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तीन तलाक: वैधता पर SC में सुनवाई पूरी, 6 दिन चली बहस के बाद फैसला सुरक्षित रखा
नई दिल्ली: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (18 मई) को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मुद्दे से जुड़ी सुनवाई पूरी हो चुकी है। 6 दिनों तक चली इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। बता दें, कि 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) से पूछा था कि क्या महिलाओं को निकाहनामा के समय तीन तलाक को ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है।
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चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाले पांच जजों के संविधान पीठ ने यह भी कहा कि क्या सभी काजियों से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है।
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...ये धर्म से जुड़े मामले हैं
एआइएमपीएलबी की ओर से उनके वकील कपिल सिब्बल ने मंगलवार को कहा था, कि 'तीन तलाक ऐसा ही मामला है जैसे यह माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे। ये धर्म से जुड़े मामले हैं और इन्हें संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखा जा सकता।' सिब्बल ने कहा, अगर मेरी आस्था इस बात में है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था तो यह आस्था का विषय है और इसमें संवैधानिक नैतिकता का कोई प्रश्न नहीं है और कानून की अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
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बताया था 'दुखदायी' प्रथा
जबकि बुधवार को सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने तीन तलाक को 'दुखदायी' प्रथा करार देते हुए कोर्ट से अनुरोध किया कि वह इस मामले में 'मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए।' देश के बंटवारे के वक्त के आतंक तथा आघात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 को संविधान में इसलिए शामिल किया गया था, ताकि सबके लिए यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी धार्मिक भावनाओं के बुनियादी मूल्यों पर राज्य कोई हस्तक्षेप न कर सके।
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कोर्ट 67 वर्षों के संदर्भ में गौर कर रहा...जबकि
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 'न्यायालय मामले पर पिछले 67 वर्षों के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था ना कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।
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कोर्ट करे सामाजिक नतीजों का समाधान
जयसिंह ने कहा, कि 'कोर्ट को तलाक के सामाजिक नतीजों का समाधान करना चाहिए, जिसमें महिलाओं का सब कुछ लुट जाता है।' संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष बराबर तथा कानून के समान संरक्षण का हवाला देते हुए जयसिंह ने कहा कि धार्मिक आस्था तथा प्रथाओं के आधार पर देश महिलाओं व पुरुषों के बीच किसी भी तरह के मतभेद को मान्यता न देने को बाध्य है।
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