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नवरात्रि विशेष : सदियों से आस्था और विश्वास का केंद्र है उतरौला का ज्वाला महारानी मंदिर
बलरामपुर: शारदीय नवरात्र माने मां दुर्गा के नव रूपों के पूजन का दिन। मां दुर्गा के तमाम रूपों में से एक है, मां ज्वाला का रूप। माता के इस रूप का पूरे भारत में महज दो विख्यात मंदिर है। पहला हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में और बलरामपुर जिले के उतरौला कस्बे में। यहां पर भक्त मां ज्वाला के सामने अपनी मुरादें रखते हैं और पूरा हो जाने पर कड़ाह प्रसाद (हलवे का प्रसाद) करवाते हैं।
शक्ति आराधना का सबसे बड़ा केंद्र है ये मन्दिर
उतरौला के मुख्य बाजार में स्थित होने के कारण यहां के स्थानीय लोगों के लिए शक्ति आराधना का सबसे बड़ा केंद्र ये मन्दिर है। नवरात्रों के दौरान यहां पर हजारों की संख्या में लोग आते हैं। यहां पर प्रसाद चढ़ाते हैं। माता की पूजा करते हैं।
इसी मंदिर के पास में स्थित कुएं के पास हर शारदीय नवरात्र में यहां पर हर साल मां दुर्गा की एक भव्य प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। इस दौरान यहां उत्सव का माहौल रहता है।
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उतरौला कस्बे के बीचों बीच मुख्य मार्ग पर ही मां ज्वाला देवी का एक भव्य मंदिर स्थित है। यहां पर लोगों की मान्यता है कि यह मंदिर भी शक्ति केंद्रों में से एक है।
यहां हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र के दिनों में आस्था का संगम उमड़ता है। उतरौला का प्राचीनतम मां ज्वाला महारानी मंदिर, यह मंदिर यहां के ही नहीं बल्कि पूरे मंडल के वासियों के आस्था एवं विश्वास का केंद्र है।
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ये है इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
अगर क्षेत्र के बुजुर्गों की मानें तो प्राचीन काल में इस मंदिर का स्वरूप बहुत छोटा था। लेकिन कस्बे के मशहूर सर्राफा व्यापारी लक्ष्मी कान्य कुन्ज की नानी संपता देवी ने एक रात स्वप्न में आदि शक्ति मां ने मंदिर को बनवाने का आदेश दिया। उन्होंने उसके दूसरे दिन से मां ज्वाला के इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया।
कई दशकों बीत जाने के बाद मां ज्वाला देवी कमेटी का गठन किया गया। कमेटी ने उतरौला वासियों के सहयोग से गुजरात के उच्चकोटि कारीगरों द्वारा नक्काशीदार 51 फीट ऊंचा गुंबद तैयार कर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। मंदिर में षठकोणीय चबूतरा स्थापित है, जिस पर चांदी का छत्र मंडप सजा है।
पूर्वी दिशा में मां आदि शक्ति दुर्गा की प्रतिमा के अलावा कार्तिकेय, मां काली की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा मंदिर में ही मां ज्वाला का प्राचीन स्वरूप भी है। जिसपर चांदी का छत्र जड़ा हुआ है। द्वारा पर दो शेर माता की रखवाली करते हैं।
क्या कहते है मंदिर के पुजारी
जय मां ज्वाला महारानी मंदिर सेवा समिति के प्रबंधक बताते हैं कि यह मंदिर काफी पुराना है और ऐतिहासिक भी है। इस मंदिर का सीधा जुड़ाव कुएं से है। मान्यता के अनुसार इसी कुएं के पास पहले लोगों ने माता का एक छोटा सा मंदिर स्थापित किया और जब माता जी लोगों की मनोकामनाएं पूरी करने लगीं तो लोगों ने यहां पर एक छोटा सा मंदिर स्थापित कर दिया।
समय के साथ धीरे-धीरे इस मंदिर का स्वरूप बदलता चला गया। इस मंदिर का निर्माण पहली बार ननकू राम वैद्यनाथ ने साल 1905 के आसपास करवाया था। फिर नगरवासियों के सहयोग से साल 1972 के आसपास इस मंदिर को दोबारा नए रूप में नगरवासियों के सहयोग से ही सजाया गया। वह बताते हैं कि अभी 2016 में एक बार इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर के महंत कृष्ण चंद्र शास्त्री बताते हैं कि यहां दोनों नवरात्रों में विशेष आयोजन किया जाता है। माता के दर्शन के लिए भारी भीड़ होती है। यहां पर दोनों समय माता रानी की मंगला आरती की जाती है।
इसके बाद यहां हर सोमवार और शुक्रवार भक्त आकर कड़ाह प्रसाद करते हैं। इन आयोजनों में पूरे जिले से लोग आते हैं। मेले जैसा माहौल होता है। मंदिर से सभी की आस्था जुड़ी हुई है। इस वजह से इसकी मान्यता दिन ब दिन बढ़ रही है।
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