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अमृतानंदमई ‘अम्मा’: अध्यात्म और पर्यावरण में फंसा मठ

raghvendra
Published on: 7 Feb 2020 2:26 PM IST
अमृतानंदमई ‘अम्मा’: अध्यात्म और पर्यावरण में फंसा मठ
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कोल्लम: केरल के कोल्लम और अलपलझा जिलों के तटीय इलाके पर्यावरण की दृष्टि से बहुत सेंसिटव हैं। इन दोनों जिलों की सीमा पर स्थित है ‘अमृतापुरी’ यानी माता अमृतानंदमई ‘अम्मा’ का स्प्रीचुअल मुख्यालय।

कोल्लम जिले में स्थित अमृतापुरी भारत के व्यस्तम तीर्थस्थानों में शुमार है। मात्र चालीस दशक पहले यानी सन अस्सी के आसपास यहां मछुआरों का छोटा सा गांव हुआ करता था जिसका नाम था ‘परयाकाडवू’। जब अमृतानंदमई एक ग्लोबल शख्यिसत हो गईं और उनके अनुयायियों की संख्या बेहिसाब बढऩे लगी तो इस गांव का ही नाग अमृतापुरी हो गया। अलपुझा जिले से एक नहर पार कर अमृतापुरी पहुंचा जा सकता है और इस नहर पर बने १०० मीटर लंबे व ५.८ मीटर चौड़े पुल का नाम है ‘अमृता सेतु।’ ये पुल २००६ में बना था। अमृतापुरी में आज माता अमृतानंदमई मठ या ‘इम्ब्रेसिंग द वल्र्ड एनजीओ’ का मुख्यालय है । इस एनजीओ को संयुक्त राष्ट्र ने विशेष सलाहकारी दर्जा दे रखा है। यहीं पर माता अमृतानंदमई का ३० हजार वर्ग फुट में बना दर्शन हॉल है। इस गांव में ढेरों मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट्स, ऑफिस कांप्लेक्स, स्कूल, कालेज, मंदिर और हॉस्टल हैं। पुल के दूसरी तरफ है वल्लीकक्कवू गांव जहां पर मठ द्वारा संचालित प्राइवेट यूनीवर्सिटी, अस्पताल और कमर्शियल प्रतिष्ठन हैं।

गले लगाने वाली मां

६६ वर्षीय अमृतानंदमई ‘गले लगाने वाली मां’ हैं जो अब तक साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को गले लगा चुकी हैं। उनके अनुयायियों में बड़े-बड़े लोग शामिल हैं। अमृतानंदमई के आश्रम में अनुयायी उनके प्रशंसा के गीत गाते हैं। इन गीतों में बताया जाता है कि किस तरह एक सामान्य से मछुआरे परिवार की लडक़ी चमत्कार करने लगी। उसने किस तरह पानी को दूध बना दिया और कुष्ठ रोगी के घावों को चाट कर उसे चंगा कर दिया।

विवादों के घेरे

अमृतानंदमई के मठ पर उंगलियां भी खूब उठी हैं। मठ पर बेलगाम अवैध निर्माण के आरोप हैं। अलप्पड ग्राम पंचायत के अधिकारी बताते हैं कि मठ ने अनेकों बार कोस्टल रेगुलेशन जोन (सीआरजेड) के नियमों का उल्लंघन किया है। इन नियमों के अनुसार समुद्र के ज्वार की सीमा से ५०० मीटर की दूरी तक के क्षेत्र सीआरजेड हैं। इस क्षेत्र में किसी प्रकार की गतिविधि वर्जित है। निर्माण कार्य तो एकदम नहीं किये जा सकते। इसका उद्देश्य इन क्षेत्रों में पर्यावरण और पारिस्थतिकी को बचाना है। कहने को ये मठ अपने आप को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बताता है और अपने अनुयायियों से कहता है कि वे प्राकृतिक संसाधनों का बहुत सोच समझ कर इस्तेमाल किया करें।

हफिंगटन पोस्ट की एक खबर के अनुसार, अलप्पड़ ग्राम पंचायत, जिसके तहत अमृतापुरी आता है, ने सीआरजेड के उल्लंघन के ५०८ मामले दर्ज कर रखे हैं। इनमें बड़े पैमाने पर निर्माण के ८३ मामले हैं और ये सब अवैध इमारतें मठ की हैं। ‘हफ पोस्ट इंडिया’ के अनुसार इस ग्राम पंचायत के वार्ड सख्या ७ में सबसे ज्यादा अवैध निर्माण हैं। इनमें ‘माता भवन’ शामिल है जिसमें अमृतानंदमई निवास करती हैं। अलप्पड पंचायत अरब महासागर और नहर के बेच १६ किलोमीटर लंबा जमीन का पतला सा टुकड़ा है जिसके चौड़ाई अधिकतम ५०० मीटर तथा न्यूनतम ३३ मीटर है। ये पूरा क्षेत्र सीआरजेड नियमों के अंतर्गत आता है।

