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Sharad Pawar: शरद पवार ने जुझारू तेवर से NCP को बनाया बड़ी ताकत मगर भतीजे से मिली हार के बाद सियासी राह हुई मुश्किल
Sharad Pawar: शरद पवार को उनके जुझारू तेवर के लिए जाना जाता रहा है और अपने इस तेवर के कारण ही शरद पवार ने सियासी मैदान में अभी तक बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।
Sharad Pawar: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) पर कब्जे की जंग में शरद पवार को करारा झटका लगा है। पार्टी पर अब शरद पवार के भतीजे अजित पवार का कब्जा हो गया है। चुनाव आयोग ने अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को ही असली एनसीपी बताते हुए पार्टी का चुनाव चिह्न घड़ी भी उन्हें ही सौंप दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले आयोग के इस फैसले से शरद पवार की आगे की सियासी राह काफी मुश्किल हो गई है।
शरद पवार को उनके जुझारू तेवर के लिए जाना जाता रहा है और अपने इस तेवर के कारण ही शरद पवार ने सियासी मैदान में अभी तक बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। अपने जुझारू तेवर के दम पर ही उन्होंने एनसीपी को बड़ी ताकत बनाने में कामयाबी हासिल की थी मगर भतीजे से मिली इस हार के बाद अब शरद पवार के लिए सियासी मैदान में अपनी मजबूती दिखाना आसान नहीं रह गया है। सियासी जानकारों का भी मानना है कि बढ़ती उम्र और खराब सेहत के कारण भी शरद पवार को आने वाले दिनों में सियासी मैदान में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
अपने दम पर एनसीपी को खड़ा किया
महाराष्ट्र के सियासी दिग्गज शरद पवार ने अपने दम पर एनसीपी को खड़ा किया था। 10 जून 1999 को पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर उन्होंने इस पार्टी का गठन किया था। दरअसल उन दिनों सोनिया गांधी ने सियासी मैदान में कदम रखा था और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की तैयारी की जा रही थी।
सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार ने संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर उनका विरोध किया था। इसके बाद पवार, संगमा और तारिक अनवर को 6 साल के लिए कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया और वे इस पार्टी के अध्यक्ष से चुने गए। पीए संगमा और तारिक अनवर को पार्टी का महासचिव बनाया गया था।
पवार की अगुवाई में मिली सियासी कामयाबी
बाद के दिनों में शरद पवार ने अपनी ताकत दिखाते हुए एनसीपी को सियासी मैदान में बड़ी कामयाबी दिलाई। महाराष्ट्र में 1999 के विधानसभा चुनाव में पवार की पार्टी एनसीपी ने 58 सीटों पर जीत हासिल करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया। चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद पवार ने उसी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई जिसके खिलाफ बगावत करते हुए उन्होंने एनसीपी का गठन किया था।
2004 के लोकसभा चुनाव के बाद सियासी तस्वीर और बदली और पवार की अगुवाई वाली एनसीपी यूपीए में शामिल हो गई। 2004 और 2009 में यूपीए को मिली कामयाबी के बाद मनमोहन सरकार में शरद पवार लगातार 10 साल केंद्र में मंत्री बने रहे।
लोकसभा चुनाव में भी दिखाई ताकत
महाराष्ट्र में 2004 के विधानसभा चुनाव के दौरान पवार की अगुवाई में एनसीपी ने 71 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि 2009 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 62 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2007 में गोवा विधानसभा के चुनाव में भी पार्टी ने तीन सीटों पर जीत हासिल की।
लोकसभा चुनाव में भी शरद पवार लगातार अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहे। 1999 के चुनाव में एनसीपी को 8 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में एनसीपी ने 9-9 सीटों पर जीत हासिल की। एनसीपी को अपने गठन के एक साल बाद ही 2000 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो गया था। इस तरह शरद पवार की अगुवाई में एनसीपी सियासी मैदान में प्रमुख ताकत बनी रही।
पिछले साल भतीजे ने दिया सबसे बड़ा झटका
वैसे एनसीपी को अपने गठन के बाद समय-समय पर छिटपुट स्तर पर बगावत का सामना भी करना पड़ा। पवार के साथ पार्टी की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पीए संगमा ने भी बाद में अपनी राहें पार्टी से अलग कर लीं। कुछ अन्य पार्टी नेता भी बीच-बीच में बगावत करते रहे मगर पार्टी को सबसे बड़ा झटका पिछले साल अजित पवार की बगावत से लगा था।
पिछले साल जुलाई महीने में अजित पवार ने अपने चाचा के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए शिंदे गुट और भाजपा गठबंधन से हाथ मिला लिया था। उन्होंने राज्य के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली जबकि उनके साथ पार्टी छोड़ने वाले आठ अन्य विधायकों को भी मंत्री पद हासिल हुआ।
इसके बाद अजित पवार ने पार्टी में बहुमत का दावा करते हुए पार्टी पर कब्जे की जंग शुरू कर दी थी। उन्होंने पार्टी के चुनाव निशान पर दावा करते हुए चुनाव आयोग का रुख किया था। चुनाव आयोग ने दोनों गुटों की दलीलें सुनने के बाद अब भतीजे के पक्ष में फैसला सुनाया है।
आयोग के फैसले से मुश्किल हुई सियासी राह
आयोग के इस फैसले से शरद पवार को करारा झटका लगा है और अब उनके आगे की सियासी राह काफी मुश्किल हो गई है। एनसीपी का नाम और चुनाव निशान घड़ी अब अजित पवार के पास रहेगा। शरद पवार की बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के कारण अब उनके लिए अपनी ताकत दिखाना आसान नहीं रह गया है।
लोकसभा चुनाव में अब काफी कम वक्त रह गया है और ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि शरद पवार अब अपनी सियासी ताकत को कहां तक बनाए रखने में कामयाब हो पाते हैं। महाविकास अघाड़ी गठबंधन में अब सीटों को लेकर भी शरद पवार की स्थिति कमजोर हो गई है। नए चुनाव निशान के साथ मतदाताओं के बीच जाना और अपनी ताकत दिखाना पवार के लिए काफी मुश्किल माना जा रहा है।