Sitaram Yechury Death : वामपंथी राजनीति का बड़ा चेहरा थे येचुरी, छात्र जीवन से ही सियासी मैदान में निभाई सक्रिय भूमिका

Sitaram Yechury : सीताराम येचुरी के निधन के साथ ही देश में वामपंथी राजनीति का बड़ा स्तंभ ढह गया है। वे लगातार तीन बार माकपा के महासचिव चुने गए। वे छात्र जीवन से ही राजनीति के मैदान में सक्रिय हो गए थे।

Anshuman Tiwari
Published on: 12 Sep 2024 12:32 PM GMT (Updated on: 12 Sep 2024 2:46 PM GMT)
Sitaram Yechury Death : वामपंथी राजनीति का बड़ा चेहरा थे येचुरी, छात्र जीवन से ही सियासी मैदान में निभाई सक्रिय भूमिका
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Sitaram Yechury : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी का आज 72 साल की उम्र में निधन हो गया। गंभीर रूप से बीमार होने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था जहां आज दोपहर उन्होंने आखिरी सांस ली। उन्हें सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। येचुरी ने अपने शव को एम्स को दान देने की इच्छा जताई थी और उनके परिवार ने उनकी इच्छा को पूरा करते हुए येचुरी का शव एम्स को दान कर दिया है।

सीताराम येचुरी के निधन के साथ ही देश में वामपंथी राजनीति का बड़ा स्तंभ ढह गया है। वे लगातार तीन बार माकपा के महासचिव चुने गए। वे छात्र जीवन से ही राजनीति के मैदान में सक्रिय हो गए थे। वे स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहने के साथ ही जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रह चुके थे। राज्यसभा सदस्य के रूप में भी उन्होंने देश से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लगातार अपनी बेबाक राय सबके सामने रखी। उनके निधन पर कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने गहरा शोक जताते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

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हैदराबाद में हुई शुरुआती पढ़ाई

सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त, 1952 की तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एसएस येचुरी आंध्र प्रदेश परिवहन विभाग में इंजीनियर थे और मां कलपक्म येचुरी गर्वमेंट ऑफिसर थीं। सीताराम येचुरी की शुरुआती पढ़ाई हैदराबाद में हुई थी। उन्होंने हैदराबाद के ऑल सेंट्स हाईस्कूल में दसवीं तक की पढ़ाई की थी।

अखिल भारतीय स्तर पर पहला स्थान

सीताराम येचुरी पढ़ाई में काफी होनहार थे और उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया उन्होंने दिल्ली के प्रेसिडेंट्स स्कूल दाखिला लिया। वे पढ़ाई में कितने प्रतिभाशाली थे,इसे इस बात से समझा जा सकता है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में येचुरी ने अखिल भारतीय स्तर पर पहला स्थान हासिल किया था।

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इसके बाद येचुरी ने दिल्‍ली के स्‍टीफन कॉलेज से इकोनॉमिक्‍स में बीएम ऑनर्स किया। बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में दाखिला लिया और JNU में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। 1975 में येचुरी जेएनयू में ही पीएचडी करने लगे।

छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रियता

येचुरी ने छात्र जीवन से ही राजनीति के मैदान में अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी। जेएनयू में दाखिला लेने के बाद वे राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगे थे। 1974 में वे स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया में शामिल हुए और बाद में माकपा के सदस्य बने। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से देश में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद वे लोकतंत्र बहाली की लड़ाई लड़ने के लिए अंडरग्राउंड हो गए थे।

सीताराम येचुरी और अन्य (Pic - Social Media)

उनके करीबियों का मानना है कि यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था और इस दौरान कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और मजबूत हुई। 1977-78 के दौरान उन्होंने जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी।

लगातार तीन बार माकपा के महासचिव बने

सीताराम येचुरी भारतीय राजनीति के बड़े नामों में एक थे। वे करीब 32 सालों से सीपीएम के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे। 1992 में वे पहली बार माकपा के पोलित ब्यूरो के सदस्य बने थे। 2005 में उन्हें पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सदस्य के रूप में चुना गया।

2015 में वे पहली बार माकपा के महासचिव चुने। इसके बाद 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार माकपा के महासचिव पद की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई।

गठबंधन की राजनीति के शिल्पकार

करीब पांच दशकों तक के अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान वे वामपंथी राजनीति की धुरी बने रहे। उन्हें वामपंथी दलों को गठबंधन की राजनीति में लाने का भी श्रेय दिया जाता है। यूपीए वन और यूपीए टू के दौरान उन्होंने ही वामपंथी दलों को सरकार का हिस्सा बनने के लिए तैयार किया था।

सीताराम येचुरी (Photo - Social Media)

सीताराम येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर युपीए सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनका और प्रकाश करात का अडिग रुख था।

वैसे साल 1996 में जब ज्योति बसु को प्रधानमंत्री पद मिल सकता था, तब उन्होंने प्रकाश करात के साथ मिलकर इस फैसले का विरोध किया। इस फैसले को खुद ज्योति बसु ने खुले तौर पर एक ऐतिहासिक भूल करार दिया।

राज्यसभा सदस्य के रूप में छोड़ी छाप

राज्यसभा सदस्य के रूप में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी। 2016 में उन्हें राज्यसभा का सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया था। धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक व आर्थिक समानता जैसे मूल्यों के लिए उन्होंने आजीवन लड़ाई लड़ी।

समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने के लिए वे हमेशा सक्रिय रहा करते थे। येचुरी का व्यक्तित्व ऐसा था कि उनका कांग्रेस, राजद और सपा समेत अन्य दलों के साथ भी काफी अच्छा रिश्ता था। यही कारण था कि सभी राजनीतिक दलों के नेता उनका सम्मान किया करते थे।

2021 में हुआ था बेटे का निधन

येचुरी की पत्नी सीमा चिश्ती पेशे से पत्रकार हैं। एक इंटरव्यू के दौरान येचुरी ने कहा था कि उनकी पत्नी आर्थिक रूप से उनका भरण पोषण करती हैं। वैसे येचुरी ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली शादी वीणा मजूमदार की बेटी इंद्राणी मजूमदार से हुई थी। इस शादी से उनकी एक बेटी और एक बेटा है।

2021 में येचुरी को उस समय बहुत बड़ा मानसिक आघात लगा था जब कोरोना के कारण उनके बेटे आशीष का 34 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। जानकारों का कहना है कि अब सीताराम येचुरी के निधन से देश में वामपंथी दलों की राजनीति को करारा झटका लगा है।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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