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Supreme Court:सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा-सजा देना महज लॉटरी न हो, इसके लिए स्पष्ट नीति जरूरी
Supreme Court: शीर्ष अदालत ने कानून मंत्रालय से व्यापक सजा नीति बनाने की की सिफारिश।
Supreme Court:देश की शीर्ष अदालत ने एक अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों की ओर से जल्दबाजी में और एक ही जैसे अपराध में किसी दोषी को कम और किसी को अधिक सजा सुनाए जाने को गंभीरता से लिया है और कानून मंत्रालय से व्यापक सजा नीति बनाने को कहा।शीर्ष कोर्ट ने कहा कि सजा देना महज एक लॉटरी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए स्पष्ट नीति जरूरी है। साथ ही नीति कभी भी न्यायाधीश केंद्रीत नहीं होनी चाहिए क्यों कि समाज को सजा का आधार जानना जरूरी है।
जस्टिस एमएस सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने पटना हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए यह अहम टिप्पणी की। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने दो आपराधिक मामलों में नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया था। इसमें एक मामला नाबालिग से दुष्कर्म का था, जिसमें 12 दिसंबर, 2021 को आरोपी की गिरफ्तारी हुई और निचली अदालत ने 27 जनवरी, 2022 की उसे मौत की सजा भी सुना दी। शीर्ष अदालत ने पाया कि आरोपी को अपना बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया और न्यायाधीश ने अनुचित जल्दबाजी की।बेंच ने कहा, सजा देना बिना सोचे-समझे की गई प्रतिक्रिया का परिणाम भी नहीं होनी चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोई भी अनुचित असमानता निष्पक्ष सुनवाई की अवधारण के खिलाफ होगी और यह न्याय के विपरीत भी होगा। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा बेहद जटिल है और स्थिति से निपटना राज्यों और केंद्र सरकार का कर्तव्य है।
नीति पर आयोग बनाने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपी को अपना बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया और न्यायाधीश ने अनुचित जल्दबाजी की।शीर्ष अदालत ने न्याय विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय, केंद्र सरकार को एक व्यापक नीति शुरू करने पर विचार करने की सिफारिश की है। अदालत ने कहा है ि कइस मुद्दे पर सचेत चर्चा और बसह होनी चाहिए। इसके लिए विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों और हितधारकों को शामिल करते हुए सजा की नीति पर उचित सुझाव देने के लिए एक आयोग का गठन किया जा सकता है।
सजा पर अभियुक्त को भी सुना जाना चाहिए
पीठ ने कहा, सजा पर अभियुक्त को सुनना उनका एक मूल्यवान अधिकार है। सजा एक महत्वपूर्ण पहलू है। दुर्भाग्यपूर्ण यह ै कि जब सजा की बात आती है तो हमारे पास कोई स्पष्ट नीति या कानून नहीं है। वर्षों से यह न्यायाधीश केंद्रित हो गया है और सजा देने में असमानता दिखती हैं। अपने फैसले में अदालत ने कानून मंत्रालय के सचिव को एक व्यापक सजा नीति शुरू व्यवहार्यता पर छह महीने के अंदर एक हलफनामा दाखिल करने और उस पर एक रिपोर्ट देने को कहा है।
नए आपराधिक कानूनों पर रोक से इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीन नए आपराधिक कानूनों (भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023) के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की याचिका पर विचार करने में इनकार कर दिया।जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जॉस्टस राजेश बिंदल की अवकाश पीठ ने कहा कि नए अधिनियम लागू नहीं किए गए हैं और याचिका आकस्मिक और लापरवाह तरीके से दायर की गई है, जिसके बाद याचिकाकर्ता वकील विशाल तिवारी ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया। तीनों कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू होने वाले हैं। याचिका में तीन नए आपराधिक कानूनों की व्यवहार्यता का परोक्षण और आकलन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को अध्यक्षता में तत्काल एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।याचिका में कहा गया था कि नए आपराधिक बिलों के अनुपालन में कानून फर्मों के लिए परिचालन लागत में वृद्धि हो सकती है। राष्ट्रपति दौपदी मधे दिसंबर, 2023 में तीन नए आपराधिक कानूनों को मंजूरी दे दी थी।