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Maharashtra Politics: शिवसेना किसकी?: 'हक की लड़ाई' में शिंदे-उद्धव पक्ष के वकीलों की रोचक दलीलें, जानें क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में
Maharashtra Politics: उद्धव ठाकरे और शिंदे के बीच शिवसेना के हक़ की लड़ाई जारी है। आज सुप्रीम कोर्ट में उद्धव खेमे के वकील कपिल सिब्बल और शिंदे गुट की तरफ से हरीश साल्वे ने अपनी दलील पेश की।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में अहम स्थान रखने वाली पार्टी शिवसेना पर 'हक की लड़ाई' सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर है। एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के खेमे के अलग होने के बाद शिवसेना में रस्साकशी जारी है। हालांकि, इसका फैसला क़ानूनी तरीके से होगा। इसी मामले में बुधवार (03 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। 'शिवसेना विवाद' पर गुरुवार को एक बार फिर सर्वोच्च अदालत में मामले की सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे पक्ष के वकील हरीश साल्वे (Harish Salve) को कहा है कि, 'आप एक बार फिर से अपनी दलीलों का एक ड्राफ्ट तैयार करें। कल सुबह उसे अदालत के सामने पेश किया जाए।' हालांकि, आज इस मसले पर दोनों तरफ के वकीलों ने गरमा-गरम बहस की।
महाराष्ट्र से जुड़े मामलों पर SC में सुनवाई
आपको बता दें कि, महाराष्ट्र में सीएम एकनाथ शिंदे सरकार के गठन से जुड़े सभी मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सुनवाई कर रहा है। इसी क्रम में बुधवार को भी सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने पूछा कि, 'क्या सभी पक्षों ने मामले से जुड़े कानूनी सवालों का संकलन जमा करवा दिया है।' इसके जवाब में गवर्नर की तरफ से वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा, 'मैं बस अभी जमा करवा रहा हूं।'
सिब्बल- नई पार्टी बनाएं या किसी में विलय करें
मामले की सुनवाई आगे बढ़ी तो उद्धव ठाकरे खेमे के के वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने अपनी दलील पेश की। उन्होंने कह, 'अगर दो तिहाई एमएलए अलग होना चाहते हैं, तो उन्हें किसी के साथ विलय करना होगा। नहीं तो वो नई पार्टी का गठन भी कर सकते हैं। लेकिन, वो ये नहीं कह सकते कि वही मूल पार्टी हैं।'
CJI ने सिब्बल से ये पूछा
कपिल सिब्बल के इस दलील पर चीफ जस्टिस ने उनसे कहा, कि 'आप यह कह रहे हैं कि उन्हें (शिंदे गुट) को बीजेपी में विलय कर लेना चाहिए था, या कोई अलग पार्टी बनानी चाहिए थी। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि, कानूनन तो एकनाथ शिंदे गुट को यही करना चाहिए था।'
अनुसूची के पैरा- 2 का दिया हवाला
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में आगे कहा कि, '10वीं अनुसूची में 'मूल राजनीतिक दल' की परिभाषा को संदर्भित किया गया है। उन्होंने बताया कि 'मूल राजनीतिक दल' एक सदन के सदस्य के संबंध में है। सिब्बल ने बताया कि, अनुसूची के पैरा- 2 में कहा गया है, 'एक सदन के एक निर्वाचित सदस्य को उस राजनीतिक दल से संबंधित माना जाएगा। अगर, कोई हो, जिसके द्वारा उसे ऐसे सदस्य के रूप में चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया गया था।'
'इसलिए वो मूल पार्टी का दावा कर ही नहीं सकते'
उद्धव ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि, 'पार्टी महज विधायकों का समूह नहीं होता। इन लोगों को पार्टी की बैठक में भी बुलाया गया, मगर वो नहीं आए। शिंदे गट ने डिप्टी स्पीकर को चिट्ठी लिखी। असल में इन लोगों ने पार्टी छोड़ी है। इसलिए वो मूल पार्टी होने का दावा कर ही नहीं सकते। आज भी शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ही हैं।'
सिंघवी- गलती पर पर्दा डालने की कोशिश
उद्धव खेमे के दूसरे वकील अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने कहा कि, 'इन लोगों को (शिंदे गुट को) किसी पार्टी में विलय करना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ। वो जानते हैं कि वह असली पार्टी नहीं हैं। सिंघवी आगे कहते हैं, कि वो अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए चुनाव आयोग (EC) से मान्यता पाने की कोशिश कर रहे हैं।'
साल्वे का सवाल- बिना समर्थन कैसे..?
वहीं दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे (Harish Salve) ने कहा कि, 'जिस नेता को बहुमत का समर्थन न हो, वह कैसे बना रह सकता है? उन्होंने कहा, शिवसेना के भीतर ही कई बदलाव हो चुके हैं। साल्वे ने कहा, कपिल सिब्बल ने जो बातें कही हैं, वह प्रासंगिक नहीं हैं। इन विधायकों को किसने अयोग्य ठहराया। जब पार्टी में (शिवसेना) अंदरूनी बंटवारा हो चुका हो, तो दूसरे खेमे की बैठक में न जाना अयोग्यता कैसे हो जाएगा?
साल्वे ने दिया मजेदार जवाब
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'इस तरह से तो पार्टी का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। तब तो विधायक चुने जाने के बाद कोई कुछ भी करेगा। इसके जवाब में हरीश साल्वे ने कहा, 'हमारे यहां एक भ्रम है कि किसी नेता को ही पूरी पार्टी मान लिया जाता है। हम अभी भी पार्टी में ही हैं। हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। बस, हमने नेता के खिलाफ आवाज़ उठाई है।'
'क्या 1969 में कांग्रेस में ऐसा नहीं हुआ था?
शिंदे गट का पक्ष रखते हुए साल्वे ने कहा, 'किसी एमएलए ने शिवसेना नहीं छोड़ी है। बस पार्टी दो गुटों में है। उन्होंने कहा, 'क्या 1969 में कांग्रेस में ऐसा नहीं हुआ था? ऐसा कई बार हो चुका है। ये चुनाव आयोग तय करता है। इसे विधायकों की अयोग्यता से जोड़ना सही नहीं है। वैसे भी किसी ने उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया। उन्होंने अपनी दलील में याद दिलाया कि फ्लोर टेस्ट की भी नौबत नहीं आई थी।'
गौरतलब है कि, सर्वोच्च अदालत में दोनों गुटों के नेताओं की कई याचिकाएं लंबित पड़ी हैं। इन याचिकाओं में शिवसेना विधायकों की अयोग्यता तथा गवर्नर की तरफ से शिंदे गुट को आमंत्रण देने तथा विश्वास मत में शिवसेना के दो व्हिप जारी होने सहित कई मसलों को उठाया गया।