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Kachchatheevu island: कच्चातिवु द्वीप पर गरमाई सियासत, क्या है इसका इतिहास जिसपर बिफर पड़ी भाजपा

Kachchatheevu island: कच्चातिवु द्वीप का मामला उठाने पर सियासत गरमा गई है

Anshuman Tiwari
Published on: 27 May 2022 1:04 PM IST
Kachchatheevu island issues
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कच्चातिवु द्वीप पर गरमाई सियासत (Social media)

Kachchatheevu island: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरुवार को चेन्नई दौरे के समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की ओर से कच्चातिवु द्वीप का मामला उठाने पर सियासत गरमा गई है। भाजपा ने इस मुद्दे पर स्टालिन को तीखा जवाब दिया है। भाजपा ने स्टालिन को इस द्वीप का इतिहास याद दिलाते हुए सवाल किया कि आखिर कांग्रेस राज में कभी द्रमुक और स्टालिन ने यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया।

ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर इस द्वीप का क्या इतिहास है जिसे लेकर भाजपा ने इतनी तीखी आपत्ति जताई है। दरअसल भारत के दक्षिणी छोर और श्रीलंका के बीच जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है जिसे कच्चातिवु द्वीप के नाम से जाना जाता है। फिलहाल यह द्वीप श्रीलंका के हाथों में है और तमिलनाडु के मछुआरों को कई बार समुद्र में श्रीलंका की ओर से गिरफ्तार किए जाने की खबरें आती रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1974 में यह द्वीप श्रीलंका को गिफ्ट में दे दिया था और यही कारण है कि स्टालिन के मांग उठाने पर भाजपा बिफर पड़ी है।

द्वीप को लेकर क्या है विवाद

सबसे पहले कच्चातिवु द्वीप का इतिहास जानना जरूरी है। कहा जाता है कि 14 वी शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट से यह द्वीप बना था। 285 एकड़ क्षेत्रफल वाले इस द्वीप का इस्तेमाल ब्रिटिश शासन काल के दौरान तमिलनाडु के मछुआरे और श्रीलंका के तमिल मछली पकड़ने के लिए किया करते थे। पहले यह द्वीप रामनाथपुरम के राजा के अधीन हुआ करता था और बाद में यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना।

1921 में भारत और श्रीलंका दोनों देशों की ओर से मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप पर अपने-अपने दावे किए गए। दोनों देशों के बीच जल विवाद लंबे समय तक अनसुलझा रहा। 1947 में भारत के आजाद होने के बाद भी भारत की ओर से इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई मगर कोई नतीजा नहीं निकल सका।

इंदिरा गांधी ने दे दिया था श्रीलंका को गिफ्ट

वैसे विवाद होने के बावजूद इस द्वीप का इस्तेमाल भारत और श्रीलंका दोनों देशों के मछुआरे करते रहे। दोनों देश के मछुआरे एक-दूसरे के जल क्षेत्र में जाकर मछलियां पकड़ने के काम में जुटे रहे। लेकिन बाद में धीरे-धीरे द्वीप को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद काफी ज्यादा बढ़ गया।

1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस समझौते के जरिए यह द्वीप गिफ्ट में श्रीलंका को दे दिया गया था। उसके बाद से श्रीलंका की ओर से द्वीप के आसपास से मछली पकड़ने वाले भारतीय मछुआरों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई बार भारतीय मछुआरों को श्रीलंका सरकार की ओर से गिरफ्तार भी किया जा चुका है।

तमिलनाडु में लंबे समय से इस द्वीप को श्रीलंका से वापस लेने की मांग की जाती रही है। केंद्र में यूपीए की 10 साल की सरकार के दौरान इस मुद्दे को लेकर ज्यादा दबाव नहीं बनाया गया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने एक बार फिर पीएम मोदी से इस द्वीप को श्रीलंका से वापस लेने की मांग की है ताकि तमिलनाडु के मछुआरों को मछली पकड़ने में किसी भी प्रकार का दिक्कत का सामना न करना पड़े।

भाजपा ने स्टालिन को याद दिलाया इतिहास

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की कच्चातिवु द्वीप को वापस लेने की मांग पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। भाजपा की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख अन्नामलाई ने कहा कि मुख्यमंत्री स्टालिन ने इस द्वीप को वापस लेने की मांग तो जरूर रखी है मगर वे यह बात भूल गए कि इस द्वीप को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही श्रीलंका को गिफ्ट में दे दिया था।

उन्होंने कहा कि द्रमुक राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन करती है मगर यूपीए के शासनकाल के दौरान द्रमुक ने कभी इस द्वीप को वापस लेने के लिए दबाव नहीं बनाया। इस द्वीप को श्रीलंका को गिफ्ट में देने वाली कांग्रेस पार्टी के साथ ही द्रमुक ने गठबंधन कर रखा है और अब प्रधानमंत्री मोदी से वे इस द्वीप को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

मर्यादित नहीं था मुख्यमंत्री का व्यवहार

उन्होंने गुरुवार को चेन्नई में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री स्टालिन के व्यवहार की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि यह भाजपा का कार्यक्रम नहीं था और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान मुख्यमंत्री का व्यवहार मर्यादित नहीं था। उन्होंने मुख्यमंत्री स्टालिन की ओर से उठाए गए जीएसटी के मुद्दे को भी पूरी तरह बेदम बताया।

भाजपा नेता ने कहा कि जीएसटी काउंसिल की बैठक में तमिलनाडु ने जो विकल्प चुना था, उसके मुताबिक जुलाई 2022 के बाद तमिलनाडु को बकाया धनराशि मिलनी चाहिए। ऐसे में मुख्य मुख्यमंत्री की ओर से जीएसटी को फालतू का मुद्दा बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीएसटी कलेक्शन बढ़ने के बाद तमिलनाडु को भी फायदा हो रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर राजनीति करना उचित नहीं है।



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Ragini Sinha

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