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नक्सली आंदोलन के संस्थापक कानू सान्याल की पुण्यतिथि, जानिए उनकी पूरी कहानी

नक्सली आंदोलन के संस्थापक कानू सान्याल का आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन कानू सान्याल ने पश्चिम बंगाल स्थित नक्सलबाड़ी में अपने घर पर खुद को

Shweta
Published on: 23 March 2021 11:52 AM GMT
नक्सली आंदोलन के संस्थापक कानू सान्याल की पुण्यतिथि, जानिए उनकी पूरी कहानी
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नई दिल्लीः नक्सली आंदोलन के संस्थापक कानू सान्याल का आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन कानू सान्याल ने पश्चिम बंगाल स्थित नक्सलबाड़ी में अपने घर पर खुद को फंदे से लटका लिया। 23 मार्च 2010 कोई नहीं भूल सका है। जब कानू अपने कमरे में मृत्य पाएं गए। कानू सान्याल नक्सलवादी विद्रोह के पहले सूत्रधार है।

कौन है कानू सान्यालः

दार्जीलिंग जिले के कर्सियांग में जन्में कानू सान्याल पांच भाई और बहनों में सबसे छोट थे । यही कारण रहा घर में यह सबके लाडले रहे। कानू के पिता आनंद गोविंद सान्याल कर्सियांग के कोर्ट में पदस्थ थे. कानू की शिक्षा एमई स्कूल से मैटिक की हुई इसके बाद से कानू ने इंटर की पढ़ाई जलपाईगुड़ी कॉलेज से किया। लेकिन किसी कारण से कानू को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। कुछ दिनों बाद उन्हें दार्जीलिंग के ही कलिंगपोंग कोर्ट में राजस्व क्लर्क की नौकरी मिली।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि बंगाल के मुख्यमंत्री ने उन्हे गिरफ्तार करायाः

आप को बता दें कि कानू बचपन से ही तेजतर्रार रहे। यहीं कारण रहा की कानू ने बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय को काला झंडा दिखाया। जिसके बाद से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दरमियान जेल में कानू की मुलाकात चारु मजुमदार से हुई। जेल से बार आने के बाद से कानू ने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।लेकिन यह पार्टी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी। इस पार्टी के टूटने के बाद से कानू माकपा के साथ रहने लगे। 1967 में कानू सान्याल ने दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की। अपने जीवन के लगभग 14 साल जेल में गुजारे।

चलिए आप को आज हम बताएंगे कानू से जुड़ी दिलचस्प बातः

आप को बता दें कि 'बंदूक के ज़ोर पर ही सत्ता हासिल की जा सकती है', माओ की इस विचार का कानू पर इतना गहरा असर पड़ा की वह अपने करीबी दोस्त दीपक बिस्वास के साथ चीन में चोरी छुपे चले गए। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से ट्रेनिंग लेने वाले कानू ने अपनी 'तेराई रिपोर्ट' में लिखा थाकि वो माओ, तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई और आर्मी के कमांडर इन चीफ से मिले थे. 'माओ ने हमें सलाह दी थी कि जो कुछ चीन में सीखा है, उसे भुलाकर अपने देश की खास स्थितियों का समझकर क्रांति को आगे ले जाया जाए.' माओ से ही प्रभावित होकर चारु और कानू ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी CPI(M-L) 1969 में बनाई।

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