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कंप्यूटर घोटाले में घिरी उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार
देहरादून। डिग्री कॉलेजों में स्मार्ट क्लासेज बनाने के नाम पर शिक्षा विभाग में हुए घोटाले से इस समय उत्तराखंड हिल गया है, घोटालों के मामले में दोनो रावत सरकारें एक ही छोर पर खड़ी नजर आ रही हैं। इससे यह भी लग रहा है कि सिर्फ चेहरे बदले हैं काम करने का ढंग नहीं।
जिस तरह से घोटाला किया गया है, उससे त्रिवेंद्र सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है क्योंकि हरीश रावत सरकार तो घोटालों को लेकर बदनाम थी ही लेकिन इस सरकार में भी घोटाला होना यह साबित करता है कि बदला कुछ नहीं है। वह भी उस सूरते हाल में जबकि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा की गई पूर्व में की गई 300 कंप्यूटरों की खरीद सवालों के घेरे में हो मंत्री नए कंप्यूटरों की खरीद को रोक चुके हों तब भी मंत्री को ठेंगे पर रखकर अधिकारियों ने मनमानी की। उच्च शिक्षा विभाग के सूत्र ऑन रिकॉर्ड आपत्ति के बावजूद की गई इस खरीद को सीधे तौर पर भ्रष्टाचार बता रहे हैं।
सरकार को दरकिनार कर कम्प्यूटरों की खरीद में कंप्यूटर चलाने के लिए कमरे, मेज-कुर्सी, वायर फिटिंग के इंतजाम तक देखने की जरूरत नहीं समझी गयी और आनन फानन में इन कंप्यूटरों को विद्यालयों में भेज दिया। इसका नतीजा यह निकला कि विद्यालयों में स्मार्ट क्लासेज चलने की यह कंप्यूटर स्टोर रूम में बंद हो गए हैं और कुछ जगह कोने कतरों में धूल फांक रहे हैं।
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21 कंप्यूटर व चार प्रिंटर नई टिहरी के पीजी कालेज को मिले हैं लेकिन इन्हें रखने के लिए जगह की कमी आड़े आ रही है। कंप्यूटर लैब बनाने के लिए कालेज प्रशासन शीर्षासन कर रहा है इसके लिए उस कोई अतिरिक्त फंड भी नहीं दिया गया है। नतीजतन कंप्यूटर जैसे जिस हाल में मिले थे उन्हें उसी हाल में एक कमरे में बंद कर दिया गया है। कालेज प्राचार्य का कहना है कि कंप्यूटर लैब के लिए संसाधन जुटाए जा रहे हैं। यही हाल गोपेश्वर का है जहंा विधि कालेज में कंप्यूटर आ गए हैं।
इस संबंध में 'रूसा के एक अधिकारी का कहना है कि कंप्यूटर कहीं से भेजे नहीं गए हैं कालेज प्रशासन ने खुद खरीदे हैं। यहां के प्राचार्य का कहना है कि नई बिल्डिंग बन रही उसमें कंप्यूटर लैब बनाई जाएगी तब कंप्यूटर चलेंगे।
कोटद्वार में राजकीय महाविद्यालय में डिजिटल लाइब्रेरी के लिए आए 28 कंप्यूटर एक पखवारे से अधिक समय से धूल फांक रहे हैं। कालेज की हालत पहले से ही खस्ताहाल है और न तो कंप्यूटर रखने की जगह है न कमरे। प्राचार्य ने इन सब व्यवस्थाओं के लिए अपर सचिव उच्च शिक्षा को पत्र लिखा है। थैलीसैण में भी कंप्यूटर पहुंच गए हैं लेकिन कालेज प्रशासन परेशान है प्राचार्य का कहना है कि वह 'रूसा' की बैठक में यह मसला उठाएंगे। इसी तरह उत्तरकाशी में 34 कंप्यूटर भेजे गए हैं कालेज प्रशासन ने दस बारह कंप्यूटर तो अलगअलग क्लासों में लगवा दिये हैं। बाकी को एक कमरे में बंद कर दिया है। रुद्र प्रयाग में अभी कोई कंप्यूटर नहीं पहुंच है।
कंप्यूटर बाजार दर से मंहगे हैं, यह एक सवाल है, मगर इससे बड़ा सवाल यह है कि जब विभागीय मंत्री ही इस तरह की नई खरीद के पक्षधर नहीं थे तो फिर क्यों यह खरीद की गई?