अमृतानंदमई का साम्राज्य कोल्लम के कई इलाकों तक फैला हुआ है। करुनगापल्ली तालुक बोर्ड के एक सर्वे में बताया गया है कि मठ के कब्जे में ४०२ एकड़ सरप्लस जमीन है। इसमें से २०४.५ एकड़ जमीन अलप्पड़ पंचायत में है। केरल भूमि सुधार अधिनियम के अनुसार कोई व्यक्ति या संगठन अधिकतम १५ एकड़ जमीन ही रख सकता है। इस सीमा से ज्यादा जमीन सरप्लस मानी जाएगी और उसे राज्य भूमि बैंक में शामिल कर लिया जाएगा। मई २०१७ में मठ को केरल पंचायत राय अधिनियम के तहत सीआरजेड नियमों के उल्लंघन पर ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी किया गया था। इस नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया गया।

लोकल लोग रह रहे झोपडिय़ों में

एक ओर मठ की अट्टलिकाएं हैं तो दूसरी ओर स्थानीय मछुआरे झोपडिय़ों में जीवन बिता रहे हैं। सीअरजेड के नियम इन लोगों को पक्के निर्माण की अनुमति नहीं देते। इस दोतरफा व्यवहार से स्थानीय लोगों में खासा रोष है। मठ की बिल्डिंगों के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर बालू खनन के कारण ये हालत हो गए हैं कि बड़ी संख्या में पारंपरिक मछुआरों को नए इलाकों में पलायन करना पड़ा है। एक अनुमान है कि अलप्पड़ में २० सालों में २० हजार एकड़ जमीन समुद्र में समा चुकी है। जमीन का क्षरण २००४ की सुनामी के साथ शुरू हुआ। सुनामी ने अमृतानंदमई की लोकप्रियता बढ़ाने में बहुत मदद की। अलप्पड़ में सुनामी से व्यापक तबाही हुअी थी। ऐसे में अमृतानंदमई मठ ने बचाव और राहत कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। भारत के सभी सुनामी प्रभावित इलाकों में राहत कार्यों के लिए १०० करोड़ रुपए की मदद तक दी। इसी दौरान ‘अमृता सेतु’ का निर्माण किया गया। उस समय कहा गया था कि पुल बन जाने से अलप्पड़ के लोगों को किसी आपातस्थिति में मदद मिलेगी। ३० मिनट में १५ हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा सकेगा। कहने को तो ये पुल आपात स्थिति के लिए है लेकिन असलियत में ये मठ जाने का रास्ता है जिस पर मठ वालों की अनुमति के बगैर कोई नहीं जा सकता।

सुप्रीमकोर्ट पर निगाहें

सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर २०१९ में कोच्चि सिटी के पास मराडू में सीआरजेड नियमों के उल्लंघन पर सैकड़ों लक्जरी फ्लैटों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। जनवरी में दो दिन तक ध्वस्तीकरण का काम पूरा भी कर लिया गया। कोर्ट ने जनवरी में एक अन्य आदेश में अलपुझा में वेम्बानद झील के किनारे बने एक रिसार्ट को ध्वस्त करने को कहा है। अब अलप्पड़ पंचायत और मछुआरों को उम्मीद लगी है कि सुप्रीमकोर्ट मठ की बिल्डिंगों के बारे में भी कोई आदेश देगा। दरअसलकेरल के चीफ सेक्रेट्री ने कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश कर रखी है जिसमें सीआरजेड नियमों के तहत ७६ इमारतों को ध्वस्त करने की अनुशंसा की गई है।

किताब में अनेकों आरोप

एक आस्ट्रेलियायी महिला ने २०१४ में अमृतानंदमई मठ के बारे में एक किताब खिी थी जिसमें सेक्स से लेकर हिंसा तक के अनेकों वाकये गिनाए गए थे। गेल ट्रेडवेल नामक इस महिला का कहना है कि उसने मठ में २० साल बिताए हैं और तरह-तरह के अनुभव किए हैं। गेल का कहना है कि वह अमृतानंदमई के शुरुआती दिनों में उनके साथ रही थी और उसने आश्रम-मठ की जड़ें जमने को करीब से देखा है। वैसे, इस पुस्तक में किसी बात का कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है। आश्चर्य की बात ये है कि इस पुस्तक के बारे में कोई चर्चा तक नहीं हुई, यहां तक कि मठ के विरोधियों तक ने इस पुस्तक के बारे में चुप्पी साधे रखी।

२०१३ में न्यूयार्क टाइम्स के एक पत्रकार ने अमृतानंदमई के आश्रम का दौरा किया था और उसकी भव्यता का वर्णन किया था। इसकी रिपोर्ट में बताया गया था कि आश्रम हर साल विश्व भर से दो करोड़ डॉलर से से ज्यादा रकम प्राप्त करता है। रकम के स्रोत गोपनीय हैं। अमेरिका में एम.ए. सेंटर नाम से इनका संगठन बतौर चर्च रजिस्टर्ड है। इसलिए उसे वहां भी अपने धन का कोई हिसाब किताब नहीं देना होता है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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