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नेपाली कीड़े सांप और कछुओं की आफत, हो रहा अंधाधुंध शिकार

raghvendra
Published on: 14 Jun 2019 12:28 PM IST
नेपाली कीड़े सांप और कछुओं की आफत, हो रहा अंधाधुंध शिकार
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गोरखपुर: नेपाल में पाए जाने वाले दुर्लभ सांप, कछुए और कुछ कीड़ों का अंधाधुंध शिकार हो रहा है। इस जीवों का इस्तेमाल यौनवर्धक दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है। आधी हकीकत और आधे फसाने के बीच नेपाल ऐसे दवाओं का केंद्र बन चुका है। मोटी कमाई की चाह में लोग ऊंची पहाडिय़ों पर जड़ी बूटी की तलाश में न सिर्फ जान गंवा रहे हैं, बल्कि वन्य प्राणियों की तस्करी कर रहे हैं। ‘हिमालय वियाग्रा’ के नाम से प्रचलित जड़ी -बूटी की तलाश में बीते सप्ताह आठ नेपालियों की मौत के बाद इसपर प्रतिबंध की मांग उठने लगी है।

‘हिमालय वियाग्रा’ के नाम से प्रसिद्ध दुर्लभ जड़ी-बूटी यार्सागुम्बा पिछले दिनों तब सुर्खियों में आ गई जब नेपाल के डोल्पा जिले में इसकी तलाश में जुटे आठ नेपालियों की मौत की खबर आईं। 10 हजार फुट से ऊंचे हिमालय के पहाड़ों दुर्लभ जड़ी-बूटी की तलाश में पहले भी कई लोगों की जान जा चुकी है। जड़ी-बूटी की लूट को लेकर हत्याएं तक हो चुकी हैं। अपने यौनवर्धक गुणों के लिए विख्यात यार्सागुम्बा केवल नेपाल में स्थित हिमालय की वादियों में पाई जाती है। आयुर्वेद में यार्सागुम्बा को जड़ी-बूटी की श्रेणी में रखा गया है लेकिन असल में यह एक मृत कीड़ा है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘कोर्डिसेप्स साइनेसिस’ है। यह हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़ों पर पाई जाती है। यार्सागुम्बा और यारसागम्बू नाम से प्रचलित इस जड़ी-बूटी की चीन, अमेरिका, अरब व यूरोपियन देशों में जबरदस्त मांग है। निर्वासित तिब्बती भी इसके कारोबार में जुड़े हैं।

‘हिमालय वियाग्रा’ के कारोबार को भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा है। नेपाल में भी 2001 तक इस पर प्रतिबंध था। 2001 के बाद नेपाल सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया। ये जड़ी-बूटी शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में भी मददगार है।

जानकारों का दावा है कि सांस और किडनी की बीमारी में भी इसका इस्तेमाल काफी कारगर है। भूरे रंग का यह कीड़ा लगभग 2 इंच लंबा होता है और नेपाल में उगने वाले कुछ खास पौधों पर सर्दियों में पौधों से निकलने वाले रस के साथ पैदा होता है। इस कीड़े की जिंदगी लगभग छह महीने बताई जाती है। यार्सागुम्बा कीड़ा मई-जून में जीवन चक्र पूरा कर मर जाते हैं। मरने के बाद पहाडिय़ों पर घास-पौधों के बीच बिखरते हैं। इन्हीं मृत यार्सागुम्बा कीड़ों का उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है। वर्तमान में यार्सागुम्बा सोसायटी इसे बेचती है। नेपाल में मई-जून में यार्सागुम्बा इकठ्ठा करने की होड़ मच जाती है। वहां के लोग इसे इक_ा करने के लिए पहाड़ों पर ही टेंट लगाकर रहते हैं। इसके कारोबार में जुटे लोगों के मुताबित, यार्सागुम्बा से बनी जड़ी-बूटी को दिल्ली और नेपाल के व्यापारी 10 लाख रुपए प्रति किलो तक खरीदते हैं। चीन में यार्चागुम्बा को चाय और सूप में डाल कर पीते हैं। उनका मानना है कि यह नपुंसकता से लेकर कैंसर तक के इलाज में कारगर है। हालांकि वैज्ञानिक तौर पर इसके फायदे साबित नहीं हुए हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की रिपोर्ट में इसे दुनिया की सबसे कीमती जैविक वस्तु में शामिल किया गया है। अनुमान के मुताबिक अरब देशों और यूरोप में इसकी कीमत 60 लाख रुपए प्रति किलो तक पहुंच जाती है।

दो मुंह वाले सांप के विष की तस्करी

नेपाल की पहाडिय़ों में मिलने वाले दो मुंह वाले सांप की भी खूब तस्करी हो रही है। इन सांपों का इस्तेमाल यौनवर्धक दवा बनाने के अलावा तंत्र-मंत्र के लिए भी किया जाता है। पिछले दो-तीन वर्षों में नेपाल सीमा से लगे इलाकों में सुरक्षा एजेंसियां 250 करोड़ से अधिक कीमत के सांप और विष की बरामदगी कर चुकी हैं। पिछले दिनों बहराइच में एसपीजी और वन विभाग की टीम ने छापेमारी कर ‘सैंडबोआ’ प्रजाति के सांप के साथ चार तस्करों को गिरफ्तार किया था।

इंटरनेशल मार्केट में इन सांपों की कीमत 3 करोड़ से लेकर 25 करोड़ रुपए तक आंकी गई थी। सैंडबोआ प्रजाति के सांपों की अरब देशों में खासी डिमांड है। इंडोनेशिया और चीन में भी इसका एक बड़ा बाजार है। लोगों में भ्रम है कि इस सांप का मांस खाने से हमेशा जवान रहा जा सकता है। जानकारों के मुताबिक इस सांप में इरिडियम नामक तत्व पाया जाता है। दिल्ली और मुंबई में बैठे मास्टर माइंड इसे 10 लाख तक में खरीद कर ग्लोबल मार्केट में करोड़ों में बेच देते हैं। पिछले दिनों बिहार से सटी नेपाल सीमा पर एसएसबी ने तस्कर विजय कुमार और नौशाद आलम के पास से 70 करोड़ कीमत के सांपों की बरामदगी की थी। तस्करों ने पूछताछ में बताया था कि सर्प विष का इस्तेमाल ड्रग्स में भी किया जाता है।

करोड़ों की चाह में कछुओं की तस्करी

यौनशक्ति बढ़ाने की दवा बनाने के लिए विशेष प्रजाति के कछुओं की भी तलाश नेपाल में पूरी होती है। तीन-चार दशकों से नियमित रूप से पकड़े जा रहे कछुआ तस्कर इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि नेपाल की नदियों में पाया जाने वाला कछुआ तस्करों के लिए सोना उगल रहे हैं। नेपाल की नदी और नालों में विशेष प्रजाति के कछुएं बहुतायत में पाए जाते हैं। नदियों समेत यहां के जलाशय व बड़े ताल कछुओं के प्रजनन के मुख्य अड्डे हैं। जानकारों के मुताबिक, यह कछुुए पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण भी हैं। कछुओं की तस्करी चीन से लेकर अरब देशों तक होती है। इसके अंगों का प्रयोग कामोत्तेजक दवाओं के लिये किया जाता है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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