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फिल्मों में दिव्यांगजनों की खिल्ली न उड़ाएं : सुप्रीमकोर्ट, गाइडलाइन जारी की

Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में सामाजिक धारणा में ‘अपंग’ और ‘मंदबुद्धि’ जैसे शब्द ‘निम्न दर्जे’ का अर्थ रखते हैं।

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Newstrack Network
Published on: 9 July 2024 10:47 AM IST
India News
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Supreme Court (Pic: Social Media)

Court News: सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों पर व्यंग्य या अपमानजनक टिप्पणी से बचने की हिदायत दी है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और विजुअल मीडिया निर्माताओं के लिए विस्तृत दिशा निर्देश भी दिए हैं।

कोर्ट ने उठाया सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने फिल्मों में दिव्यांग व्यक्तियों के भ्रामक चित्रण पर सवाल उठाया है और कहा है कि विजुअल मीडिया और फिल्मों में ऐसे व्यक्तियों को स्टीरियोटाइप करना भेदभाव और असमानता को बढ़ावा देता है। शीर्ष अदालत ने फिल्म निर्माताओं से ऐसे व्यक्तियों के भ्रामक चित्रण से बचने और उनका मजाक नहीं उड़ाने को कहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों का अपमान करने वाली, उन्हें और हाशिए पर डालने वाली तथा उनकी सामाजिक भागीदारी में विकलांगता पैदा करने वाली बाधाओं को बढ़ाने वाली भाषा के प्रति सावधानी बरती जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विजुअल मीडिया में दिव्यांग व्यक्तियों के चित्रण की रूपरेखा बताते हुए कहा कि वे नेगेटिव आत्म-छवि में योगदान करते हैं और समाज में भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण और प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं।


क्या कहा कोर्ट ने

  • कोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड को इस तरह स्क्रीनिंग की अनुमति देने से पहले विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए।
  • फिल्म या डॉक्यूमेंट्री निर्माताओं को इनका मजाक बनाने और इन्हें अपमानजनक तरीके से पेश करने या फिर लाचार दिखाने की बजाय उनकी उपलब्धियों को दिखाना चाहिए।
  • विजुअल मीडिया के जरिये दिव्यांग लोगों के न केवल संघर्ष को सामने रखा जाना चाहिए, बल्कि उनकी सफलता व उनकी योग्यता और समाज में उनके योगदान को भी पेश किया जाना चाहिए।
  • हमें उस हास्य, जो दिव्यांगता की समझ बढ़ाता है और वो हास्य जो दिव्यांग व्यक्तियों को नीचा दिखाता है, के अंतर को समझना होगा।'
  • निर्माता भेदभावपूर्ण भाषा से बचें, सामाजिक बाधाओं को पहचानें, चिकित्सीय जानकारी सत्यापित करें, रूढ़ियों से बचें, समावेशी निर्णय निर्माण करें।
  • शब्द संस्थागत भेदभाव पैदा करते हैं और दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में सामाजिक धारणा में ‘अपंग’ और ‘मंदबुद्धि’ जैसे शब्द ‘निम्न दर्जे’ का अर्थ रखते हैं।

क्या है मामला

कोर्ट ने कहा कि हम विजुअल मीडिया पर दिव्यांगों को चित्रित करने के लिए एक रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। दरअसल, 2023 में रिलीज हुई फिल्म "आंख मिचौली" में अल्जाइमर पीड़ित एक पिता के लिए भुलक्कड़ बाप, मूक-बधिर के लिए साउंड प्रूफ सिस्टम, हकलाने वाले शख्स के लिए अटकी हुई कैसेट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसको आधार बनाकर दिव्यांग वकील निपुण मल्होत्रा ने पहले दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस फिल्म की निर्माता कंपनी सोनी पिक्चर को निर्देश देने की मांग की थी कि वह दिव्यांग लोगों द्वारा झेली जाने वाली परेशानियों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए शार्ट मूवी बनाए न कि उनका मजाक बनाने वाली फिल्में बनाए। दिल्ली हाई कोर्ट ने मल्होत्रा की याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

Sidheshwar Nath Pandey

Sidheshwar Nath Pandey

Content Writer

मेरा नाम सिद्धेश्वर नाथ पांडे है। मैंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से मीडिया स्टडीज से स्नातक की पढ़ाई की है। फ्रीलांस राइटिंग में करीब एक साल के अनुभव के साथ अभी मैं NewsTrack में हिंदी कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। पत्रकारिता के अलावा किताबें पढ़ना और घूमना मेरी हॉबी हैं।

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