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लोकसभा चुनाव : अंबाला से शुरू हुई थी शिमला संसदीय सीट की सियासत

seema
Published on: 12 April 2019 7:13 AM GMT
लोकसभा चुनाव : अंबाला से शुरू हुई थी शिमला संसदीय सीट की सियासत
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लोकसभा चुनाव : अंबाला से शुरू हुई थी शिमला संसदीय सीट की सियासत

शिमला। हिमाचल प्रदेश की शिमला संसदीय सीट की सियासत अंबाला से हुई थी। वर्ष 1952 में जब पहली बार आम चुनाव हुए तो यह सीट अंबाला-शिमला के नाम से थी। पहले ही चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। दूसरे चुनाव में अंबाला-शिमला के स्थान पर इस सीट का नाम महासू रखा गया। यह नाम वर्ष 1967 तक जारी रहा।

देश में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में शिमला सीट पर कांग्रेस ने सबसे अधिक 15 बार जीत दर्ज की है। वर्ष 1952 से लेकर 1971 तक के चुनाव में यहां पर लगातार कांग्रेस ही जीती थी जबकि 1977 के चुनाव में कांग्रेस को भारतीय लोकदल ने पराजित किया। वर्ष 1980 से लेकर 1998 तक फिर से कांग्रेस काबिज हुई, जबकि 1999 में कांग्रेस दो गुटों में बंटी और हिमाचल विकास कांग्रेस की स्थापना हुई। उस साल हिमाचल कांग्रेस से धनीराम शांडिल ने कांग्रेस और भाजपा को पराजित किया था। धनीराम शांडिल 2004 के चुनाव में कांग्रेस में वापस लौटे और शिमला संसदीय सीट से चुनाव भी जीते। उसके बाद 2009 और 2014 के चुनाव में भाजपा लगातार चुनाव जीत कर आई। भाजपा ने पहली बार 2009 के चुनाव में खाता खोला दिया था।

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शिमला संसदीय सीट की सियासत में प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार भी जंग जीत चुके हैं, जब इस सीट का नाम महासू था। महासू सीट पर ही पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। वे 1962 और 1967 के चुनाव में जीत कर आए। महासू संसदीय सीट पर तीन बार उप चुनाव भी हुए। वर्ष 1957 में दो बार उप चुनाव हुए। इस सीट पर 1957 में कांग्रेस के एसएन रमौल चुनाव जीते थे। उसी साल पूर्व मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार को कांग्रेस ने उप चुनावी मैदान में उतारा और वह जीत भी गए। उसी साल फिर से उप चुनाव हुए और कांग्रेस के नेकराम नेगी को जीत मिली थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा को मिली लीड पर गौर करें तो शिमला संसदीय सीट पर बीजेपी को 17 में से 14 विधानसभा क्षेत्रों में लीड मिली, जबकि कांग्रेस सत्ता में रह कर भी मात्र तीन क्षेत्रों में बढ़त हासिल कर पाई। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनावी नतीजे की बात करें तो शिमला, सोलन और सिरमौर के 17 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा बराबरी पर आठ-आठ सीटें हैं, जबकि एक सीट माकपा की झोली में चली गई।

शिमला संसदीय सीट पर आज तक सबसे अधिक बार जीत का रिकार्ड पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी का ही रहा है। केडी सुल्तानपुरी 1980 से लेकर 1998 के चुनाव तक लगातार छह बार चुनाव जीत कर आए। उनका ऐसा रिकार्ड प्रदेश के दूसरे संसदीय क्षेत्र में भी नहीं टूट पाया।

शिमला संसदीय सीट पर, जिसने भाजपा का खाता खोला उसे ही इस बार पार्टी ने बाहर कर दिया। यहां पर लगातार दो बार भाजपा के वीरेंद्र कश्यप ने जीत दर्ज की थी। लगातार 2004 तक भाजपा को जीत नहीं मिली तो 2009 के चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र कश्यप ने पार्टी की झोली में यह सीट डाल दी। उसके बाद फिर से 2014 का चुनाव भी वह जीत गए। बावजूद इसके भाजपा हाइकमान ने सांसद वीरेंद्र कश्यप पर तीसरी बार भरोसा नहीं किया और पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप को चुनावी मैदान में उतार दिया। इस बार कांग्रेस से धनीराम शांडिल के साथ भाजपा के सुरेश कश्यप में जंग हो रही है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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