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सुप्रीम कोर्ट : अयोध्या मामले में अब नई याचिका स्वीकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक पर या उससे जुडी किसी भी याचिका को अब स्वीकार नहीं किया जाएगा । अदानत ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हस्तक्षेप के लिए सभी अंतरिम अर्जियां आज अस्वीकार कर दी। न्यायालय ने मालिकाना हक विवाद के इस मामले में हस्तक्षेप के लिए बीजेपी नेता सुब्रहमण्यम स्वामी की अ
नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक पर या उससे जुडी किसी भी याचिका को अब स्वीकार नहीं किया जाएगा । अदानत ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हस्तक्षेप के लिए सभी अंतरिम अर्जियां आज अस्वीकार कर दी। न्यायालय ने मालिकाना हक विवाद के इस मामले में हस्तक्षेप के लिए बीजेपी नेता सुब्रहमण्यम स्वामी की अर्जी भी अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा है कि वह अलग याचिकाओं की सुनवाई नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाइकोर्ट के पक्षकारों की याचिका पर सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर में पूजा करने के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए स्वामी की निष्पादित याचिका बहाल करने का आदेश दिया। न्यायालय ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सिर्फ मूल पक्षकारों को ही सुनने और असंबद्ध व्यक्तियों के इसमें हस्तक्षेप करने के अनुरोध को अस्वीकार करने का आग्रह स्वीकार किया है।
हालांकि इस विवाद में एक तीसरा पक्ष भी खड़ा हो गया है। बौद्ध समुदाय के कुछ लोगों ने दावा किया है कि यह विवादित जमीन बौद्धों की है और यह पहले एक बौद्ध स्थल था।
अयोध्या में रहने वाले विनीत कुमार मौर्य ने सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में याचिका दायर की है। उन्होंने विवादित स्थल पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा चार बार की जाने वाली खुदाई के आधार पर यह दावा किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर ऐसी अंतिम खुदाई साल 2002-03 में हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका पिछले हफ्ते ही दायर की गई है। इसे संविधान के अनुच्छेद 32 (अनुच्छेद 25, 26 और 29 के साथ) के तहत एक दीवानी मामले के रूप में दर्ज किया गया है। कहा गया है कि यह याचिका ‘बौद्ध समुदाय के उन सदस्यों की तरफ से दायर की गई है जो भगवान बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर जीवन जी रहे हैं।
याचिका में दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था।
मौर्य ने अपनी याचिका में कहा है, ‘एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं। मौर्य ने दावा किया है कि जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले ।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई है कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर और सारनाथ की तरह ही एक बौद्ध विहार घोषित किया जाना चाहिए ।
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