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SC ने दिया अहम फैसला, कहा- मालिक बेटे के रोजगार के लिए किराए के मकान को खाली करवा सकता है
नई दिल्ली ब्यूरो: किराया नियंत्रण कानून किसी भी भवन स्वामी को यह अधिकार देता है कि यदि किराए पर दिए गए परिसर को वह अपने प्रयोग के लिए किराएदार से जब चाहे खाली करा सकता है। लेकिन शुक्रवार (17 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट की बेंच को किराए के परिसर को खाली कराने के मामले में एक पेचीदा केस का सामना करना पड़ा। क्योंकि उनके सामने मामला परिसर स्वामी के खुद का नहीं बल्कि उसके परिवार के सदस्य के व्यवसाय की खातिर किराए पर दी गई जगह को खाली करने का था।
जस्टिस कुरियन जोसफ और एएम खान की बेंच ने सोमवार को एक ऐसे ही मामले में लीक से हटकर फैसला दिया, जब उनके सामने यह मामला आया कि परिसर की स्वामी जो एक महिला है, वह अपने बेरोजगार बेटे का व्यवसाय शुरू करने के लिए किराए पर दिए गए परिसर को खाली कराने की गुहार लगा रही है।
पति बदहाली में छोड़ गए
जम्मू- कश्मीर की इस महिला महमूदा गुलशन के पक्ष में 2002 में निचली अदालत ने फैसला दिया था। महिला का कहना था कि उसके पति ने उसे बदहाली में छोड़ दिया है और वह कोच्ची में एक हिंदू लड़की के साथ शादी करके उससे अलग हो चुका है। महिला का तर्क था कि पति द्वारा उसे बेसहारा छोड़ देने के बाद उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। उसका बेटा जो कि 30 साल के आसपास है, वह अपना रोजगार आरंभ करना चाहता है, जिससे वह परिवार का भरण-पोषण कर सके।
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किराएदार ने हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
बता दें कि निचली अदालत ने जब 14 साल पूर्व महिला के पक्ष में फैसला देते हुए किराएदार जायेद हुसैन मुंगलू को परिसर खाली करने का जो आदेश दिया था उसे किराएदार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने किराया नियंत्रण कानून की सीमाओं को आधार मानते हुए महिला के पक्ष में निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए व्यवस्था दी कि मकान तभी खाली कराने का आधार बनता है। जब मकान मालिक खुद अपना व्यवसाय शुरू कर रहा हो, न कि परिवार के किसी अन्य सदस्य का।
सुप्रीम कोर्ट ने दलील को सही माना
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के आदेश का गहराई से अध्ययन करने के बाद इस दलील को सही ठहराया है कि 'महिला अपने बेरोजगार पुत्र का काम-धंधा इसलिए चालू करवाना चाहती है जिससे पूरे परिवार की रोजी-रोटी चल सके। क्योंकि परिवार में असहाय और बुजुर्ग परिजन महिला के पुत्र पर ही निर्भर थे।'
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इसमें कुछ गलत नहीं
बेंच ने आदेश में कहा, यह मकान मालिक ही तय करने के हकदार हैं कि उस परिसर का कैसे इस्तेमाल हो। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि 'अगर मकान मालिक अपने परिवार की आजीविका चलाने और अपना जीवन स्तर सुधारने की खातिर अपने बेरोजगार पुत्र के रोजगार के लिए परिसर खाली करवाना चाहते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।'