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अपराधी नहीं आम आदमी का मानवाधिकार देखें
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मानवाधिकारों के हनन को आम आदमी के परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की वकालत की है। जबकि उत्तर प्रदेश मानवाधिकारों के हनन व फर्जी मुठभेड़ों दोनो ही में अव्वल है। सवाल ये है कि योगी आदित्यनाथ को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मानवाधिकारों के हनन को आम आदमी के परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की वकालत की है। जबकि उत्तर प्रदेश मानवाधिकारों के हनन व फर्जी मुठभेड़ों दोनो ही में अव्वल है। सवाल ये है कि योगी आदित्यनाथ को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी।
अब तक मिले आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश पुलिस मानवाधिकारों के उल्लंघन में पूरे देश में अव्वल है। वर्ष 2016 से वर्ष 2018 के दौरान मानवाधिकार आयोग को पुलिस के विरूद्ध मिली शिकायतों एवं स्वत: संज्ञान पर 72 हजरा 825 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से सर्वाधिक 42 हजार 848 सिर्फ उत्तर प्रदेश से संबंधित हैं।
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इसी तरह फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है। आयोग ने पिछले 12 साल का आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देशभर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं। इसमें अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे।
2018 फरवरी में जारी एक आधिकारिक आंकड़े के अनुसार योगी सरकार के सत्ता में आने के 10 महीने के अंदर पूरे राज्य में करीब 1100 पुलिस एनकाउंटर हुए। इनमें 34 अपराधी मारे गए, 265 घायल हुए और करीब 2,700 हिस्ट्री-शीटरों को गिरफ्तार किया गया।
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ताजा मामला यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कह दिया है कि अपराधियों का कोई मानवाधिकार नहीं। इतना ही नहीं उन्होंने साफ साफ चेताया भा है कि कोई भी संगठन मानवाधिकार के नाम पर अपराधियों व आतंकियों की पैरवी न करे। वह पुलिस वीक के दौरान पुलिस अफसरों से मुखातिब थे।
गौरतलब है कि बीते माह उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ एनकाउंटर किए जाने के सवाल पर पीयूसीएल की याचिका पर योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर सफाई दी थी। सरकार ने सर्वोच्च अदालत में हलफनामा देकर न सिर्फ एनकाउंटर की विस्तृत जानकारी दी थी बल्कि यह भी बताया था कि मारे गए अपराधी किस वर्ग के थे। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि भाजपा सरकार आने के बाद सरकार पर यह आरोप लग रहे थे कि एक खास वर्ग को निशाना बनाकर कार्रवाई हो रही है।
हलफनामा में योगी सरकार ने बताया था कि राज्य में बदमाशों के साथ हुई मुठभेड़ में 4 पुलिसकर्मियों की मौत हुई है, जबकि मुठभेड़ में 48 अपराधी मारे गए हैं। इन बदमाशों में 30 बहुसंख्यक समुदाय के थे जबकि 18 बदमाश अल्पसंख्यक समुदाय से आते थे। सरकार ने कोर्ट को बताया था सरकार की सख्ती के चलते इस दौरान 98 हजार 526 अपराधियों ने पुलिस के समक्ष सरेंडर किया। पुलिस ने तीन लाख 19 हजार 141 अपराधियों को गिरफ्तार किया। इन मुठभेड़ों में 319 पुलिसकर्मी घायल हुए जबकि 409 अपराधी भी जख्मी हुए। सिर्फ 48 अपराधियों का मुठभेड़ में मारा जाना और चार सौ नौ अपराधियों का घायल होना यह दर्शा रहा है कि सरकार की मंशा अपराधियों को पकड़ने की रही न कि उन्हें जान से मारने की। क्योंकि 319 पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। इसलिए मुठभेड़ फर्जी होने की संभावना काफी कम बचती है।
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शायद योगी आदित्यनाथ ने इस सवाल का जवाब दिया है कि अपराधियों को जिंदा क्यों नहीं पकड़ते। वैसे कोई भी अपराधी आकर तो यह कहेगा नहीं लो मुझे पकड़ लो। जब भी उसे पकड़ने का प्रयास होगा वह विरोध करेगा और गोली चलाएगा। ऐसे में पुलिस वाले मानवाधिकार की तख्ती तो दिखाएंगे नहीं। गोली का जवाब गोली से देंगे। तब क्या अपराधियों का ही मानवाधिकार होता है।
दरअसल, जब भी कोई सरकार सख्त होती है तो मानवाधिकारवादी हल्ला मचाना शुरु कर देते हैं कि मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। लेकिन यही लोग अपराधियों के जघन्य कांडों पर खामोश रहते हैं तब कोई भी यह नहीं कहता कि मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिए तकनीक विकसित करने व उसे बढ़ाने की जरुरत है। वह जोर देकर कहते हैं कि मानवाधिकारों की रक्षा एक कॉमन मैन की दृष्टि से किये जाने की जरूरत है। सीएम योगी मानते हैं यूपी बदला है इसीलिए यूपी में पांच लाख करोड़ के निवेश का प्रस्ताव आया है लोगों में विश्वास बढ़ा कि अब यहां का वातावरण सुरक्षित है, पिछली सरकारों में भय का वातावरण बना था उससे यहां की प्रतिभा व व्यापारी दोनो पलायन को मजबूर हो गये थे।