बीते माह उच्च शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. रणवीर सिंह ने 40 डिग्री कॉलेजों में स्मार्ट क्लासेज बनाने के लिए दो करोड़ दस लाख रुपये के कंप्यूटर खरीद के ऑर्डर किए थे। यह खरीद राशि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के प्रीपेटरी ग्रांट से की गई। गौरतलब है कि इस ग्रांट में रूसा का कामकाज देखने के लिए ऑफिस खर्च, मॉनिटरिंग समेत अन्य कार्य का प्रावधान है। दूसरे यह खरीद डिस्पैच रजिस्टर में एंट्री किए बगैर की गई। दो करोड़ दस लाख के कंप्यूटरों की खरीद की कवायद इतनी गुपचुप हुई कि किसी को भनक तक नहीं लगी। जबकि खुद विभागीय मंत्री धन सिंह रावत ने कंप्यूटरों की खरीद के लिए मना किया था। उन्होंने कहा था कि पूर्व में खरीदे गए कंप्यूटरों का उपयोग सुनिश्चित होने के बाद खरीद संबंधी कोई कार्रवाई की जाए। बावजूद सर्वे चौक स्थित नटराज इंजीनियरिंग सर्विसेज नाम की फर्म को ऑर्डर जारी कर दिया गया।
इस खरीद का पता विभाग के मंत्री और अधिकारियों को तब चला जब फर्म की ओर से एक धन्यवाद पत्र सभी को जारी किया गया। पत्र मिलते ही खलबली मच गई। पता चला है कि खरीद के लिए जिस पत्रांक पर आदेश जारी किया गया है, उसका जिक्र डिस्पैच रजिस्टर में है ही नहीं। उस पर केवल इतना लिखा गया कि यह पत्रांक अपर मुख्य सचिव के पीएस के नाम जारी है। इस पर अपर सचिव डॉ. रंजीत सिन्हा ने डिस्पैच रजिस्टर में इस पत्रांक को रद्द कर दिया।
यह सूचना जब अपर मुख्य सचिव को मिली तो उन्होंने तत्काल डिस्पैच रजिस्टर मंगाकर इसे खेदजनक करार देते हुए रजिस्टर पर अपनी टिप्पणी दर्ज कर दी। इसी बीच आनन-फानन में दर्जन भर से ज्यादा कॉलेजों में कंप्यूटर सप्लाई भी कर दिए गए। बताया जाता है कि बाजार से करीब 15 हजार रुपये अधिक कीमत पर कंप्यूटर खरीदे गए हैं।
धन सिंह रावत, राज्य मंत्री (उच्च शिक्षा) का कहना है कि यह सही है कि रूसा की ओर से 40 कालेजों के लिए पैसा आया है, जिनसे कॉलेजों में स्मार्ट क्लासेज बनाए जाने हैं। मैंने काउंसिल की बैठक में कहा था कि पूर्व में बनाई गई स्मार्ट क्लासेज पालिसी का अध्ययन कर लें और खरीदे गए कंप्यूटरों का उपयोग सुनिश्चित कर लें। उसके बाद ही अगली खरीद की जाए। मैं पूरे मामले की जानकारी करता हूं। किसी भी प्रकार की अनियमितता मिली तो सख्त कार्रवाई होगी।
उधर अपर मुख्य सचिव डॉ. रणवीर सिंह ने कहा है कि ई-टेंडर के जरिये खरीद की गई है। अपर सचिव और नोडल अफसर बेवजह आपत्ति कर रहे थे। मैंने विभागीय मंत्री को सारी बात स्पष्ट करने के बाद ही खरीद के ऑर्डर जारी किए थे।
पता चला है कि कंप्यूटर खरीद का खेल पिछली कांग्रेस सरकार के समय से चल रहा है। इस खरीद की शुरूआत पिछले वर्ष 26 दिसंबर को चुनावी बेला में हुई थी। केंद्र सरकार के स्पष्ट निर्देश हैं कि सरकारी खरीद में गवर्मेंट ई-पोर्टल (जेम) का उपयोग किया जाए। बावजूद इसके ई-टेंडर जारी किया गया। 29 दिसंबर को जारी ई-टेंडर में प्री-ब्रिड प्रक्रिया का प्रावधान ही नहीं किया गया, जबकि बड़े टेंडर और खासकर तकनीकी उपकरणों की खरीद में यह अनिवार्य है।
तत्कालीन परियोजना निदेशक (रूसा) एस. रामास्वामी का कहना है कि जेम पोर्टल से खरीद इसलिए नहीं की गई थी, क्योंकि तत्कालीन सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया था। सचिवालय में जिस प्रकार की टेंडर प्रक्रिया खरीद के लिए अपनाई गई थी, उसी से इन कंप्यूटरों की खरीद की गई है।
रूसा के तहत 28 शिक्षण संस्थानों के लिए सात करोड़ 83 लाख के कंप्यूटर और उससे जुड़ी अन्य सामग्री की खरीद के मामले में पंजाब की एक फर्म ने टेंडर की तमाम अजीबोगरीब शर्तों पर आपत्तियां उठाई थीं। फर्म ने जानबूझकर ऐसी शर्तें रखकर किसी फर्म विशेष को काम देने तक का आरोप लगाया था। इस प्रकार के विवाद सामने आते देख तत्कालीन अपर सचिव डॉ. राघव लंगर ने रिटेंडर करने की बात फाइल पर लिख दी, मगर तत्कालीन प्रोजेक्ट डायरेक्टर और पूर्व मुख्य सचिव एस. रामास्वामी ने इस आपत्ति पर कुछ समय पूर्व कृषि विभाग में इसी तरह से खरीद की प्रक्रिया अपनाए जाने का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया था।
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) में होने वाली खरीद की फाइल रूसा के वित्त अधिकारी के पास आवश्यक रूप से भेजी जाती है, मगर यहां ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। यही नहीं तकनीकी उत्पाद की खरीद होने के बावजूद न तो एनआईसी और न ही आईटी विभाग को खरीद प्रक्रिया या उत्पाद के स्पेसिफिकेशन (विशिष्टता) तैयार करने में शरीक किया गया। इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा विभाग के अपर सचिव भी इस पूरे मामले से बाहर रखे गए। रूसा के नोडल अफसर डॉ. सतपाल सिंह साहनी सीधे परियोजना निदेशक एस. रामास्वामी को फाइल बढ़ाते रहे और वहंा से फाइल वापस नोडल अफसर के पास आती रही।