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मोदी के जीतने से आईएसआई खुश थी, इस किताब में चौकाने वाले खुलासे
नई दिल्ली: रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुलत और आईएसआई के पूर्व चीफ लेफ्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी की संयुक्त रूप से लिखी किताब ’द स्पाई क्रॉनिकल्स : रॉ, आईएसआई एंड इल्यूजन आफ पीस’ पर विवाद इस हद तक पहुँच गया है कि असद दुर्रानी पर पाकिस्तान सरकार ने देश छोड़ने पर रोक लगा दी है. यही नहीं, सेना के कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी ने दुर्रानी के खिलाफ जांच का आदेश भी दिया है। दुर्रानी ने अगस्त 1990 से मार्च 1992 के बीच आईएसआई की अगुवाई की थी। उन्होंने रॉ प्रमुख आर एस दुलत के साथ मिल कर ये किताब लिखी है. इसे हाल में ही भारत में जारी किया गया था।किताब में दुर्रानी और ए.एस. दुलत के बीच बाचतीत है. दोनों भारत-पाकिस्तान संबधों में हर विषय पर चर्चा करते हैं जिनमें सर्जिकल स्ट्राइक, कुलभूषण जाधव, नवाज शरीफ, कश्मीर और बुरहान वानी आदि शामिल हैं।
मोदी हैं आईएसआई की पहली पसंद
द स्पाई क्रॉनिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड इल्यूजन आफ पीसमें लिखा गया है कि आईएसआई नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से ‘खुश’था. क्योंकि आईएसआई की पहली पसंद मोदी ही हैं। दुर्रानी ने लिखा है कि इसके पीछे मोदी की ‘कट्टरपंथी’छवि है। आईएसआई आस लगाए बैठा है कि मोदी कोई ऐसा कदम उठाएंगे जिससे भारत की सेक्युलर छवि को नुकसान पहुंचेगा और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर फायदा होगा।
हाफिज पर मुकदमा चलने की बड़ी कीमत
असद दुर्रानी का कहना है कि मुम्बई हमले के साजिशकर्ता और आतंकी संगठन जमात-उद-दवा के प्रमुख हाफिज सईद पर मुकदमा चलाने की कीमत बहुत बड़ी है। उन्होंने लिखा है – ‘यदि आप सईद पर मुकदमा चलाते हैं तो पहली प्रतिक्रिया होगी: यह भारत की ओर से है, आप उसे परेशान कर रहे हैं, वह निर्दोष है, आदि-आदि. इसकी राजनीतिक कीमत बहुत बड़ी है।’ जब दुर्रानी से दुलत पूछते हैं कि पाकिस्तान के लिए सईद का क्या महत्व है, तो दुर्रानी जवाब देते हैं, ‘उस पर मुकदमा चलाने की कीमत बहुत बड़ी है.’दुर्रानी ने सईद को हिरासत में लेने के बारे में लिखा है, ‘उसे अदालतों में ले जाया जाता था, लेकिन उनके पास उसके खिलाफ (नया) कुछ नहीं होता था। अब भी संभव है कि विवाद की हवा निकालने के लिए उसे हिरासत में लिया जाए। 6 महीने में वह बाहर आ सकता है।
नाटक थी हाफिज की नजरबंदी
जब दुलत ने पूछा कि सईद की नजरबंदी क्या बस एक नाटक थी तो दुर्रानी ने कहा, ‘जहां तक हाफिज सईद की बात है तो नई बात यह है कि (क्या) और सबूत उपलब्ध है? कोई भी उम्मीद लगा सकता है कि हाफिज सईद के साथ समझौता है।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या सईद की नजरबंदी का भारत पाकिस्तान संबंधों पर कोई सकारात्मक परिणाम है, तो उन्होंने कहा, ‘फिलहाल भारत पाकिस्तान संबंध मोर्च पर बहुत ही कम सकारात्मक चीजें हैं।लेकिन इससे उस देश को एक बड़ी राहत मिल सकती है जो लगातार दबाव में है।’
