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Ahmadiyya Muslim: 'आपको धर्म से बाहर करने का अधिकार नहीं,' वक्फ बोर्ड विवाद पर स्मृति ईरानी की दो टूक
Smriti Irani on Waqf Board: अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम बताने वाले आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव पर अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
Ahmadiyya Muslim: आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड (AP Waqf Board on Ahmadiyya) ने बीते दिनों अहमदिया समुदाय को 'गैर-मुस्लिम' करार दिया था। वक़्फ के उस प्रस्ताव पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने बुधवार (26 जुलाई) को जवाब दिया। अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री ने कहा कि, 'वक्फ बोर्ड और उसका समर्थन करने वाले जमीयत उलेमा ए हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) के पास ये अधिकार नहीं है।'
स्मृति ईरानी- कानून के मुताबिक वक़्फ़ को करना होगा काम
केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'वक्फ बोर्ड को 'एक्ट ऑफ पार्लियामेंट' (Act of Parliament) के आधार पर अपनी सेवाएं देनी पड़ेगी, ना कि किसी 'नॉन स्टेट एक्ट के' अंतर्गत। उन्होंने कहा, मुझे पता चला है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने कोई बयान जारी किया है, लेकिन अभी भी हमें आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव के जवाब का इंतजार है। ईरानी बोलीं, हिंदुस्तान की संसद जो कानून तय करेगी, उसी के मुताबिक वक्फ बोर्डों को काम करना होगा।'
स्मृति ईरानी- कानून के मुताबिक वक़्फ़ को करना होगा काम
केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'वक्फ बोर्ड को 'एक्ट ऑफ पार्लियामेंट' (Act of Parliament) के आधार पर अपनी सेवाएं देनी पड़ेगी, ना कि किसी 'नॉन स्टेट एक्ट के' अंतर्गत। उन्होंने कहा, मुझे पता चला है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने कोई बयान जारी किया है, लेकिन अभी भी हमें आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव के जवाब का इंतजार है। ईरानी बोलीं, हिंदुस्तान की संसद जो कानून तय करेगी, उसी के मुताबिक वक्फ बोर्डों को काम करना होगा।'
जानें क्या कहा था जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने?
दरअसल, बीते दिनों जमीयत उलेमा ए हिंद (Jamiat Ulema e Hind) ने एक बयान में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय (Ahmadiyya Community) के संबंध में अपनाए गए दृष्टिकोण को सही ठहराते हुए कहा था कि ये सभी मुस्लिमों की सर्वसम्मत राय है। जमीयत ने बयान में कहा कि, 'इस संबंध में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की अलग राय और उनका अलग रुख अनुचित, अतार्किक है। क्योंकि, वक्फ बोर्ड की स्थापना मुस्लिमों की वक्फ संपत्तियों (Waqf Properties) और उनके 'हितों के संरक्षण' के लिए की गई है। ऐसा वक्फ एक्ट में लिखा है।'
'जो समुदाय मुस्लिम नहीं, उसकी संपत्तियां....'
जमीयत उलेमा ए हिंद ने ये भी कहा कि, 'जो समुदाय मुस्लिम नहीं हैं, उसकी संपत्तियां और इबादत के स्थान इसके दायरे में नहीं आते हैं। जमीयत ने आगे कहा, साल 2009 में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जमीयत उलेमा आंध्र प्रदेश की अपील पर ये दृष्टिकोण अपनाया था। वक्फ बोर्ड ने इस साल 23 फरवरी के अपने बयान में उसी दृष्टिकोण को दोहराया है।'
अहमदिया पर अभी क्यों है विवाद?
गौरतलब है कि, इसी साल फरवरी में अहमदिया मुस्लिम समुदाय को आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड (Andhra Pradesh Waqf Board) ने जमीयत उलेमा के फतवे का जिक्र करते हुए 'काफिर' करार दिया था। उनके खिलाफ गैर मुस्लिम होने का आदेश जारी किया। इसी के विरोध में 20 जुलाई को अहमदिया मुस्लिम समाज की ओर से अल्पसंख्यक मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs) में शिकायत की गई थी। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने
क्या है जमीयत की दलील?
जमीयत का कहना है कि, 'इस्लाम की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर टिकी है। एक, अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल तथा अंतिम नबी मानना है। बयान में कहा गया है कि ये दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं। संगठन ने आगे कहा, इन इस्लामी मान्यताओं के विपरीत मिर्जा गुलाम अहमद (Mirza Ghulam Ahmad) ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जो 'पैगम्बर वाद' के अंत की अवधारणा के पूरी तरह विरुद्ध है। इस मौलिक और वास्तविक अंतर के मद्देनजर अहमदिया को इस्लाम के संप्रदायों में शामिल करने का कोई आधार नहीं है। इस्लाम के सभी पंथ इस बात पर सहमत हैं कि ये गैर मुस्लिम समुदाय है।'
कौन हैं अहमदिया मुसलमान?
