 79 लाख लोग से अधिक लोग ऐसे थे, जिन्होंने धर्म के कॉलम में अन्य भरा था। मगर साढ़े 49 लाख से अधिक लोग ऐसे थे, जिन्होंने अन्य की बजाय सरना लिखा था। इन 49 में से 42 लाख लोग झारखंड के थे। सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग करने वालों का कहना है कि जब 45 लाख की आबादी वाले जैन धर्म के लिए अलग कोड हो सकता है तो फिर 49 लाख से अधिक की आबादी वाले सरमा धर्म मानने वालों के लिए क्यों नहीं। बता दें कि झारखंड में 80 के दशक से इस मांग को लेकर आदिवासी संघर्ष करते रहे हैं। उनकी हमेशा से मांग रही है कि उन्हें हिंदू धर्म से जोड़कर न देखा जाए। राज्य के छोटानागपुर इलाके में इनकी अच्छी आबादी है।
शिवभक्त द्रौपदी का क्या होगा इस पर रूख
आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को शिव भक्त बताया जाता है। उनकी वह तस्वीर वायरल है, जब राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए उनके नाम की घोषणा हुई थी, तब उन्होंने एक शिव मंदिर में जाकर साफ – सफाई और पूजा - अर्चना की थी। ऐसे में सरना धर्म पर वह कितनी सहमत होंगी, ये देखनी वाली बात होगी। हालांकि, झारखंड और ओडिशा में रहने वाले सरना आदिवासी अभी भी मानते हैं कि उनके राष्ट्रपित बनने के बाद उनकी वर्षों पुरानी मांग सरना धर्म कोड जरूर पूरी होगी।
संघ कर चुका है विरोध
झारखंड सरकार द्वारा पास आदिवासी सरना धर्म कोड बिल को केंद्र सरकार द्वारा लटकाए जाने का एक बड़ा कारण आरएसएस की असहमति भी है। संघ के सह सरकार्यवाह कृष्णगोपाल ने बयान दिया था कि सरना कोई धर्म नहीं है। आदिवासी भी हिंदू धर्म कोड के अधिन ही हैं। इसलिए सरना कोड की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस बयान पर खूब बवाल मचा था। रांची में सरना आदिवासियों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया था। हालांकि, इससे स्पषट हो गया कि संघ परिवार सरना धर्म कोड के पक्ष में नहीं है।