TRENDING TAGS :
Tiranga At Lal Chowk: राहुल गांधी से पहले किस-किस ने फहराया था लाल चौक पर तिरंगा, यहां जानें क्या है इतिहास
Tiranga At Lal Chowk: कॉन्फ्रेंस के लड़ाके जो 1947-48 में पाकिस्तान आक्रमण के खिलाफ लड़ रहे थे, ने मॉस्को के ऐतिहासिक रेड स्कवायर के नाम पर श्रीनगर के इस जगह का नाम लाल चौक रख दिया था।
Tiranga At Lal Chowk: सितंबर 2022 में तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आज यानी रविवार 29 जनवरी 2023 को श्रीनगर में लाल चौक पर झंडा फहराने के साथ समाप्त हो गई। श्रीनगर का ऐतिहासिक लाल चौक तिरंगा फहराए जाने के कारण एकबार फिर चर्चाओं में है। कश्मीर में जब आतंकवादी घटनाएं और अलगाववादी गतिविधियां चरम पर थीं, तब यहां पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराना एक तरह से अपनी जान को खतरे में डालना जैसा होता था।
कैसे पड़ा लाल चौक नाम ?
शेर-ए-कश्मीर के नाम से जाने जाने वाले शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस वामपंथी सोवियत संघ से प्रभावित थी। कॉन्फ्रेंस के लड़ाके जो 1947-48 में पाकिस्तान आक्रमण के खिलाफ लड़ रहे थे, ने मॉस्को के ऐतिहासिक रेड स्कवायर के नाम पर श्रीनगर के इस जगह का नाम लाल चौक रख दिया था। शहर के मध्य में स्थित लाल चौक पर 1980 में बजाज इलेक्ट्रिकल्स द्वारा एक क्लॉक टॉवर का निर्माण कराया गया। बाद में यह चौक जम्मू कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया।
पंडित नेहरू ने फहराया था तिरंगा
1947 में आजादी मिलने के दो माह बाद ही पाकिस्तानी सेना ने आदिवासियों के वेश में जम्मू कश्मीर पर हमला बोल दिया था। तटस्थ रहने की बात करने वाले राजा हरि सिंह ने अपना मन बदला और सैन्य सहायता के बदले भारत मे विलय को राजी हो गए। जिसके बाद भारतीय सेना ने युद्ध में उतरते हुए पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। 1948 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने लाल चौक पर एकसाथ खड़े होकर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में मिली जीत की घोषणा की थी। इसी दौरान पंडित नेहरू ने यहां तिरंगा भी फहराया था।
मोदी के साथ जोशी ने फहराया था तिरंगा
1991 में विपक्ष में बैठी बीजेपी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता यात्रा निकाली थी। उस दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। दिसंबर 1991 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू होती है और कई राज्यों से गुजरते हुए जनवरी 1992 में कश्मीर पहुंचती है। उस दौरान कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। बड़े पैमाने पर कश्मीर पंडितों का पलायन हुआ था। लाल चौक जंग का मैदान बना हुआ था।
आतंकवादियों ने हमले की धमकी भी दी थी। हालात को देखते हुए जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने केवल 20 लोगों को ही लाल चौक पर झंडा फहराने की इजाजत दी थी। तब भारी सुरक्षा में मुरली मनोहर जोशी के अलावा एकता यात्रा के कर्ताधर्ता नरेंद्र मोदी दर्जनभर अन्य कार्यकर्ताओं के साथ लाल चौक गए और तिरंगा फहराया। मुरली मनोहर जोशी ने एकबार इसका जिक्र करते हुए बताया था कि 26 जनवरी 1992 की उस सुबह आतंकी रॉकेट से फायर कर रहे थे। चौक से पांच से दस फीट की दूरी पर गोलियां चल रही थीं। इनके अलावा वो हमें गालियां भी दे रहे थे, मगर हमलोगों ने केवल उन्हें राजनीतिक उत्तर ही दिए।