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कभी बड़े शहरों में अकेले घूमने में लगता था डर, आज है तलवारबाजी की महारथी

Aditya Mishra
Published on: 22 July 2018 8:24 AM GMT
कभी बड़े शहरों में अकेले घूमने में लगता था डर, आज है तलवारबाजी की महारथी
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लखनऊ: जब इरादे मजबूत होते हैं, तो सपनों को पूरा करना मुश्किल नहीं लगता। यह सिर्फ कहने-सुनने की बातें नहीं हैं, बल्कि सच्चाई है। युवा खिलाड़ी भवानी देवी एक ऐसी ही महिला हैं। वो न सिर्फ अपने आप में मिसाल बन चुकी हैं बल्कि लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं। फेंसिंग (तलवारबाजी) के खेल में वह इस बात का प्रतीक हैं कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना महिलाओं के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्हें बड़े शहरों में अकेले घूमने से डर लगता था।

newstrack.com आज आपको भवानी देवी की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।

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अभावों में बीता बचपन

चेन्नई के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी भवानी देवी के पिता पुजारी और मां हाउस वाइफ है। भवानी ने 2003 में फेंसिंग में अपना करियर बनाना शुरू किया।

स्कूली शिक्षा के दौरान ही फेंसिंग (तलवारबाजी) के प्रति उनका रुझान बढ़ने लगा था। दसवीं पास करने के बाद उन्होंने भारतीय फेंसिंग कोच सागर लागू से प्रशिक्षण लेना शुरू किया।

यहां यह जानना दिलचस्प है कि फेंसिंग भारत में कोई बहुत प्रचलित खेल नहीं है। मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी भवानी के पास न तो कभी उचित संसाधन रहे और न ही इतना पैसा रहा कि वह ढंग की कोचिंग ले सकें।

इस खेल में आगे बढ़ना लगभग असंभव सा था। भवानी हमेशा से ही पढ़ाई में औसत थी। अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी भवानी के घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता था। लेकिन उनके माता-पिता हमेशा से चाहते थे कि उनके बच्चे अपनी जिंदगी में नाम कमाएं।

ये सफर नहीं था आसान

14 साल की उम्र में उन्हें पहली बार तुर्की में हो रहे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का मौका मिला, लेकिन 3 मिनट लेट हो जाने की वजह से उन्हें ब्लैक कार्ड दे दिया गया।

सन 2008 में कोरिया में हुई सीनियर एशियन चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए भवानी के पास पैसे नहीं थे, उस वक्त मुख्यमंत्री जयललिता ने खुद बुलाकर एक चेक भेंट किया।

2009 से लेकर 2015 तक भवानी ने मलेशिया, फिलिपीन्स, मंगोलिया, इटली और बेल्जियम में अलग-अलग स्तर की चैम्पियनशिप में भाग लिया और कई कांस्य और रजत पदक जीत डाले।

वह अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 12 से अधिक मेडल अपनी झोली में डाल चुकी हैं। विश्व में फेंसिंग रैकिंग में वह 57 नंबर पर आती है।

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कभी अकेले घूमने पर लगता था डर

भवानी ने अपनी विदेश यात्रा का एक बेहद रोमांचक संस्मरण याद करते हुआ बताया था कि 2010 में हमारा टूर्नामेंट मनीला में था। हम लोग एक बहुत बड़े होटल में ठहरे थे।

मैं बहुत डरी हुई थी, क्योंकि मैं पहली बार देश से बाहर कहीं आयी थी और ऐसे माहौल की आदी नहीं थी। मैं अपने कमरे में अकेली थी और मुझे बहुत तेज भूख लग रही थी और मैं सिर्फ इस डर से अपने कमरे से बाहर नहीं निकली कि कहीं मैं खो न जाऊं।

थोड़ी देर बाद जब मेरे बाकी साथी मुझसे आकर मिले, तो मैं उन्हें देख कर खुशी के मारे रो पड़ी। मैंने हमेशा से ही दक्षिण भारतीय खाना खाया था।

जब पहली बार मेरे सामने पास्ता आया तब मैं समझ ही नहीं पायी थी कि इसे खाते कैसे हैं। लेकिन वो तब की बात थी। अब तो मैं दुनिया के हर कोने में जा सकती हूं और कुछ भी खा सकती हूं।

2015 में टॉप 15 में शामिल

भवानी की सफलता की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। 2015 में उन्हें 15 टॉप एथलीट्स में शामिल किया गया। उस समय उन्हें राहुल द्रविड़ एथलीट मेंटोरशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया था।

इसके बाद अपनी मेहनत के ही दम पर ही हाल ही में देश के नाम पहला गोल्ड मेडल जीता। भवानी ने मलेशिया, फिलिपीन्स, मंगोलिया, इटली और बेल्जियम में अलग-अलग स्तर की चैम्पियनशिप में भाग लिया और कई कांस्य और रजत पदक जीत डाले।

महंगा है ये खेल

यहां यह जानना जरूरी है कि फेंसिंग एक बहुत महंगा खेल है। इसमें इस्तेमाल होने वाली खेल सामग्री और कोचिंग का खर्च सालाना लाखों रुपये है, जिसका वहन करना किसी सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है।

हालांकि फेंसिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया खिलाड़ियों के टूर्नामेंट के खर्चे उठाने की कोशिश करती है, लेकिन वह नाकाफी होता है। पर इस तरह की बातों से भवानी के हौसले कभी कम नहीं हुए।

Aditya Mishra

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