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मां को तीर्थयात्रा पर घुमाने का वादा करके गया था ये आर्मी मैन, ऐसे हुआ शहीद
लखनऊ: राजधानी के रहने वाले लेफ्टिनेंट हरि सिंह बिष्ट आतंकियों से लड़ते हुए 21 जुलाई को देश के लिए शहीद हो गए थे। लेकिन शहादत हासिल करने से पहले इस फौजी ने ऐसा काम कर दिया, जिसे देश हमेशा याद रखता है और रखता रहेगा। बता दें कि गोली लगने के बावजूद इस लेफ्टिनेंट ने एक आतंकी संगठन के दो बड़े आतंकियों को मार गिराया था।
लेफ्टिनेंट हरि सिंह बिष्ट की बहन मोनिका बिष्ट ने newstrack.com से बात की और अपने भाई की अनटोल्ड स्टोरी को बयां किया।
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ऐसे बीता बचपन
मोनिका बताती हैं- "बड़े भाई लेफ्टिनेंट हरि सिंह बिष्ट का जन्म 31 दिसम्बर 1974 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के डोबा नामक गांव में एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था''।
पिता पूरन सिंह आर्मी में थे और मां शान्ति देवी हाउस वाइफ। चार भाई-बहनों में से हरि सिंह सबसे बड़े थे। उनका बचपन लखनऊ में बीता था और शुरुआती पढ़ाई देहरादून से हुई। फिर 10वीं से 12वीं तक की पढ़ाई लखनऊ के केंद्रीय विद्यालय से की थी’’।
मां चाहती थी बेटा बने डाक्टर
पिता आर्मी में थे, इसलिए मां नहीं चाहती थी उनका इकलौता बेटा हरि सिंह भी पिता की तरह आर्मी ज्वाइन करे। उनकी ख्वाहिश थी कि बेटा एक डॉक्टर बने।"
मां की इच्छा के लिए हरि सिंह ने सीपीएमटी का एग्जाम दिया और उसमें सेलेक्ट हो गए, लेकिन उन्होंने मेडिकल में एडमिशन नहीं लिया।
आर्मी स्कूल में टीचिंग भी की
हरि सिंह ने मां से ये कहकर मेडिकल में एडमिशन लेने से इनकार कर दिया कि डॉक्टर बनना मेरी नहीं आप लोगों की इच्छा थी, इसलिए मैं इस एग्जाम में बैठा, लेकिन मेरी इच्छा देश के लिए सिपाही बनने की है।
आप मुझें एक मौक़ा जरुर दीजिए। उसके बाद 1996 में उनका सिलेक्शन आर्मी स्कूल में टीचर के रूप में हो गया। वहां पर कुछ दिनों तक टीचिंग की।
ऐसे पूरा हुआ आर्मी में जाने का सपना
मोनिका के मुताबिक- "पिता के कहने पर टीचिंग कि जॉब छोड़कर हरि सिंह सीडीएस की तैयारी करने लगे। इसी बीच उनका सिलेक्शन एमबीए में हुआ, लेकिन उन्होंने इसके लिए भी इंकार कर दिया।"
मोनिका बताती हैं- "हरि सिंह की आर्मी ज्वाइन करने की इच्छा 4 अगस्त 1998 में पूरी हुई। उनका सिलेक्शन आर्मी ऑफिसर के तौर पर हुआ।
पेरेंट्स थे काफी खुश
डेढ़ साल के ट्रेनिंग के बाद 11 दिसम्बर 1999 को उन्होंने गोरखा राइफल्स में आर्मी ऑफिसर के रूप में ड्यूटी ज्वाइन की। उस टाइम पैरेंट्स भी काफी खुश हुए थे।
उन्हें इस बात की ज्यादा खुशी थी कि उनका बेटा कड़ी मेहनत से अपने दम पर इस पद पर पहुंचा है। 16 जनवरी 2000 को हरी सिंह शाहजहांपुर के गोरखा राइफल्स में ड्यूटी करने के लिए रवाना हो गए।"
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दुश्मनों से लड़ते हुए ऐसे हुए थे शहीद
17 जून 2000 को सिर्फ तीन दिन की छुट्टी पर अचानक से हरि सिंह घर आये थे, परिवार के साथ समय बिताया और चले गए।
ड्यूटी पर लौटते टाइम मां से ये वादा किया कि दिसम्बर में एक महीने की छुट्टी लेकर घर आउंगा, उसके बाद सभी को तीर्थयात्रा पर लेकर जाउंगा। लेकिन घर वाले इन्तजार करते रह गये और हरि सिंह कभी घर वापस लौट कर नहीं आए।
21 जुलाई 2000 को लेफ्टिनेट हरी सिंह बिष्ट को जानकारी मिली थी कि जम्मू कश्मीर के पूंछ जिले के मानधार सेक्टर के मंझियारी गांव में आतंकियों का एक गिरोह छिपा हुआ है।
हरि सिंह ने अपनी टीम के साथ सर्च ऑपरेशन शुरू किया। इतने में आतंकियों की तरफ से गोलाबारी शुरू हो गई। उस गोलाबारी में हरि सिंह बुरी तरह से घायल हो गए।
ऐसे किया था दो आतंकी कमांडरों का खात्मा
इसके बाद हरि सिंह जमीन पर रेंगते हुए आतंकियों के करीब जा पहुंचे और फिर एक पैर पर खड़े होकर आधे घंटे तक दुश्मनों पर गोलियां बरसाते रहे।
हरि सिंह की इस गोलीबारी में हिजबुल मुजाहिद्दीन का पीर पंजाल इलाके का डिविजनल कमांडर आबु अहमद तुर्की और एरिया कमांडर अबू हमजा मार गया। इसके बाद हरि सिंह भी शहीद हो गए।
राष्ट्रपति के हाथों मिला था ये वीरता पुरस्कार
मोनिका बताती हैं "दुश्मनों से वीरता से लड़ते हुए शहीद होने पर देश के राष्ट्रपति ने बड़े भाई हरि सिंह को शौर्य चक्र से सम्मानित किया।"
ये अवार्ड मेरी मां शांति देवी को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में राषट्रपति ने दिया था।"