अब सवाल उठता है अहमदिया मुसलमान कौन हैं? बता दें, अहमदिया मुस्लिम समुदाय का वो पंथ है, जो मिर्जा गुलाम अहमद (Mirza Ghulam Ahmad) को मानता है। मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में इस्लाम के भीतर ही एक 'पुनरुत्थान आंदोलन' के रूप में अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी। मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म ब्रिटिश-भारत के पंजाब प्रांत (Punjab Province) में 13 फरवरी 1835 को हुआ था।
200 से अधिक देशों में फैले हैं समुदाय के लोग
अहमदिया मुस्लिम (Ahmadiyya Muslim) समुदाय की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, इस समुदाय को मानने वाले लोग 200 से अधिक देशों में हैं। अहमदिया समुदाय के हिस्से पूरी दुनिया में 16,000 से अधिक मस्जिदें, 600 स्कूल और 30 अस्पताल हैं। इस समुदाय ने कुरान का 70 से अधिक भाषाओं में अनुवाद भी किया है। समुदाय में सबसे बड़ा स्थान 'खलीफा' का होता है। हजरत मौलवी नुरुद्दीन (Hazrat Maulvi Nuruddin) इस समुदाय के पहले खलीफा थे। अब तक संप्रदाय में 5 खलीफा हुए हैं। फिलहाल, मिर्जा मसरूर अहमद संप्रदाय के खलीफा हैं, जो लंदन में रहते हैं।
दरअसल, बीते दिनों जमीयत उलेमा ए हिंद (Jamiat Ulema e Hind) ने एक बयान में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय (Ahmadiyya Community) के संबंध में अपनाए गए दृष्टिकोण को सही ठहराते हुए कहा था कि ये सभी मुस्लिमों की सर्वसम्मत राय है। जमीयत ने बयान में कहा कि, 'इस संबंध में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की अलग राय और उनका अलग रुख अनुचित, अतार्किक है। क्योंकि, वक्फ बोर्ड की स्थापना मुस्लिमों की वक्फ संपत्तियों (Waqf Properties) और उनके 'हितों के संरक्षण' के लिए की गई है। ऐसा वक्फ एक्ट में लिखा है।'
'जो समुदाय मुस्लिम नहीं, उसकी संपत्तियां....'
जमीयत उलेमा ए हिंद ने ये भी कहा कि, 'जो समुदाय मुस्लिम नहीं हैं, उसकी संपत्तियां और इबादत के स्थान इसके दायरे में नहीं आते हैं। जमीयत ने आगे कहा, साल 2009 में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जमीयत उलेमा आंध्र प्रदेश की अपील पर ये दृष्टिकोण अपनाया था। वक्फ बोर्ड ने इस साल 23 फरवरी के अपने बयान में उसी दृष्टिकोण को दोहराया है।'
अहमदिया पर अभी क्यों है विवाद?
गौरतलब है कि, इसी साल फरवरी में अहमदिया मुस्लिम समुदाय को आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड (Andhra Pradesh Waqf Board) ने जमीयत उलेमा के फतवे का जिक्र करते हुए 'काफिर' करार दिया था। उनके खिलाफ गैर मुस्लिम होने का आदेश जारी किया। इसी के विरोध में 20 जुलाई को अहमदिया मुस्लिम समाज की ओर से अल्पसंख्यक मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs) में शिकायत की गई थी। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने
क्या है जमीयत की दलील?
जमीयत का कहना है कि, 'इस्लाम की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर टिकी है। एक, अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल तथा अंतिम नबी मानना है। बयान में कहा गया है कि ये दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं। संगठन ने आगे कहा, इन इस्लामी मान्यताओं के विपरीत मिर्जा गुलाम अहमद (Mirza Ghulam Ahmad) ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जो 'पैगम्बर वाद' के अंत की अवधारणा के पूरी तरह विरुद्ध है। इस मौलिक और वास्तविक अंतर के मद्देनजर अहमदिया को इस्लाम के संप्रदायों में शामिल करने का कोई आधार नहीं है। इस्लाम के सभी पंथ इस बात पर सहमत हैं कि ये गैर मुस्लिम समुदाय है।'
कौन हैं अहमदिया मुसलमान?
अब सवाल उठता है अहमदिया मुसलमान कौन हैं? बता दें, अहमदिया मुस्लिम समुदाय का वो पंथ है, जो मिर्जा गुलाम अहमद (Mirza Ghulam Ahmad) को मानता है। मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में इस्लाम के भीतर ही एक 'पुनरुत्थान आंदोलन' के रूप में अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी। मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म ब्रिटिश-भारत के पंजाब प्रांत (Punjab Province) में 13 फरवरी 1835 को हुआ था।
200 से अधिक देशों में फैले हैं समुदाय के लोग
अहमदिया मुस्लिम (Ahmadiyya Muslim) समुदाय की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, इस समुदाय को मानने वाले लोग 200 से अधिक देशों में हैं। अहमदिया समुदाय के हिस्से पूरी दुनिया में 16,000 से अधिक मस्जिदें, 600 स्कूल और 30 अस्पताल हैं। इस समुदाय ने कुरान का 70 से अधिक भाषाओं में अनुवाद भी किया है। समुदाय में सबसे बड़ा स्थान 'खलीफा' का होता है। हजरत मौलवी नुरुद्दीन (Hazrat Maulvi Nuruddin) इस समुदाय के पहले खलीफा थे। अब तक संप्रदाय में 5 खलीफा हुए हैं। फिलहाल, मिर्जा मसरूर अहमद संप्रदाय के खलीफा हैं, जो लंदन में रहते हैं।
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