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MP Politics: मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाएगी सपा, अखिलेश की नाराजगी से लग सकता है सियासी झटका
MP Politics: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दोनों सियासी दल अलग-अलग ताल ठोक रहे हैं। जिस कारण कांग्रेस को ज्यादा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
MP Politics: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच वाकयुद्ध भले ही थम गया हो मगर दोनों दलों के रिश्तों में खटास जरूर पैदा हो गई है। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दोनों सियासी दल अलग-अलग ताल ठोक रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि दोनों दलों के बीच तालमेल न हो पाने के कारण कांग्रेस को ज्यादा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को समाजवादी पार्टी की वजह से बड़ा झटका लगा था। 2018 में कांग्रेस को सपा की वजह से आठ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। इस बार भी उत्तर प्रदेश से सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में सपा कांग्रेस को बड़ा झटका दे सकती है। मौजूदा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले के कारण सपा को मिले वोट कई क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशियों की हार का कारण बन सकते हैं।
कांग्रेस ने नहीं पूरी की सपा की डिमांड
मध्य प्रदेश में चुनावी तालमेल के लिए सपा और कांग्रेस नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हुई मगर आखिरकार दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो सका। दरअसल सपा मुखिया अखिलेश यादव की ओर से जितनी सीटों की डिमांड की जा रही थी,उतनी सीटें देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व तैयार नहीं था। यही कारण था कि दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया और बात चिरकुट और पिता का सम्मान न करने की हद तक पहुंच गई।
दोनों दलों के बीच पैदा हुई तल्खी से विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में स्पष्ट तौर पर दरार दिखने लगी है। हालांकि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दखल देने के बाद दोनों दलों के नेताओं के बीच वाकयुद्ध जरूर थम गया है मगर दोनों दलों में भीतर ही भीतर नाराजगी जरूर बनी हुई है।
अखिलेश ने नाराजगी में उतार दिए अपने प्रत्याशी
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ओर से गठबंधन न किए जाने को लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव काफी नाराज बताए जा रहे हैं। उनकी नाराजगी का ही असर है कि सपा की ओर से मध्य प्रदेश की तीन दर्जन सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं। आने वाले दिनों में पार्टी और सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर सकती है। सपा ने मध्य प्रदेश में इस बार कई सीटों पर जीत हासिल करने के लिए आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति भी तैयार की है।
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा की दिलचस्पी अनायास नहीं है। 2003 के विधानसभा चुनाव में सपा ने मध्यप्रदेश में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। पार्टी ने चार फीसदी वोटों के साथ सात सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि उसके बाद सपा अपने उसे प्रदर्शन को अभी तक नहीं दोहरा सकी है।
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कांग्रेस के लिए क्यों खतरा बनी सपा
सियासी जानकारी का मानना है कि सपा के चुनाव लड़ने से उत्तर प्रदेश से सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। मध्य प्रदेश की करीब 185 किलोमीटर की सीमा उत्तर प्रदेश से लगती है। इसके साथ ही यूपी से सटे मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड वाले इलाके में भी सपा का अच्छा असर माना जाता है।
सीमावर्ती इलाकों में यादव मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। ऐसे में सपा का चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। हालांकि सपा उत्तर प्रदेश की तरह मध्य प्रदेश में मजबूत नहीं है मगर वह कई सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार का कारण जरूर बन सकती है।
2018 में भी सपा ने दिया था झटका
2018 के विधानसभा चुनाव में सपा मध्य प्रदेश में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी मगर पांच सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी जबकि चार सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों ने तीसरे नंबर के वोट हासिल किए थे। तीन सीटों पर सपा प्रत्याशियों ने भाजपा और कांग्रेस के बीच हार-जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी।
एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि सपा प्रत्याशी जिन पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे थे,उनमें से चार सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल करते हुए कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था। सिर्फ पृथ्वीपुर विधानसभा सीट ऐसी थी जिस पर कांग्रेस जीतने में कामयाब हुई थी। मैहर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को तीन हजार वोटो से हार मिली थी जबकि इस सीट पर सपा प्रत्याशी ने करीब 11 हजार वोट हासिल किए थे। यही कारण है कि चुनावी जानकार सपा प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने को कांग्रेस के लिए नुकसानदेह मान रहे हैं।