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SC ने दिया आदेश: हर जिले में हो फैमिली वेलफेयर कमिटी का गठन

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमों से लोगों को बचाने के लिए एक अहम दिशा निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि आईपीसी 498A से जुड़ी शिकायतों को देखने के

tiwarishalini
Published on: 28 July 2017 12:19 PM IST
SC ने दिया आदेश: हर जिले में हो फैमिली वेलफेयर कमिटी का गठन
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमों से लोगों को बचाने के लिए एक अहम दिशा निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि आईपीसी 498A से जुड़ी शिकायतों को देखने के लिए हर ज़िले में एक फैमिली वेलफेयर कमिटी का गठन किया जाए। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही मामले में आगे की कार्रवाई की जाए।

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून में धारा 498A जोड़ने का मकसद बहुत अच्छा था।

- ये सोचा गया था कि इससे महिलाओं के खिलाफ क्रूरता पर रोक लगेगी।

-खास तौर पर ऐसी क्रूरता जिसका अंजाम हत्या या आत्महत्या तक हो जाए।

- लेकिन अफ़सोस की बात है कि समाज में ऐसे मुकदमों की बाढ़ आ गई है जिनमें मामूली विवाद को दहेज उत्पीड़न का मामला बता दिया जाता है।

- ऐसे शिकायतों का हल अगर समाज के दखल से ही निकल सके तो बेहतर होगा।

इससे पहले 2014 में भी सुप्रीम कोर्ट ने 498A के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी न करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने तब कहा था कि गिरफ्तारी तभी की जाए जब ऐसा करना बेहद ज़रूरी हो। गिरफ्तारी की वजहें मजिस्ट्रेट को बताई जाएंव। तब कोर्ट ने एक ही शिकायत पर, बिना जांच किए पूरे परिवार को जेल भेज देने को भी गलत बताया था।

क्या है कोर्ट का आदेश?

- देश के हर ज़िले में फैमिली वेलफेयर कमिटी का गठन किया जाए।

- इसमें पैरा लीगल स्वयंसेवक, रिटायर्ड लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सेवारत ऑफिसर्स की पत्नियों या अन्य लोगों को रखा जा सकता है।

- कमिटी के लोगों को दहेज मामलों पर ज़रूरी कानूनी ट्रेनिंग दी जाए।

- 498 A की शिकायतों को पहले कमिटी के पास भेजा जाए। कमिटी मामले से जुड़े पक्षों से बात कर सच्चाई समझने की कोशिश करे।

- आम हालात में कमिटी की रिपोर्ट आने से पहले कोई गिरफ्तारी न हो।

- बेहद ज़रूरी स्थितियों में ही रिपोर्ट आने से पहले गिरफ्तारी हो सकती है।

- रिपोर्ट आने के बाद पुलिस के जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट उस पर विचार कर आगे की कार्रवाई करें।

- अगर पीड़िता की चोट गंभीर हो या उसकी मौत हो गई हो तो पुलिस को गिरफ्तारी या किसी भी उचित कार्रवाई के लिए आज़ाद होगी।

पुलिस और अदालतों की भूमिका पर ये अहम निर्देश

- हर राज्य 498A के मामलों की जांच के लिए जांच अधिकारी तय करे।

- ऐसा एक महीने के भीतर किया जाए। ऐसे अधिकारियों को उचित ट्रेनिंग भी दी जाए।

- ऐसे मामलों में जिन लोगों के खिलाफ शिकायत है। पुलिस उनकी गिरफ्तारी से पहले उनकी भूमिका की अलग-अलग समीक्षा करे।

- सिर्फ एक शिकायत के आधार पर सबको गिरफ्तार न किया जाए।

- जिस शहर में मुकदमा चल रहा है, उससे बाहर रहने वाले लोगों को हर तारीख पर पेशी से छूट दी जाए।

- मुकदमे के दौरान परिवार के हर सदस्य की पेशी अनिवार्य न रखी जाए।

- अगर डिस्ट्रिक्ट जज सही समझें तो एक ही वैवाहिक विवाद से जुड़े सभी मामलों को एक साथ जोड़ सकते हैं।

- इससे पूरे मामले को एक साथ देखने और हल करने में मदद मिलेगी।

- भारत से बाहर रह रहे लोगों का पासपोर्ट जब्त करने या उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने जैसी कार्रवाई एक रूटीन काम की तरह नहीं की जा सकती।

- ऐसा बेहद ज़रूरी हालात में ही किया जाए। वैवाहिक विवाद में अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है तो ज़िला जज आपराधिक मामले को बंद करने पर विचार कर सकते हैं।

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tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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