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इस इमामबाड़े में हैं सोने-चांदी के ताजिये, केवल 10 दिनों के लिए होती है जियारत
गोरखपुर: पूरे इंडिया में जितनी धरोहरें हैं, उनमें सबसे ज्यादा धरोहरें उत्तर प्रदेश में आती हैं। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश में एक ऐसी धरोहर है, जो पूरे इंडिया में कहीं और नहीं है। वह अनोखी धरोहर है, इमामबाड़े में रखा सोने और चांदी के ताजिया, जो कि दूसरी जगह मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। जी हां, यह इमामबाड़ा देश का अकेला इमामबाड़ा है, जहां सोने-चांदी के ताजिये हैं।
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इन सोने और चांदी के ताजियों को देखने के लिए न सिर्फ गोरखपुर बल्कि देशभर से लोग पहुंचते हैं। साल में मोहर्रम के दौरान महज दस दिन के लिए इसकी जियारत कराई जाती है, बाकी सारे साल यह बंद रहती है और कुछ चुनिंदा लोग ही वहां पहुंच सकते हैं।
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इमामबाड़ा सामाजिक एकता व अकीदत का ऐसा केंद्र है, जहां हर धर्म और जाति के लोग पहुंचते हैं। हिंदुस्तान में इसकी पहचान सुन्नी संप्रदाय के सबसे बड़े इमामबाड़े के तौर पर है। अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने सोने से बना ताजिया यहां भेजा था। नवाब की बेगम ने भी चांदी का ताजिया भेजा। इमामबाड़े की दरों- दीवार व सोने-चांदी की ताजिया में मुगलिया वास्तुकला रची- बसी नजर आती है, जो ऐतिहासिकता का अनुभव कराती है।
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मियां साहब इमामबाड़ा के छठवें सज्जादानशीं मियां अदनान फर्रुख अली शाह ने बताया कि रोशन अली शाह करीब सन 1707 ई में गोरखपुर तशरीफ लाए। उन्होंने 1717 ई इमामबाड़ा तामीर किया। मियां साहब की ख्याति की वजह से इस इलाके को मियां बाजार के नाम से जाना जाने लगा। अवध में नवाब आसिफुद्दौला का दौर था। इस दौरान उन्होंने रोशन अली शाह को 15 गांवों की माफी जागीर दी।
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एक मशहूर वाकये के दौरान नवाब आसिफुद्दौला रोशन अली शाह की बुजुर्गी के कायल हुए। रोशन अली शाह से उनके लिए कुछ करने की इजाजत चाही। रोशन अली ने नवाब से इमामबाड़े की विस्तृत तामीर के लिए कहा, जिसे नवाब ने माना और इमामबाड़ा तामीर करवाया।