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Satish Dhawan's Birth Anniversary: सतीश धवन की जयंती पर, भारत की अंतरिक्ष तकनीक में उनके योगदान

Satish Dhawan's Birth Anniversary: इस वाकया ने अब्दुल कलाम को हैरान कर दिया, क्योंकि इसरो के अध्यक्ष ने विफलता का दोष खुद पर लिया था। अगला मिशन 1980 में तैयार किया व लॉन्च किया।

Durgesh Sharma
Written By Durgesh Sharma
Published on: 25 Sep 2022 10:50 AM GMT
Satish Dhawans Birth Anniversary contribution in indian space programme
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Satish Dhawan's Birth Anniversary contribution in indian space programme (Social Media)

Satish Dhawan's Birth Anniversary: प्रो.सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर 1920 को जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में हुआ था। वह एक भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक थे, उन्होंने भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। उन्हें भारतीय वैज्ञानिक समुदाय द्वारा भारत में प्रायोगिक द्रव गतिकी अनुसंधान का जनक माना जाता है। उन्होंने 1972 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के रूप में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई का स्थान लिया। वह अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव भी थे।

भारत में द्रव गतिकी अनुसंधान के जनक

प्रो.धवन ने 1951में प्रतिष्ठित एयरोस्पेस वैज्ञानिक प्रोफेसर हैंस डब्ल्यू. लीपमैन के सलाहकार के रूप में काम करते हुए कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पीएचडी किए। फिर वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु में फैकल्टी मेंबर के रूप में शामिल हुए और बाद में उन्हें इसका सबसे कम उम्र का और सबसे लंबे समय तक सेवारत निदेशक नियुक्त किया गया।


प्रो.धवन की पायलट परियोजना ने बेंगलुरु की राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं (एनएएल) में विश्व स्तरीय पवन सुरंग सुविधाओं के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया। जब वे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रभारी थे, तब भी उन्होंने बाउंड्री लेयर रिसर्च में बहुत काम किया। हर्मन श्लिचिंग द्वारा लिखित ग्राउंड-ब्रेकिंग पुस्तक बाउंड्री लेयर थ्योरी उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों का जिक्र करती है।

अंतरिक्ष कार्यक्रम को पहुचांए शीर्ष पर

तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर उन्होंने 30 दिसंबर, 1971 को विक्रम साराभाई की आकस्मिक मृत्यु के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की कमान संभाली। प्रो.धवन मई 1972 में भारत के अंतरिक्ष विभाग के सचिव बने। उन्होंने अंतरिक्ष आयोग और इसरो दोनों की नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली, जिसे हॉल ही में औपचारिक रूप से स्थापित किया गया था। प्रो.धवन ने ग्रामीण शिक्षा, सुदूर संवेदन और उपग्रह संचार में अग्रणी प्रयोग किए। उनकी उपलब्धियों ने इन्सैट- एक दूरसंचार उपग्रह, आईआरएस - भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का विकास किया, जिसने भारत को अंतरिक्ष समृद्ध राष्ट्रों की लीग में रखा।

विंग्स ऑफ फायर के पन्नों से

भारत के पूर्व सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब विंग्स ऑफ फायर में जिक्र किया है कि 1979 में जब वे एक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के निदेशक थे, तब मिशन उपग्रह को लॉन्च करने में विफल हो गया। उपग्रह बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। अब्दुल कलाम की टीम को पता था कि सिस्टम के ईंधन में रिसाव है, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि रिसाव नगण्य था, और इस तरह उन्होंने सोचा कि सिस्टम में पर्याप्त ईंधन है।

उस समय अध्यक्ष होने के नाते सतीश धवन ने अब्दुल कलाम को फोन किया और प्रेस को अवगत कराया कि "हम असफल रहे! लेकिन मुझे अपनी टीम पर बहुत भरोसा है और मुझे विश्वास है कि अगली बार हम निश्चित रूप से सफल होंगे।" इस वाकया ने अब्दुल कलाम को हैरान कर दिया, क्योंकि इसरो के अध्यक्ष ने विफलता का दोष खुद पर लिया था। अगला मिशन 1980 में तैयार किया गया और सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। जब यह सफल हुआ, तो सतीश धवन ने अब्दुल कलाम को उनकी उपस्थिति के बिना प्रेस मीट में भाग लेने के लिए कहा। आगें लिखते है कि जब टीम विफल हुई तो सारा दोष खुद पर ले लिया। लेकिन जब टीम सफल हुई, तो उन्होंने अपनी टीम को सफलता का श्रेय दिया। सतीश धवन 1984 तक इसरो के अध्यक्ष भी रहें।

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