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कहानी : एक रात खुद के साथ, बिना नेट के कैसे रात बिताऊंगी?

Newstrack
Published on: 4 Nov 2017 7:53 AM GMT
कहानी : एक रात खुद के साथ, बिना नेट के कैसे रात बिताऊंगी?
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Veena singh

रात का एक बजा था। रोमा रोज की तरह मोबाइल पर आभासी दुनिया के मित्रों के साथ चैट करने में मशगूल थी। घर में भी कुछ सदस्य हैं, इसका तो उसे जरा भी आभास नहीं था। अचानक ओह! नो नेट ही खत्म हो गया। उफ रात को ही नेट खत्म होना था अब क्या करूं ? बात भी अधूरी रह गई। पूरा घर तो सो रहा है। मैं बिना नेट के कैसे रात बिताऊंगी? रोमा बैचैन हो उठी। अभी गांव से शहर आए रोमा को छह महीने ही हुए थे पर वह पूरी तरह शहर के रंग में रंग गई थी। शहर की तडक़- भडक़ ने उसको पूरी से तरह अपनी कैद में ले लिया था।पति की अच्छी नौकरी के कारण घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। उसे गांव की कठिनाइयों और अभावों भरे जीवन से बिल्कुल अलग यह शहर का साफ सुथरा जीवन स्वर्ग जैसा सुन्दर लग रहा था। उसने ऐसे जीवन की कल्पना तक नहीं की थी जो उसे अचानक उपहार के रूप में मिल गया था। शहर की चकाचौंध में सीधी साधी रोमा गुम हो गई मानो उसके पर लग गए हों और वह आसमान में उडऩे लगी थी। दिन किटी पार्टी, शापिंग मॉल और सिनेमाघरों में बिताती और रात मोबाइल पर गपशप और तरह- तरह के वीडियो देखने में कब बीत जाता, वह खुद भी नहीं जान पाती मगर आज की रात तो उससे काटे नहीं कट रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।मन बहलाने के लिए अलमारी खोलकर कुछ यूं ही खोजने लगी तो अपनी ही पुरानी फाइल हाथ लग गई। फाइल पलटते ही वह अतीत में खोने लगी। कितनी सुन्दर पेन्टिग, कितने भावपूर्ण चित्र बनाती थी वह कभी। हर काम में अव्बल रहती थी वह। इन्हीं खूबियों को देखकर ही तो पति ने मां की पसन्द का विरोध करके मुझे पसन्द किया था। पर आज यह सब खूबियां तो मुझसे दूर ही हो गयीं। कुछ अधूरे चित्र आज भी पड़े थे। अब उसका उद्देश्य अधूरे काम पूरे करना ही था। सो वह तन्मयता के साथ जुट गई। चित्र पूरे होते ही वह घर को खंगालने लगी तो पाया अधूरा कढ़ाई किया हुआ मेजपोश, बाबूजी का आधा बुना मफलर, मां जी का अधूरा स्वेटर।मां ने कितनी बार टोका कि दो दिन के लिए यह मोबाइल रख दे और मेरा स्वेटर पूरा कर दे पर मैं अनसुना कर गई। बच्चों और पति के कपड़ों को उलटा-पलटा तो पाया कि वह सही ही मुझ पर झल्लाते थे। किसी की चैन खराब थी तो किसी सिलाई निकली हुई थी, कई शर्टों के बटन टूटे हुए थे और कुछ कपड़े गंदे ही पड़े थे। बच्चों का स्कूल बैग व पेंसिल बॉक्स अस्त-व्यस्त और होमवर्क भी अधूरा था। वह आत्मग्लानि से भर गई कि शहर की चकाचौंध में वह अपनों से और अपनी जिम्मेदारियों से कितना दूर हो गई थी।रात भर वह अपना उलझा पड़ा घर सही करती रही,अधूरे पड़े कामों को पूरा करती रही। सुबह जब घर के लोग जागे तो दंग रह गये। पूरा घर सजा संवरा था। एक-एक सामान अपनी जगह पर था। घर आज घर जैसा लग रहा था। सासू मां और बाबूजी अपना स्वेटर व मफलर पूरा देख फूले नहीं समाए। बच्चे अपना पूरा सामान और मनपसंद लंच बॉक्स लेकर खुशी-खुशी स्कूल चले गये। पति ने प्यार से गले लगाकर पूछा-कैसे किया एक रात में इतना सबकुछ? रोमा ने हंसकर कहा-कल रात मैं मोबाइल के साथ नहीं खुद के साथ थी। अब हमेशा आप सबके साथ रहूंगी।

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