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फ़ीस के लिए नहीं थे पैसे, पिता लगाते थे रेहड़ी, ऐसे बन गये करोड़पति

Aditya Mishra
Published on: 19 July 2018 8:20 AM GMT
फ़ीस के लिए नहीं थे पैसे, पिता लगाते थे रेहड़ी, ऐसे बन गये करोड़पति
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पंजाब: कहते है पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है मंजिल उन्हीं को मिलती है। जिनके सपनों में जान होती है। ये कहावत गौरव कुमार पर बिल्कुल फिट बैठती है। उन्होंने छोटी उम्र में पिता के साथ रेहड़ी पर हाथ बंटाते-बंटाते बड़ा आदमी बनने के सपना देखा और उसे अपनी मेहनत के बल पूरा भी कर दिखाया। आज गौरव की पहचान इंटीरियर वॉलपेपर के बड़े सप्लायर्स के रूप में होती है। उनकी कंपनी का सालाना टर्न ओवर करोड़ों रुपये में है।

newstrack.com आज आपको गौरव कुमार की सक्सेस स्टोरी के बारे में बता रहा है।

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पिता चाहते थे बेटा बने बड़ा आदमी

गौरव कुमार का जन्म पंजाब के करनाल जिले के न्यू हाउसिंग कालोनी में हुआ था। पिता अशोक कुमार फास्ट फूड की रेहड़ी लगाते थे। उनकी कमाई से ही परिवार का खर्च चलता था।

गौरव बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे। स्कूल से वापस लौटने के बाद वे अपने पिता के पास जाकर काम में उनका हाथ बंटाया करते थे।

अशोक अपने बेटे को बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे। वे नहीं चाहते था कि उनका बेटा उनकी तरह बने। इसलिए वे गौरव को रेहड़ी पर आने से मना करते थे।

एमबीए की फ़ीस जमा करने के नहीं थे पैसे

गौरव के पिता की आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं थी कि वे अपने साथ वर्कर रख सके। इसलिए वे अकेले ही काम करते थे। गौरव से अपने पिता की परेशानी छिपी हुई नहीं थी।

वह अपने पिता को रेहड़ी पर अकेले परेशान होता नहीं देख सकते थे। इसलिए वे पिता के मना करने के बाद भी रोज रेहड़ी पर चले जाते थे। उसके बाद पिता के साथ ही घर लौटते थे।

सरकारी स्कूल से 12वीं और खालसा कॉलेज से बीटीएम के बाद मुंबई से एमबीए करने की जिद की तो पिता ने मना मना नहीं किया। वे भी चाहते थे कि बेटा एमबीए करके बड़ा आदमी बने।

लेकिन उस टाइम घर में एमबीए की फ़ीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने लोगों से कर्ज लेकर बेटे की फ़ीस जमा की। बाद में उसे धीरे –धीरे करके वापस भी कर दिया।

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50 हजार रूपये से शुरू किया स्टार्ट -अप

आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण गौरव ने कभी छह हजार की नौकरी से कॅरियर शुरू किया था। कुछ सालों में 25 हजार तनख्वाह हो गई, लेकिन शुरुआत से ही सपना था कि बिजनेस करे। पैसे कम थे इसलिए मुश्किल से 50 हजार इकट्ठा किए और 2016 में छोटे स्तर पर इंटीरियर वॉलपेपर का स्टार्ट अप शुरू किया। कुछ ही दिनों में उसने अपनी सूझबूझ से दिल्ली जैसे बड़े शहर में खुद को स्थापित कर लिया। गौरव ने

कम्पनी का सलाना टर्न ओवर डेढ़ करोड़

गौरव के आज दिल्ली में दो ऑफिस और एक फैक्टरी के साथ ही चंडीगढ़ में भी ऑफिस है। दो साल पहले शुरू की कंपनी का आज करीब डेढ़ करोड़ का सालाना टर्न ओवर है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान के साथ ही अब दक्षिण भारत के शहरों में भी सामान की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने अपनी कंपनी में 12 युवाओं को भी रोजगार दे रखा है।

पिता के लिए शो रूम खोलने का है सपना

गौरव अपने पिता अशोक कुमार के लिए इंटीरियर वॉलपेपर का शोरूम खोलना चाहते है। इसके लिए प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। वह चाहते है कि पिता अब आराम करें।

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