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Shiv Sena Foundation Day: बाल ठाकरे का क्या था सपना, शिवसेना को इस तरह बनाया महाराष्ट्र की बड़ी सियासी ताकत

Shiv Sena Foundation Day: बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और मराठों की तमाम समस्याओं को हल करने का वादा किया।

Anshuman Tiwari
Published on: 19 Jun 2023 6:16 AM GMT
Shiv Sena Foundation Day: बाल ठाकरे का क्या था सपना, शिवसेना को इस तरह बनाया महाराष्ट्र की बड़ी सियासी ताकत
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Shiv Sena Foundation Day (photo: social media )

Shiv Sena Foundation Day: किसी जमाने में कार्टूनिस्ट का काम करने वाले बाला साहब ठाकरे ने 1966 में आज ही के दिन शिवसेना की स्थापना की थी। बाल ठाकरे को महाराष्ट्र का फायरब्रांड और तेजतर्रार नेता माना जाता रहा है और उन्होंने मराठी मानुष का मुद्दा उठाते हुए शिवसेना की नींव रखी थी। उनका सपना था कि महाराष्ट्र में मराठी मानुष के साथ हो रहे अन्याय को शिवसेना समाप्त करेगी। अपने धारदार भाषण और मजबूत रणनीति के दम पर उन्होंने शिवसेना को महाराष्ट्र की बड़ी सियासी ताकत बनाने में कामयाबी हासिल की। भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद शिवसेना ने महाराष्ट्र में सत्ता का स्वाद भी चखा।

वैसे पिछले साल एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत के बाद शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई है। बाल ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस बगावत से करारा झटका लगा है। आज स्थापना दिवस के मौके पर दोनों गुटों की ओर से अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों में से कौन सा गुट अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहता है।

कार्टूनिस्ट के रूप में बाल ठाकरे

सियासी मैदान में उतरने से पहले बाल ठाकरे फ्री प्रेस जर्नल के लिए कार्टून बनाया करते थे। अपने कार्टून के जरिए बाल ठाकरे समसामयिक मुद्दों और देश की तत्कालीन राजनीति को लेकर तीखा व्यंग्य किया करते थे। बाद में संपादक से अनबन के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी। बाद में उन्होंने 13 अगस्त 1960 को अपनी साप्ताहिक पत्रिका मार्मिक शुरू की थी।

इस पत्रिका में वे गैर मराठियों के बारे में खुलकर लिखा करते थे। उस दौर में महाराष्ट्र में मराठियों की जनसंख्या करीब 43 फीसदी थी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से लेकर, कारोबार और नौकरियों में उनकी तादाद सबसे कम थी। बाल ठाकरे ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। वे मराठी अस्मिता का मुद्दा जोर-शोर से उठाने लगे। अपनी आवाज को और मजबूत बनाने के लिए उन्होंने शिवसेना की स्थापना करने का फैसला लिया।

इसलिए की शिवसेना की स्थापना

बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और मराठों की तमाम समस्याओं को हल करने का वादा किया। उन्होंने मराठियों के लिए नौकरी की सुरक्षा मांगी, जिन्हें गुजरात और दक्षिण भारत के लोगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था। शिवसेना का इस्तेमाल वह विभिन्न कपड़ा मिलों और अन्य औद्योगिक इकाइयों में मराठियों को नौकरियां आदि दिलाने में किया करते थे। उनके इन प्रयासों ने उन्हें हिंदू हृदय सम्राट बनाने में मदद की।

बाल ठाकरे ने 1968 में शिवसेना का एक राजनीतिक पार्टी के रूप में पंजीकरण कराया। 1971 के लोकसभा चुनाव के दौरान शिवसेना ने कई क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे मगर पार्टी को कामयाबी नहीं मिली। 1971 से लेकर 1984 तक शिवसेना के हिस्से खजूर का पेड़, ढाल-तलवार और रेल का इंजन जैसे चुनाव चिह्न रहे। 1984 में शिवसेना एक बार बीजेपी के चुनाव निशान कमल के फूल पर भी चुनाव लड़ी थी। 1985 में मुंबई के नगर निकाय चुनाव में शिवसेना को पहली बार तीर-कमान का चुनाव निशान मिला था। हालांकि शिवसेना में बगावत के बाद अब यह चुनाव निशान भी शिवसेना से छिन गया है और शिंदे गुट ने इस चुनाव निशान पर कब्जा कर लिया है।

भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन

1989 के लोकसभा चुनाव के दौरान शिवसेना पहली बार भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी। इस चुनाव के दौरान शिवसेना के चार उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब रहे। 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन में 183 सीटों पर चुनाव लड़कर 52 पर जीत दर्ज की थी। भाजपा ने चुनाव के दौरान 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों पर जीत हासिल की थी।

इसके बाद शिवसेना ने कई चुनाव बीजेपी के साथ लड़कर महाराष्ट्र की सियासत में खुद को मजबूती से स्थापित कर लिया। 2014 में शिवसेना बीजेपी से अलग हो गई और 288 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिली थीं। बाद में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन करने और सरकार में शामिल होने का बड़ा फैसला किया था।

भतीजे राज ठाकरे ने दिया था बड़ा झटका

बाल ठाकरे को 2005 में उनके भतीजे राज ठाकरे ने बड़ा सियासी झटका दिया था। शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद राज ठाकरे ने 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से नई पार्टी बना ली थी। हालांकि राज ठाकरे अपनी पार्टी के जरिए महाराष्ट्र की सियासत में मजबूती से स्थापित नहीं हो सके। राज ठाकरे ने इस कारण बगावत की थी क्योंकि बाल ठाकरे अपने बेटे उद्धव ठाकरे को शिवसेना का उत्तराधिकारी बनाने की कोशिश में जुटे हुए थे। बाद में बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे को मजबूत बनाने की अपील के साथ उत्तराधिकारी के संबंध में अपने फैसले को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया था।

सीएम पद को लेकर भाजपा से टूटा गठबंधन

2019 में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। भाजपा 105 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली थी। बाद में मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में विवाद पैदा हो गया और गठबंधन टूट गया। शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाया। महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनी और उद्धव ठाकरे शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे।

अब बाल ठाकरे की विरासत की लड़ाई

हालांकि बाद में शिवसेना में बगावत के कारण उद्धव को करारा झटका लगा। एकनाथ शिंदे की अगुवाई में तमाम विधायकों ने उद्धव के खिलाफ बगावत कर दी। बाद में इन बागी विधायकों ने भाजपा के साथ हाथ मिला लिया। भाजपा के समर्थन से महाराष्ट्र में शिंदे सरकार का गठन हुआ। भाजपा के समर्थन से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे जबकि देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शिवसेना में बगावत के बाद उद्धव को लगातार झटके लगते रहे हैं। पार्टी का चुनाव निशान भी उनके हाथ से निकल गया है और तमाम पदाधिकारियों ने भी उद्धव का साथ छोड़ दिया है। ऐसे में अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई है कि आने वाले चुनावों में उद्धव बाल ठाकरे की विरासत को कायम रखने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं। मजे की बात यह है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे दोनों बाल ठाकरे की विरासत की दावेदारी कर रहे हैं। अब इस बात का फैसला जनता की अदालत में ही हो सकेगा कि बाल ठाकरे की विरासत का असली हकदार कौन है।

Anshuman Tiwari

Anshuman Tiwari

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