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जजों के लिए चार्टर : रिस्टेटमेंट ऑफ वेल्यूज ऑफ जूडिशियल लाइफ

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 1:45 PM IST
जजों के लिए चार्टर : रिस्टेटमेंट ऑफ वेल्यूज ऑफ जूडिशियल लाइफ
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सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा 1997 को एक चार्टर स्वीकार किया गया था जिसे रिस्टेटमेंट ऑफ वेल्यूज ऑफ जूडिशियल लाइफ कहा गया। इसे न्यायाधीशों पर निगरानी के लिए एक गाइड के रूप में माना गया। यह न्याय के प्रशासन की निष्पक्षता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मजबूती और सम्मान के लिए आवश्यक माना गया।

  • न्याय केवल किया नहीं जाना चाहिए बल्कि न्याय किया गया,यह दिखना भी चाहिए।
  • न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए उच्च न्याय व्यवस्था के सदस्यों का चरण और व्यवहार उसके अनुरूप होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को व्यक्तिगत या आधिकारिक रूप से कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे इस सोच को ठेस पहुंचती हो।
  • किसी न्यायाधीश को किसी संस्था, एसोसिएशन, क्लब या आफिस का चुनाव नहीं लडऩा चाहिए। न्यायाधीश को किसी ऐसी सोसायटी या आफिस में नहीं चुना जाना चाहिए जिसका संबंध विधि से न हो।
  • किसी भी न्यायाधीश को बार के व्यक्तिगत सदस्यों या एसोसिएशन से निकट संबंधों से बचना चाहिए, खासकर उन लोगों से जो उसी कोर्ट में प्रैक्टिस करते हों।
  • एक न्यायाधीश को अपने निकटतम परिवार के सदस्यों जैसे पत्नी, पुत्र, बेटी, दामाद, बहू या निकटतम संबंधी को अनुमति नहीं देनी चाहिए कि वह बार के सदस्य के रूप में उनके सामने पेश हो या किसी भी रूप में उनके सम्मुख आने वाले प्रकरण से संबद्ध हो।
  • किसी न्यायाधीश को एक न्यायाधीश के रूप में उन्हें दिये गए परिसर या सुविधाओं के इस्तेमाल की अनुमति अपने परिवार के उस किसी व्यक्ति को नहीं देनी चाहिए जो किसी बार का सदस्य हो।
  • एक न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा बरकरार रखने के लिए दूरी बना कर रखनी चाहिए।
  • एक न्यायाधीश को किसी ऐसे मामले की सुनवाई या निर्णय नहीं करना चाहिए जिससे उनके परिवार का सदस्य या निकट संबंधी जुड़ा हुआ हो।
  • एक न्यायाधीश को किसी भी राजनीतिक या सार्वजनिक मामले पर सार्वजनिक बहस में अपने विचार नहीं व्यक्त करने चाहिए या ऐसे विषयों पर सार्वजनिक राय नहीं देनी चाहिए जो कि उनके समक्ष न्यायिक प्रक्रिया के अधीन लंबित हों।
  • एक न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि उनके फैसले ही उनकी आवाज बनें। उन्हें मीडिया को कोई साक्षात्कार नहीं देना चाहिए।
  • एक न्यायाधीश को अपने मित्रों, निकट संबंधियों या परिवार के सदस्यों के अलावा किसी से भी कोई भेंट उपहार स्वीकार न करने की अपेक्षा की जाती है।
  • एक न्यायाधीश को ऐसे किसी मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए जिसमें किसी कंपनी में उसके शेयर हों। जब तक कि उसने अपने हितों की घोषणा करके उठाए गए निर्णयाधीन मामले और उनके सुनवाई करने पर किसी ने कोई आपत्ति न उठाई हो।
  • एक जज को शेयर, स्टाक या इस तरह के अन्य मामलों में सटृेबाजी नहीं करनी चाहिए।
  • एक न्यायाधीश को स्वयं या किसी व्यक्ति के साथ मिलकर किसी कारोबार या व्यापार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं जुडऩा चाहिए।
  • एक न्यायाधीश को किसी भी प्रकार का फंड न तो मांगना चाहिए और न स्वीकार करना चाहिए। उसे किसी ऐसे अभियान से खुद को नहीं जोडऩा चाहिए।
  • एक न्यायाधीश को हमेशा इस बात के लिए सतर्क रहना चाहिए कि वह जनता की निगाह में है। उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जो कि उनके पद की गरिमा के अनुकूल न हो या जो जनता में उनके पद की

    गरिमा गिराए।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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