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नोटबंदी: SC ने केंद्र सरकार से पूछा- गांव वालों की दिक्कतें दूर करने के लिए क्या किया?
नई दिल्ली: नोटबंदी के बाद लोगों को हो रही परेशानियों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि 'आपने गांववालों की दिक्कतें दूर करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।' गौरतलब है कि गांव के लोग ज्यादातर को-ऑपरेटिव बैंकों पर निर्भर हैं। कोर्ट ने कहा कि 'सरकार अगर इन बैंकों के लिए कुछ कर सकती है तो उस पर विचार करे।' उल्लेखनीय है कि को-ऑपरेटिव बैंकों को नोटबंदी अभियान शामिल नहीं किया गया है।
अटॉर्नी जनरल ने दी दलील
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कोर्ट में पेश हुए। अटॉर्नी जनरल ने कहा, 'ऐसा नहीं कि हम हालात से बेखबर हैं। लेकिन को-ऑपरेटिव बैंकों में बेसिक संरचना नहीं है। इसकी वजह से दिक्कत है।' रोहतगी ने कहा, को-ऑपरेटिव बैंकों काे जानबूझकर नोट बदलने के अभियान से दूर रखा गया है। क्योंकि नकली नोटों की पहचान करने में उनकी एक्सपर्टाइज नहीं है।
गांवों की अर्थव्यवस्था हुई नाकाम
को-ऑपरेटिव बैंकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील पी.चिदंबरम ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाए। कहा कि 'इस अभियान में को-ऑपरेटिव बैंकों को शामिल नहीं करने से गांवों की अर्थव्यवस्था नाकाम हो गई है।'
आम आदमी की दिक्कतों पर पहले होगी सुनवाई
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह नोटबंदी से आम लोगों को हो रही दिक्कतों से संबंधित मामलों की सुनवाई पहले करेगी।
एक साथ बैठकर सूची बनाएं
नोटबंद पर आईं याचिका पर मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई की। इस दौरान बेंच ने कहा कि नोटबंदी पर दायर अलग-अलग याचिकाओं के सभी पक्ष एक साथ बैठकर सूची बनाएं। तय कर लें कि कौन से केस हाईकोर्ट में भेजे जाने हैं और किस पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट करे।
सुनवाई सोमवार तक टली
एक अन्य याचिका के वकील कपिल सिब्बल ने सलाह दी कि वे सभी एक साथ बैठकर सोमवार तक केसों की कैटेगरी तय कर लेंगे। इसके बाद कोर्ट ने नोटबंदी से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार तक के लिए टाल दी।
पिछली सुनवाई में भी कोर्ट ने दी थी नसीहत
गौरतलब है कि इससे पहले 19 नवंबर को ही नोटबंदी के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए कहा था, कि बैंकों और पोस्ट ऑफिसों के बाहर लंबी-लंबी कतारें हैं। लोग हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। इससे उनकी परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। अदालतों के दरवाजे ऐसे हालात में बंद नहीं किए जा सकते। दंगे भड़क सकते हैं।'