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सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी: अपने खर्च और जरुरतें बढ़-चढ़कर बताती हैं पत्नियां

जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस सुभाष रेड्डी की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि मुआवजा भत्ता बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए। पत्नियों पर टिप्पणी करने के साथ ही अदालत ने पतियों पर भी टिप्पणी की है।

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Published on: 9 Nov 2020 10:35 AM IST
सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी: अपने खर्च और जरुरतें बढ़-चढ़कर बताती हैं पत्नियां
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सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी: अपने खर्च और जरुरतें बढ़-चढ़कर बताती हैं पत्नियां (Photo by social media)

नई दिल्ली: गुजारे के लिए भरण-पोषण भत्ते से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि भरण-पोषण भत्ता तय करते समय अदालतों को यह जरूर देखना चाहिए कि मुआवजा न्यायोचित हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुआवजा इतना ज्यादा नहीं होना चाहिए कि पति गरीबी के संकट में फंस जाए और विवाह की सफलता उसके लिए एक सजा बन जाए। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह प्रवृत्ति देखी गई है कि पत्नियां अपने खर्च और आवश्यकताएं हमेशा बढ़-चढ़कर बताती हैं।

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पति भी छिपाकर ही बताते हैं अपनी आय

जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस सुभाष रेड्डी की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि मुआवजा भत्ता बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए।

पत्नियों पर टिप्पणी करने के साथ ही अदालत ने पतियों पर भी टिप्पणी की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसा देखने में आया है कि पति भी अपनी आय छिपाकर ही बताता है ताकि उसे भी कम से कम पैसा देना पड़े।

पति और पत्नी दोनों से लिया जाए शपथपत्र

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सबसे बेहतर उपाय तो यह होगा कि पति और पत्नी दोनों से एक-एक शपथपत्र लिया जाए।

इस शपथपत्र में दोनों की आय, संपत्तियों और देनदारियों का पूरा विवरण दर्ज होना चाहिए। यह शपथपत्र तैयार करने से कोर्ट के लिए भत्ता तय करना आसान हो जाएगा। इससे वास्तविक भत्ता तय करने में अदालतों को सहूलियत होगी।

फैमिली कोर्ट इस बात का रखें ध्यान

मामले की सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में फैमिली कोर्ट के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा कि भत्ता तय करते समय पारिवारिक अदालतें दोनों पक्षों का सामाजिक स्तर, उनके जीवन की तार्किक जरूरतें और उनके ऊपर निर्भर बच्चों की स्थिति पर भी गौर फरमाएं और इस हिसाब से ही गुजारा भत्ता तय करें।

पति की आय पर भी गौर फरमाएं

इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि भत्ता देने वाले पति की आय कितनी है और उसके ऊपर कितने परिजन निर्भर हैं। उसकी पारिवारिक जिम्मेदारियों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

अदालतों को फैसला देते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि भत्ता इतना भारी भरकम न हो कि पति उसके बोझ तले दब जाए और शादी तोड़ना उसके लिए एक सजा बन जाए।

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इस आधार पर पत्नी को नहीं कर सकते मना

सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई पत्नी नौकरी करती है तो इस आधार पर उसे भत्ता देने से वंचित नहीं किया जा सकता।

इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि क्या पत्नी उस आय से अपनी जिंदगी का गुजर कर सकती है या नहीं। यदि पत्नी की आय पर्याप्त नहीं है तो उसके नौकरी करने पर भी निश्चित रूप से उसे भत्ता दिलाया जा सकता है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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