हेडली ने मुसीबत खड़ी कर दी थी
मुम्बई में आतंकी हमले के बारे में दुर्रानी कहते हैं, ‘बात बस यह नहीं है कि 168 लोग मरे थे, चार दिनों तक नरसंहार चला, आदि आदि। उस समय पाकिस्तान अपनी पूर्वी सीमा पर युद्ध की जहमत नहीं उठा सकता था। पश्चिम में और देश में ढेरों समस्याएं थीं। मैं नहीं जानता कि किसने यह किया, लेकिन कुछ सवाल थे जैसे डेविड हेडली ने एक आईएसआई मेजर का नाम लिया। उससे हमारे लिए मुश्किल खड़ी हो गयी।’इस खबर पर कि हेडली ने सईद के साथ साठगांठ की? दुर्रानी ने कहा कि लोग आगे बढ़ कर जांच कर सकते हैं क्योंकि इस तरह की खबरें आयी हैं। मुमकिन है कि हाफिज सईद, आईएसआई, जैश ए मोहम्मद का इससे कोई लेना - देना नहीं हो, कि कोई तीसरी, चौथी या पांचवीं पार्टी शामिल हो।’
कश्मीर में आईएसआई ने बनाई थी हुर्रियत
असद दुर्रानी ने यह स्वीकार किया कि आईएसआई ने ही घाटी में हुर्रियत का बीज बोया था। वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि तहरीक (आंदोलन) को एक राजनीतिक दिशा देने के लिए हुर्रियत का गठन एक अच्छा आइडिया था।‘ लेकिन दुर्रानी हुर्रियत को खुली छूट देने पर अफ़सोस भी जताते हैं. दुर्रानी ने कहा, ‘सबसे बड़ी नाकामी यह थी कि कश्मीर में जब आंदोलन शुरू हुआ, तो हमें यह कतई अंदाजा नहीं था कि यह कितना आगे जाएगा। यह चीज़ें अमूमन छह महीने या एक साल तक चलती हैं, लेकिन जब यह लंबा खिंचने लगा, तो हमें इस बात की फिक्र होने लगी कि इसे अपने काबू में कैसे रखा जाए। हम यह कभी नहीं चाहते थे कि यह बेकाबू हो जाए, क्योंकि इससे जंग छिडऩे का खतरा था और दोनों में कोई भी देश जंग तो नहीं ही चाहता था।‘
दुर्रानी बताते हैं कि वे सबसे पहले कश्मीर के कुपवाड़ा में रहने वाले अमानतुल्ला गिलगिती से मिले, जिसने कश्मीर के पहले हथियारबंद अलगाववादी समूह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट की स्थापना में मदद की। ‘मुझे आज भी इस बात का मलाल है कि हमने अमानतुल्ला को उतनी गंभीरता से नहीं लिया। उसके ग्रुप ने आंदोलन की शुरुआत की थी... आजादी के उसके तीसरे ऑप्शन ने कीचड़ फैलाना शुरू कर दिया और इस आजादी का मतलब भी क्या था भला?’
कश्मीर में फिर बढ़ रही है पाकिस्तान की रूचि
इस किताब में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख दुलत के हवाले से कहा गया कि कश्मीर में पाकिस्तान का इंटरेस्ट एक बार बढ़ता दिख रहा है। दुलत कहते हैं, पिछले तीन वर्षों में हमने जो वहां अनिश्चितता की स्थिति पैदा की उससे यह फिर शुरू होता दिखा है। हमने वहां यथास्थिति बना रखी है, उससे पाकिस्तान ने एक बार उधर ध्यान देना शुरू कर दिया है। दुलत कहते हैं, हुर्रियत पाकिस्तानी टीम है... इंडिया की अपनी टीम है, और इन सबके बीच में कश्मीरी पिस रहे हैं।