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सिताब दियारा : जे पी के बाद अब हरिवंश

sudhanshu
Published on: 9 Aug 2018 7:29 PM IST
सिताब दियारा : जे पी के बाद अब हरिवंश
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संजय तिवारी

सिताब दियारा: जयप्रकाश नारायण। चंद्रशेखर। इमरजेंसी। जनता पार्टी। ये सभी टर्म कहीं न कहीं एक में गुंथे नजर आते हैं। नयी पीढ़ी को तो नहीं पता होगा। अधेड़ हो चुकी पत्रकारों की पीढ़ी अभी भी देश में है। उन्हें इन शब्दों में बहुत कुछ दिखता है। बहुत कुछ याद भी आता है। सिताब दियारा कोई छोटा सा गांव नहीं है। बलिया से बिहार तक पसरा गंगा का दीयर। यहाँ जीवन आज भी बहुत कठिन है। लेकिन हरिवंश आज भी अपने गांव से उतने ही जुड़े हैं। हर साल मकर संक्रांति पर गांव में दही चिउड़ा खाये बिना उनका मन मानता ही नहीं। एक बार तो अपनी उसी एक यात्रा में गांव में दिखे बदलाव पर उन्होंने एक सम्पादकीय ही लिख दी। उन्होंने बहुत खुल कर गांव में बढ़ रहे शराब के प्रचलन और युवाओं के भटकाव पर लिखा।

जे पी के पडोसी और चंद्रशेखर के बड़े करीबी

लोकनायक जयप्रकाश बाबू इसी सिताब दियारा में जन्मे थे। उन्हीं जे पी के पडोसी और चंद्रशेखर के बड़े करीबी सहयोगी रहे हैं हरिवंश नारायण सिंह। सामान्य तौर पर लोग उन्हें प्रभात खबर के सम्पादक हरिवंश के नाम से ही जानते हैं। हरिवंश के परिवार ने अपनी खेती की जमीन गंगा नदी के कटान की वजह से खो दी थी। परिवार बेहद सामान्य किसान का। सिताब दियारा के दलजीत टोला में 30 जून 1956 को उनका जन्म हुआ।

प्राइमरी काशी राय में, उच्च शिक्षा काशी में

हरिवंश ने अपनी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा गांव के सटे टोला काशी राय स्थित स्कूल से शुरू की। उसके बाद, जेपी इंटर कालेज सेवाश्रम (जयप्रकाशनगर) से 1971 में हाईस्कूल पास करने के बाद वे वाराणसी पहुंचे। वहां यूपी कॉलेज से इंटरमीडिएट और उसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक किया और पत्रकारिता में डिप्लोमा की डिग्री हासिल की।

टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से पत्रकारिता की शुरुआत

हरिवंश को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा के दौरान ही वर्ष 1977-78 में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह मुंबई में प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में उनका चयन हुआ। इसके बाद वे टाइम्स समूह की साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग में 1981 तक उप संपादक रहे। 1981-84 तक हैदराबाद एवं पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की और वर्ष 1984 में इन्होंने पत्रकारिता में वापसी की और 1989 अक्तूबर तक आनंद बाजार पत्रिका समूह से प्रकाशित रविवार साप्ताहिक पत्रिका में सहायक संपादक रहे। साल 1989 में हरिवंश ने रांची से छपने वाले प्रभात खबर के साथ नौकरी की और बाद में इसी अखबार में संपादक के तौर पर भी भूमिका निभाई। साल 2014 में जेडीयू से राज्यसभा का सदस्य बनने के बाद प्रभात खबर के संपादक के पद से हरिवंश ने इस्तीफा दे दिया।

नितीश के बेहद करीबी

सक्रिय राजनीति की पारी के रूप में हरिवंश के दिन केवल वे ही थे जब वह चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके राजनीतिक सलाहकार बने थे। चंद्रशेखर के इस्तीफे के बाद वह फिर से अपने अखबार में लौट गए। चंद्रशेखर के अलावा हरिवंश को नितीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि नितीश को गढ़ने और उनको राजनीति के इतने बड़े मुकाम तक पहुंचाने में हरिवंश की बहुत बड़ी भूमिका रही है।

परमवीर चक्र अलबर्ट इक्का के परिवार की मदद

हरिवंश को मुद्दों की पत्रकारिता के लिए रेखांकित किया जाता है। वह मिशन की पत्रकारिता में एक मिसाल है। इसके लिए दो बड़ी घटनाओं का उल्लेख बहुत जरुरी लगता है। एक घटना है अलबर्ट इक्का के परिवार को मदद करने वाले अभियान की। अलबर्ट इक्का की शहादत के बाद उनका परिवार बहुत ही कष्ट में था। परिवार के पास जीने के संसाधन भी नहीं थे। हरिवंश ने इक्का के परिवार को मदद करने के लिए अभियान चलाया। साढ़े चार लाख रुपये इकठ्ठा कर उन्होंने इक्का के परिवार को दिया। इक्का वही हैं जिन्हे हम परमवीर चक्र विजेता के रूप में जानते हैं।

दशरथ मांझी को सामने लेकर आये

हरिवंश जी की दूसरी बड़ी मुहिम दशरथ मांझी को लेकर थी। यदि हरिवंश न होते तो शायद दशरथ मांझी गुमनामी के अँधेरे में खो गए होते। आज दशरथ मांझी को दुनिया जान रही है। उन पर फिल्में बन रही हैं। उपन्यास लिखे जा रहे हैं।

शोध पर खर्च करते हैं निधि

राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद जब प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत एक गांव को गोद लेना था तब हरिवंश ने तय किया वह एक ऐसे गांव को गोद लेंगे जिसका उनके किसी भी संबंधी से दूर दूर का रिश्ता न हो और वो गांव राजनीतिक रूप से कोई महत्व न रखता हो. हरिवंश ने अंत में बिहार के रोहतास जिले के बहुआरा गांव को चुना। हरिवंश ने अपनी सांसद निधि का बड़ा हिस्सा बिहार के आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के नदियों पर अध्ययन व शोध करने वाले सेंटर और आईआईटी पटना में लुप्त होती भाषाओं पर शोध करने वाले सेंटर को विकसित करने में खर्च किया।



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